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Kanpur Dashanan Mandir: प्रहरी के तौर पर स्थापित रावण के इस मंदिर की विधि विधान से होती है साल के सिर्फ एक दिन पूजा!

शिवाला परिसर देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसे दशानन मंदिर के नाम से भी लोग जानते हैं। दशहरे के दिन रावण की पूजा करने हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। सिर्फ दशहरे के दिन ही इस मंदिर को खोला जाता है। बताया जाता है कि ये मंदिर 103 सालों से ज्यादा पुराना है।

Kanpur Dashanan Mandir: प्रहरी के तौर पर स्थापित रावण के इस मंदिर की विधि विधान से होती है साल के सिर्फ एक दिन पूजा!

दशानन..रावण को श्रीराम ने जिस दिन मारा, उस दिन को विजय दशमी के तौर पर मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन में अपनी पत्नी सीता का छल से हरण करने वाले लंका के राजा रावण को मारा था। रावण को बुराई का प्रतीक माना जाता है, पूरे देश में रावण दहन होता है। लेकिन आज हम आपको रावण के मंदिर के बारे में बताने वाले हैं। उत्तर प्रदेश के कानपुर में बना ये मंदिर नार्थ इंडिया का एक मात्र रावण मंदिर है, जो सिर्फ विजयादशमी के दिन खुलता है।

103 साल पुराना है कानपुर का रावण मंदिर

शिवाला परिसर देश का ऐसा इकलौता मंदिर है जिसे दशानन मंदिर के नाम से भी लोग जानते हैं। दशहरे के दिन रावण की पूजा करने हजारों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। सिर्फ दशहरे के दिन ही इस मंदिर को खोला जाता है। बताया जाता है कि ये मंदिर 103 सालों से ज्यादा पुराना है। कई सारे महत्व और विशेषताओं को अपने अंदर समेटे इस मंदिर में दर्शन करने केवल कानपुर से ही नहीं बल्कि देश भर से यहां तक की विदेश से भी लोग आते हैं।

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दशहरे के दिन विधि-विधान से होती है रावण की पूजा

कानपुर के इस रावण मंदिर में दशहरे के दिन मंदिर के पट को पूरे विधि-विधान से खोला जाता है। यहां सबसे पहले रावण की स्थापित प्रतिमा का श्रृंगार किया जाता है। पूजा और आरती विधि-विधान से करने के बाद मंदिर में भक्तों को प्रवेश दिया जाता है। रावण को शक्ति के प्रतीक के रूप में लोग यहां पूजते हैं। तेल के दीए जलाकर मन्नत मांगते हैं और बुद्धि, बल और आरोग्य का वरदान मांगा जाता है। ये देश का अकेला दशानन मंदिर है, जहां पर तरोई के फूल चढ़ाकर भक्त रावण की पूजा करते हैं।

क्यों हुआ था मंदिर का निर्माण

अगर इतिहास की बात करें, तो ये मंदिर करीब 103 साल पुराना बताया जाता है। इस मंदिर को बनाने के पीछे कई धार्मिक तर्क भी हैं। माना जाता है रावण बहुत विद्वान था और भगवान शिव का परम भक्त भी था। भोले बाबा को खुश करने के लिए मां छिन्नमस्तिका देवी की रावण आराधना करता था। मां ने पूजा से प्रसन्न होकर रावण को वरदान दिया था कि उनकी पूजा सफल तभी होगी, जब श्रद्धालु रावण की पहले पूजा करेंगे। शिवाला में 1868 में मां छिन्नमस्तिका का मंदिर बनवाया गया था, यहां रावण की एक मूर्ति भी प्रहरी के रूप में स्थापित की गई थी।