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हीट वेव का कहर: हीट वेव की वजह से ईकोनॉमी और जान को कैसे हो रहा नुकसान ?

उत्तर भारत के कई शहरों में इस वक्त लगातार हीट वेव चल रही है. राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर भारत के कई शहरों में तापमान 50 डिग्री के आस पास बना हुआ है. गर्मी की वजह से कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी.

हीट वेव का कहर: हीट वेव की वजह से ईकोनॉमी और जान को कैसे हो रहा नुकसान ?

उत्तर भारत के कई शहरों में इस वक्त लगातार हीट वेव चल रही है. राजधानी दिल्ली से लेकर उत्तर भारत के कई शहरों में तापमान 50 डिग्री के आस पास बना हुआ है. गर्मी की वजह से कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी. इसके साथ ही अब इस हीट वेव की वजह से देश की ईकोनॉमी को भी काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. 

भारत में प्रचंड गर्मी और मई-जून के महीने में हीटवेब अब एक न्यू नॉर्मल बनता जा रहा है. जलवायु परिवर्तन और जंगलों की सफाई का असर इससे ज्यादा पहले कभी नहीं रहा है. हालांकि बढ़ती गर्मी और हीटवेब का सबसे बुरा प्रभाव देश की इनफॉर्मल इकोनॉमी पर पड़ता है. अर्थव्यवस्था का ये वह स्वरूप है, जो बड़ी आबादी को रोजगार देता है.



देश की 50 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर

देश में हीट वेव का सबसे बड़ा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ा है. देश की आधी आबादी आज भी कृषि काम करती है. हीट वेव की वजह से उनके रोजगार में संकट के बादल मंजरा रहे है. इसके साथ ही देश खाद्य सुरक्षा का संकट भी गहरा रहा है. वहीं अगर देश की वर्कफोर्स के लिहाज से देखें, तो एग्रीकल्चर और उससे जुड़े व्यापार  पर देश की 45 प्रतिशत से अधिक वर्कफोर्स निर्भर करती है. वहीं देश के कुल श्रमिकों में करीब 83 प्रतिशत इसी सेक्टर में काम करते हैं. वहीं आईएमएफ का अनुमान है कि देश के इंफॉर्मल सेक्टर में काम करने वाली 90 प्रतिशत से अधिक लोगों पर हीटवेव का असर पड़ता है.

कैसा होता ईकोनॉमी को नुकसान ?    

अगर आप हीट वेव के नुकसान पर नजर डाले गए, तो देखने को मिलेगा कि हीट वेव का असर वर्कफोर्स के स्वास्थ्य पर पड़ता है. जो ईकोनॉमी में अलग-अलग तरह से असर डालता है.

  • मनी कंट्रौल के खबर के मुताबिक देश के 30 फीसदी जलाशयों का स्तर 30 फीसदी से नीचे पहुंच चुका है. दक्षिण भारत में इसका असर सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है. इसका असर हाल में बेंगलुरू जैसे बड़े शहर में पानी के संकट के रूप में देखने को मिला.

 

  • जलाशयों में पानी का स्तर कम होने की वजह से पीने के पानी की किल्लत, फसलों के लिए पानी की कमी, चारे की कम उपलब्धता, बागबानी की फसलों को नुकसान, दूध और सब्जियों के बढ़ते दाम के तौर पर देखने को मिलता है.

  • आरबीआई ने जब अपनी एनुअल रिपोर्ट जारी की, तो उसने भी ये कहा 2023-24 में महंगाई को ऊंचा बनाए रखने की सबसे बड़ी वजह फूड इंफ्लेशन रही. वहीं अब भी फूड इंफ्लेशन के बहुत नीचे आने के संकेत नहीं दिख रहे हैं.

  • इसके अलावा वर्कफोर्स की हेल्थ पर हीटवेव का असर होने से इंफ्रास्ट्रक्चर, इंडस्ट्री प्रोडक्शन पर पड़ता है. वहीं हेल्थ और गर्मी से बचने के उपायों पर लोगों का खर्च बढ़ने से उनके कंजप्शन में कमी आती है, जो धीरे-धीरे मार्केट में डिमांड पुल को कम करता है. इससे लॉन्ग टर्म में इकोनॉमी को नुकसान होता है.

भीषण गर्मी की वजह से यूरोप में होती है संकड़ो मौत

भीषण गर्मी की वजह से होने वाली मौतों के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन की वेबसाइट पर बताया गया है कि 2000 से 2019 के बीच हुई स्टडी में यह सामने आया है कि दुनिया में हर साल करीब 489000 लोगों की जान चली जाती है. जिसमें से 45 फीसदी लोग एशिया में होती है. जबकि दूसरे स्थान पर यूरोप है, जहां 36 फीसदी गर्मी जनित मौतें सामने आती हैं. इसमें यह भी बताया गया है कि केवल 2022 में गर्मी के मौसम में यूरोप में 61672 लोगों की मौत हुई थी. 2003 में जून से अगस्त के दौरान पड़ी भीषण गर्मी के कारण यूरोप में लगभग 70 हजार लोगों की जान गई थी.   

गर्मी में मौत के जिम्मेदार लोग खुद

लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन की एक रिपोर्ट में बताया गया कि दुनिया भर में गर्मी से होने वाली एक तिहाई मौतों के लिए खुद इंसान जिम्मेदार है. साल 1991 से 2018 के आंकड़े के अध्ययन के बाद रिपोर्ट में कहा गया है कि गर्मी के कारण 37 फीसदी मौतें केवल इंसानों की गतिविधियों के कारण हुई हैं. वैज्ञानिकों ने अधिक तापमान का इंसान की सेहत पर असर और उससे होने वाली मौतों का डाटा जुटाने के लिए यह रिसर्च की. इसके लिए दुनिया भर के 73 देशों में स्थित 732 क्षेत्रों का डाटा जुटाया गया.

इसके बाद जारी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने कहा है कि जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है, हवाएं गर्म होती जाती हैं. इसका सबसे बड़ा सीधा असर बुजुर्गों के साथ ही अस्थमा के रोगियों पर पड़ता है. इसके कारण समय से पहले उनकी मौत हो जाती है. यह शोध नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित किया गया है. शोध में यह साबित हुआ है कि इंसानी गतिविधियां ही ग्लोबल वार्मिंग की एक बड़ी वजह हैं.