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Ratan Tata के पेरेट्स का बचपन में तलाक, स्कूल में बच्चे करते थे परेशान, पिता से था मतभेद फिर दादी ने किया सपोर्ट!

रतन टाटा को बच्चे स्कूल में परेशान करते थे। उन्होंने एक बातचीत में खुद बताया था कि माता पिता के तलाक के बाद उनको और उनके भाई को स्कूल में काफी परेशान किया जाता था।

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कहते हैं कि जब कोई इस दुनिया से चला जाता है, तब लोग उसके बारें में सिर्फ अच्छा ही बोलते हैं, लेकिन रतन टाटा वो व्यक्ति रहे, जो हमेशा एक आदर्श साबित हुए। बीती रात जब रतन टाटा ने इस लोक को अलविदा कहा, तमाम लोगों ने उनको श्रद्धांजलि दी। तो चलिए हम रतन टाटा कैसे सिर्फ एक बिजनेस टायकून की तरह ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र के लोगों के सीखने का सागर रहे, चलिए जानते हैं...

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रतन टाटा जब 10 साल के थे, तब उनके माता पिता का तलाक हो गया था। रतन टाटा ने खुद Humans of Bombay से बात करते हुए इन बातों को लेकर खुलासा किया था कि माता पिता के तलाक के बाद उनकी जिंदगी में कैसे भूचाल आ गया था। बचपन में पेरेंट्स का तलाक होने के बाद से रतन टाटा की जिंदगी आसान नहीं रही।

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बच्चे करते थे परेशान

रतन टाटा को बच्चे स्कूल में परेशान करते थे। उन्होंने एक बातचीत में खुद बताया था कि माता पिता के तलाक के बाद उनको और उनके भाई को स्कूल में काफी परेशान किया जाता था। हालांकि रतन ने कहा था कि, हम इस सिचुएशन से कैसे भी करके मुकाबला करते थे और आगे बढ़ते थे। इसके अलावा उन्होने पिता से भी अपने मतभेदों पर बात की थी।

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रतन टाटा का था पिता से मतभेद

रतन टाटा उन व्यक्तियों में गिने जाते रहे हैं, जो मीठी से मुस्कान से किसी का भी दिल जीत लें। लेकिन उनका उनके पिता के साथ मतभेद था। दरअसल, रतन टाटा जो कुछ भी चाहते थे उनके पिता वो नहीं करने देते थे। बल्कि उनके पिता अपनी मर्जी की चीजें उनसे करवाते थे। रतन टाटा ने कहा, ''मैं वायलीन बजाना सीखना चाहता था लेकिन मेरे पिता चाहते थे कि मैं पियानो सीखूं और इसके लिए उन्होने मजबूर भी किया था। मैं अमेरिका के कॉलेज में जाना चाहता था लेकिन पिता ने मुझे यूके जाने के लिए कहा। मैं आर्किटेक्ट बनना चाहता था लेकिन पिता ने फोर्स किया कि मैं इंजीनियर बनूं।'' रतन टाटा को लेकर अब चर्चा हो रही है।

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दादी ने दिया था बचपन में रतन टाटा को सुकून

इन सभी तकलीफों के बीच दादी के साथ रतन टाटा का रिश्ता काफी अच्छा था। रतन टाटा अपने दादी की काफी तारीफ करते हैं। जब पिता ने उनकी बातें नहीं सुनी तो उनको दादी का सहारा मिला। दादी के सपोर्ट से ही उन्होने अपने विषय बदला था। उनको इस दौरान इंजीनियर से बदलकर आर्किटेक का कोर्स करने का मौका मिला था।