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रंगों से सज जाती हैं कलाइयां, जब पहनते हैं लाख की चूड़ियां

दुनिया भर में भारतीय परिधानों और ज्वैलेरी का काफी क्रेज रहता है. रंग बिरंगे सुंदर सुंदर कपड़े और अलग अलग तरह की चूड़ियां कलाईयों की शोभा बढ़ाती हैं. इन्हीं में से फेमस है राजस्थान की लाख की चूड़ियां.

रंगों से सज जाती हैं कलाइयां, जब पहनते हैं लाख की चूड़ियां

दुनिया भर में भारतीय परिधानों और ज्वैलेरी का काफी क्रेज रहता है. रंग बिरंगे सुंदर सुंदर कपड़े और अलग अलग तरह की चूड़ियां कलाईयों की शोभा बढ़ाती हैं. इन्हीं में से फेमस है राजस्थान की लाख की चूड़ियां. जो ना केवल हर महिला का गर्व, गुमान है बल्कि सबसे प्रिय गहना हैं. प्राचीन काल से ही ये चूड़ियां महिलाओं के हाथों को शोभा को बढ़ाती रहती हैं. कोई त्यौहार हो या फिर मांगलिक काम सुहागिनों के श्रंगार की निशानी की तौर पर लाख की चूड़ियों की डिमांड हमेशा बनी रहती है.

कहां से खरीदें चूड़ियां

वैसे तो पूरे राजस्थान की लाख की चूड़ियों का कोई जवाब नहीं है, लेकिन इनमें सबसे फेमस है जयपुर की लाख की चूड़िया. जयपुर में त्रिपोलिया बाजार में मनिहारों का रास्ता नाम की जगह है, जहां लाख की चूड़ी बनाने वाला मनिहार समुदाय रहता है. ये मनिहार कारीगर लाख से सुंदर चूड़ियां बनाते हैं. जयपुर के राजपरिवार की ओर से इस कला को हमेशा से संरक्षण प्राप्त रहा है. ये रंग- बिरंगी लाख की चुड़ियां जयपुर की शानदार हस्तकला का उदाहरण हैं.

करौली में भी है लाख की चूड़ियों का बड़ा कारोबार

लाख की चूड़ियों का व्यापार करौली में भी काफी बड़ा है. चूड़ी बनाने, नगीने लगाने और बिक्री तक के काम में बड़ी तादात में इस समुदाय के लोग जुड़े हैं.

ग्राहकों की पहली पसंद जयपुर की लाख की चूड़ियां

जयपुर में बनने वाली लाख की चूड़ियों के लिए इन दिनों बड़ी तादात में ग्राहक जयपुर की बाजार में पहुंच रहे हैं. न केवल देश बल्कि विदेशों में भी इसकी बड़ी डिमांड है. इसके अलावा त्यौहार और शादी के सीजन में इसकी डिमांड बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. चांदपोल बाजार और नाहरगढ़ रोड पर मार्केट इसके लिए काफी मशहूर है.

चूड़ियों के अलावा हैंडीक्राफ्ट में भी इस्तेमाल

लाख का इस्तेमाल न केवल चूड़ियों में किया जाता है बल्कि हैंडीक्राफ्ट,  मूर्तियों, गोलियों, सजावट के सामान, फर्नीचर पॉलिश सहित कई चीजों में होता है. राजस्थानी और उत्तर भारत की परंपराओं के अनुसार बिना लाख की चूड़ियों के शादी पूरी नहीं मानी जाती और रस्मों में इसका अलग ही महत्व है.