Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

और देखें
वेब स्टोरी

J&K Assembly Elections 2024 Date: आर्टिकल-370 हटने के बाद कश्मीर में पहला विधानसभा चुनाव, 10 साल में कितनी बदली घाटी

5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था।

J&K Assembly Elections 2024 Date: आर्टिकल-370 हटने के बाद कश्मीर में पहला विधानसभा चुनाव, 10 साल में कितनी बदली घाटी

10 साल के लंबे इंतजार के बाद जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनाव आयोग ने कहा है कि हम जम्मू-कश्मीर की तस्वीर बदलना चाहते हैं। फिलहाल जम्मू कश्मीर में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो गया है।

इसे भी पढ़िये -

कब-कब है चुनाव
चुनाव आयोग ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया है कि जम्मू-कश्मीर में तीन चरणों में मतदान सम्पन्न होंगे। ये चरण हैं-
पहला चरण- 18 सितंबर
दूसरा चरण- 25 सितंबर
तीसरा चरण- एक अक्तूबर
मतगणना- चार अक्टूबर

कुल निर्वाचन क्षेत्र
चुनाव आयोग ने तारीखों का ऐलान करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस में विधानसभा क्षेत्रों की भी जानकारी दी है।
कुल निर्वाचन क्षेत्र- 90
(73 जनरल, ST-0 और SC- 17)

कुल मतदाता

चुनाव आयोग की ओर से जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं के बारे में भी जानकारी दी गई है। जोकि कुछ इस प्रकार है- 
कुल मतदाता संख्या- 2.01 करोड़ 
पुरुष मतदाताओं की संख्या- 1.06 करोड़
 महिला मतदाताओं की संख्या- 0.95 करोड़ 
370 हटने के बाद कितना बदला जम्मू-कश्मीर

5 अगस्त, 2019 को केंद्र सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त कर दिया। इस अनुच्छेद के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्राप्त था। इसके बाद करीब सात महीने तक पूरी तरह से संचार व्यवस्था ठप रही। एक साल से ज़्यादा समय तक हाई-स्पीड इंटरनेट एक्सेस पर रोक लगी रही। 

जम्मू-कश्मीर का विभाजन
31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू और कश्मीर राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया।

स्थानीय चुनाव
अक्टूबर 2019 में विपक्षी दलों के बहिष्कार के बावजूद श्रीनगर में स्थानीय निकाय चुनाव हुए। क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने अपने सदस्यों के जेल में बंद होने के कारण चुनावों को ‘अलोकतांत्रिक’ करार दिया।

नए अधिवास कानून
केंद्र ने अप्रैल 2020 में घोषणा की है कि जो व्यक्ति जम्मू और कश्मीर में कम से कम 15 वर्षों से रह रहा है, वह अब केंद्र शासित प्रदेश का स्थायी निवासी बनने के लिए योग्य होगा, जिससे इस क्षेत्र के लिए अधिवास की परिभाषा बदल जाएगी।

मीडिया नीति 2020

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 2 जून को ‘मीडिया नीति 2020’ नामक एक नई मीडिया नीति अपनाई। इसका तात्पर्य यह है कि कौन सी खबर जारी की जाए, यह तय करने का अधिकार एक सरकारी प्रशासनिक इकाई के पास है।

परिसीमन प्रक्रिया
जून 2021 में क्षेत्रीय नेताओं के साथ बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के तुरंत बाद विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे। सरकार ने 5 मई, 2022 को बहुप्रतीक्षित परिसीमन आदेश की घोषणा की।

राज्य का दर्जा बहाल करना
सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने 11 नवंबर, 2023 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा। न्यायालय ने कहा कि केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख को छोड़कर शेष राज्य का दर्जा यथाशीघ्र बहाल किया जाना चाहिए।

कश्मीरी पंडितों के लिए सीटें

इस बार के विधानसभा चुनाव के लिए जम्मू-कश्मीर में कश्मीरी पंडितों के लिए दो सीटें रिजर्व रखी गई हैं। वहीं दूसरी ओर कश्मीरी पंडितों को कश्मीरी प्रवासी कहा गया। इनमें अब उपराज्यपाल विधानसभा के लिए तीन सदस्यों को नामित कर सकेंगे। इन सीटों में से दो कश्मीरी प्रवासी और एक पीओके से विस्थापित होगें। इनमें से दो कश्मीरी प्रवासियों को नामित किया जाएगा, जिनमें से एक महिला होगी।

किसे माना जाएगा कश्मीरी प्रवासी
बता दें कि कश्मीरी प्रवासी उसे माना जाएगा जो 1 नवंबर 1989 के बाद घाटी या जम्मू-कश्मीर के किसी भी हिस्से से पलायन कर चुका हो । कश्मीरी प्रवासियों का नाम रिलीफ कमीशन में रजिस्टर में होना जरूरी है। इसके अलावा जो व्यक्ति 1947-48, 1965 या 1971 के बाद पीओके से आया हो उसे विस्थापित माना जाएगा।

विधानसभा चुनाव 2014
2014 में जम्मू और कश्मीर एक राज्य के रूप में वर्गीकृत था, 87 सीटों पर चुनाव हुए। चुनाव 25 नवंबर से 20 दिसंबर तक पांच चरणों में हुए। कट्टरपंथी क्षेत्रीय दलों द्वारा चुनावों का बहिष्कार करने के आह्वान के बावजूद राज्य में 65 प्रतिशत मतदान हुआ। उस समय मुख्यमंत्री रहे उमर अब्दुल्ला और उनकी पार्टी जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ अपना गठबंधन तोड़ दिया।

इस बीच एक अप्रत्याशित गठबंधन सरकार फलीभूत हुई, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने 2014 की अपनी लय जारी रखते हुए अधिक प्रमुख क्षेत्रीय पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के साथ गठबंधन कर लिया।

उमर अब्दुल्ला ने इस्तीफा दे दिया और कुछ समय के लिए राष्ट्रपति शासन लागू किया गया जब तक कि भाजपा और पीडीपी ने मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर लिया। 1 मार्च 2015 को मुफ्ती मोहम्मद सईद ने जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। 7 जनवरी 2016 को मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया और राज्य में फिर से कुछ समय के लिए राज्यपाल शासन लागू हो गया। उनकी जगह पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती ने मुख्यमंत्री का पद संभाला।

सरकार को भंग करना
जून, 2018 में, भाजपा ने पीडीपी के साथ अपने गठबंधन से हाथ खींच लिया, जिससे गठबंधन सरकार टूट गई और पीडीपी की महबूबा मुफ़्ती को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा। एक बार फिर राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया।

गठबंधन सरकार के टूटने के साथ, पीडीपी और एसएलसीपी जैसी कई क्षेत्रीय पार्टियाँ सरकार बनाने के लिए तैयार थीं। हालाँकि, राज्यपाल सत्य पाल मलिक ने राज्य विधानसभा को भंग करने का विकल्प चुना।

20 दिसंबर, 2018 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया। एक साल पहले, धारा 370 के निरस्त होने के बाद जम्मू और कश्मीर से उसका राज्य का दर्जा छीन लिया गया था। जम्मू और कश्मीर छह साल तक बिना मुख्यमंत्री के रहा।