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प्रियंका गांधी की चुनाव में एंट्री, पहले सारथी बनीं अब योद्धा बन संभालेंगी वायनाड की कमान

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट छोड़ने का फैसला लिया है इस बात की घोषणा कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर दी है।

प्रियंका गांधी की चुनाव में एंट्री, पहले सारथी बनीं अब योद्धा बन संभालेंगी वायनाड की कमान

अब प्रियंका गांधी वायनाड से चुनावी डेब्यू करने जा रही हैं। राहुल गांधी ने रायबरेली से सांसद रहने के फैसले के साथ ही इस बात का भी ऐलान कर दिया है। शायद प्रियंका गांधी के चुनावी राजनीति में एंट्री के लिए कांग्रेस ऐसे ही किसी मौके का इंतजार कर रही थी। राहुल गांधी ने रायबरेली का होकर पारिवारिक सीट अपने पास रखी तो प्रियंका के नाम की पेशकश कर वायनाड से बने पारिवारिक संबंध भी कायम रखे। यही वजह है कि राहुल गांधी के वायनाड छोड़ने से ज्यादा चर्चा प्रियंका के चुनावी मैदान में उतरने की हो रही है।

सारथी बन कांग्रेस को संभाला

सारथी बन कांग्रेस को संभालने वाली प्रियंका गांधी वायनाड से पहली बार चुनावी योद्धा के रुप में नजर आने वाली हैं।बेशक प्रियंका गांधी ने अब तक कोई चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन यह खूबी उन्हें विरासत में मिली है।प्रियंका गांधी को पसंद करने वाले लोग उनमें इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। प्रियंका के भाषण देने की शैली काफी हद तक लोगों को इंदिरा गांधी की याद भी दिलाती है। यही वजह है कि 2014 लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद से ही लगातार कांग्रेस के अंदर प्रियंका को राजनीति में लाने की मांग होने लगी थी।

प्रियंका गांधी और राजनीति!

प्रियंका गांधी की सक्रिय राजनीति में एंट्री 2019 में हुई थी, जब उन्होंने पूर्वी उत्तर प्रदेश का महासचिव बनाया गया था। हालांकि प्रियंका गांधी पर्दे के पीछे 2004 से सक्रिय थीं। वह लगातार चुनाव प्रचार में अपनी मां सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ नजर आती थीं। 2007 में जब राहुल ने यूपी में कांग्रेस के अभियान को लीड किया तो प्रियंका ने रायबरेली और अमेठी की 10 सीटों पर चुनावी अभियान को संभाला था। लंबे समय तक प्रियंका गांधी रायबरेली और अमेठी में सक्रिय रहीं और यहां से एक भावनात्मक जुड़ाव कायम किया। इसीलिए एक बारगी तो अमेठी से ही प्रियंका गांधी के लिए आवाज उठने लगी थीं, एक नारा तक दिया गया था ‘अमेठी का डंका-बिटिया प्रियंका’.

जब प्रियंका को दी गई पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान

2019 में प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान दी गई। प्रियंका सक्रिय राजनीति में उतरीं और खुद को साबित भी किया। 2020 सितंबर में कांग्रेस ने उनका प्रमोशन किया। अब प्रियंका पर पूरे उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी थी। प्रियंका लगातार जमीन पर सक्रिय रहीं। लोगों के साथ भावनात्मक जुड़ाव के साथ-साथ वह कांग्रेस की जड़ों को मजबूती देने का काम करती रहीं। 2021 में वह उस समय सबसे ज्यादा चर्चा में आईं थीं जब लखीमपुर में किसान हत्याकांड के पीड़ितों से मुलाकात करने के दौरान उन्हें हिरासत में लिया गया था। इसके बाद आगरा में पुलिस हिरासत में मरे व्यक्ति के परिवारीजनों से मुलाकात करने पहुंचने के दौरान आगरा में भी प्रियंका हिरासत में ली गईं थीं। वह लगातार खुद को परिपक्तव राजनीतिज्ञ के तौर पर स्थापित करती रहीं हैं। 2022 में प्रियंका गांधी ने यूपी विधानसभा चुनाव का अभियान संभाला। ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरीं, लेकिन चुनाव में 403 में से सिर्फ 2 सीटें ही कांग्रेस हासिल कर सकी। यह कांग्रेस के लिए कम बल्कि प्रियंका गांधी के लिए बड़ा झटका था।

2022 में हार मिलने से लिया सबक

2022 यूपी चुनाव में मिली हार से प्रियंका गांधी ने सबक लिया। अगले दो माह प्रियंका गांधी लगातार यूपी में सक्रिय रहीं। मंथन किया कि आखिर कमजोरी कहां रही। 2022 अक्टूबर में प्रियंका ने यूपी की जिम्मेदारी छोड़ी और देश में कदम बढ़ाया। यूपी में मिली हार का सबक लेते हुए हिमाचल और कर्नाटक में चुनाव की कमान संभाली और जीत भी दिलाई।इसके अलावा मध्यप्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भी वह बराबर सक्रिय दिखीं। 2023 फरवरी में जब रायपुर में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया था, तो वहां गांधी परिवार से प्रियंका गांधी ने ही जनसभा को संबोधित किया था। अधिवेशन के तुरंत बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी दिल्ली लौट आए थे। इसके बाद से ही माना जाने लगा था कि लोकसभा चुनाव में प्रियंका गांधी इस बार बड़ी भूमिका संभालने वाली हैं।