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ये इश्क नहीं आसान वाली पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी

पृथ्वीराज से जुड़ी कई कहानियां लिखी गई हैं. पृथ्वीराज चौहान पर फिल्म भी बनी है. फिल्म का जिक्र इस लिए जरूरी है क्योंकि पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी बेमिसाल है. कहते हैं कि पृथ्वीराज संयोगिता को पाने के लिए उन्हें बीच स्वयंवर से उठा ले गए थे. 

ये इश्क नहीं आसान वाली पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी

सम्राट पृथ्वीराज चौहान की गिनती भारत के सबसे बड़े हिंदू राजाओं में होती है. उनकी वीरता की कई कहानियां और पृथ्वीराज चौहान के बारे में पढ़ने के लिए दर्जनभर किताबें हैं. लेकिन पृथ्वीराज रासो वो किताब है जो पृथ्वीराज के सबसे करीबी मित्र और महान रचनाकार चंदबरदाई ने लिखी है. पृथ्वीराज रासो महाकाव्य है. जिसमें पृथ्वीराज से जुड़ी कई कहानियां लिखी गई हैं. पृथ्वीराज चौहान पर फिल्म भी बनी है. फिल्म का जिक्र इस लिए जरूरी है क्योंकि पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी बेमिसाल है. कहते हैं कि पृथ्वीराज संयोगिता को पाने के लिए उन्हें बीच स्वयंवर से उठा ले गए थे. 

पृथ्वीराज और संयोगिता की प्रेम कहानी

कन्नौज के राजा जयचंद की बेटी संयोगिता थी. सुंदर इतनी कि कोई भी उनके रूप पर मोहित हो जाए, उनकी सुंदरता का जिक्र दूर- दूर तक होता था. कहते हैं कि एक बार संयोगिता ने अपने महल में आए एक चित्रकार के चित्र देखा. इन चित्रों में से एक चित्र पृथ्वीराज चौहान का भी था. तस्वीर को देखते ही संयोगिता उन्हें दिल दे बैठीं. इसके बाद जब चित्रकार ने संयोगिता का चित्र पृथ्वीराज को दिखाया तो वो भी उन्हें चाहने लगे. 

लेकिन जयचंद और पृथ्वीराज एक दूसरे को पसंद नहीं करते थे. इसी वजह से पृथ्वीराज जब दिल्ली के सिंहासन पर बैठे, उस समय जयचंद ने राजसूय यज्ञ और अपनी बेटी का स्वंयवर कराने का निश्चय किया. यज्ञ का निमंत्रण आसपास के सभी राजाओं को भेजा गया. पृथ्वीराज को भी ये निमंत्रण मिला, लेकिन उनके सामंतों को यह बात ठीक नहीं लगी. इस वजह से पृथ्वीराज ने निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया. गुस्साए जयचंद ने यज्ञमण्डप के दरवाजे पर पृथ्वीराज की एक प्रतिमा द्वारपाल के रूप में लगवा दी और इस तरह विवाद बढ़ता गया.

संयोगिता का स्वयंवर

संयोगिता का स्वयंवर होना था, लेकिन संयोगिता अपने पिता से नाराज थीं. संयोगिता ने स्वयंवर में आए राजाओं में से किसी को भी नहीं चुना. जब संयोगिता को पता चला कि पृथ्वीराज नहीं आए, तो संयोगिता ने दरवाजे पर लगाई गई पृथ्वीराज की मूर्ति को माला पहनाने निकल पड़ीं. इसी समय पृथ्वीराज पहुंच गए और संयोगिता ने उन्हें वरमाला पहना दी. इसके बाद पृथ्वीराज स्वयंवर से संयोगिता को लेकर दिल्ली आ गए. इतिहासकार कहते हैं कि यही प्रेम कहानी आगे चलकर भारत में मुस्लिम आक्रमण की वजह बनीं. संयोगिता के पिता जयचंद ने अपना बदला लेने के लिए अफगान के शासक मोहम्मद गौरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए बुलाया था.