Rajasthan News: रामभद्राचार्य ने क्यों नहीं किये गोविंद देव मंदिर के दर्शन? इस बयान से मची खलबली
चार जगदगुरुओं में से एक आचार्य रामभद्राचार्य के एक और बयान से खलबली मच गई है। उन्होंने कहा कि श्री कृष्ण जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक वह किसी भी कृष्ण मंदिर में नहीं जाएंगे।
राजस्थान में इन दिनों एक तरफ उपचुनाव की सरगर्मी है तो दूसरी ओर चार जगदगुरुओं में से एक आचार्य रामभद्राचार्य के एक और बयान से खलबली मच गई है। दरअसल, उन्होंने कहा कि जब तक श्री कृष्ण जन्मभूमि पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता है, तबतक वह किसी भी कृ्ष्ण मंदिर में कदम नहीं रखेंगे। उन्होंने ये बातें जयपुर में आयोजित एक कथा के दौरान कही। इस मौके पर उनके लाखों भक्त मौजूद हे। रामभद्राचार्य विद्याधर नगर स्टेडियन में नौ दिवसीय रामकथा कर रहे है। उन्होंने भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि जब वह जयपुर आये थे तो गोविंद देवजी के दर्शन करना चाहते थे लेकिन मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि का मामला अभी कोर्ट है। जब तक अदालत इस पर फैसला नहीं दे देती तबतक वह किसी भी कृष्ण मंदिर में नहीं जायेंगे।
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रामभद्राचार्य महाराज ने इस दौरान पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का जिक्र भी किया और कहा कि पीओके का हक हमे वापस मदिया जाएगा। इसके लिए हम सवा करोड़ लोग हनुमान जी को आहूति देने के लिए तैयार है। पाकिस्तान पर विजय पाने के लिए जयपुर की मदद चाहिए। मौजूद समय में राज्यपाल के कार्यकाल में राजस्था सरकर बच्चों को वेदों की शिक्षा देना चाहती है। हालांकि जयपुर जाने पर भी रामभद्राचार्य के गोविंदेव जी के दर्शन न करना चर्चा का विषय बना हुआ है।
आखिर क्यों खास है गोविंद देव मंदिर
बता दें, जयपुर स्थित गोविंद देवी मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पपौत्र वज्रनाभ ने कराया था। देश ही नहीं विदेशों से भी यहां लोग गोविंद जी के दर्शन करने आते हैं। ये मंदिर इसलिए भी खास है क्योंकि इस मंदिर का कोई शिखर नहीं है। इस मंदिर को बनवाने से पहले वज्रनाभ ने अपनी दादी से कृष्ण जी की छवि के बारे में पूछा था। मान्यता है, गोविंद देव की मूर्ति भगवान कृष्ण के रूप में है। यह मूर्ति स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के असली स्वरूप से मिलती-जुलती है। इस मूर्ति को वृंदावन से जयपुर लाया गया था और इसे अत्यंत पवित्र और दिव्य माना जाता है।गोविंद देव मंदिर की वास्तुकला राजस्थानी और मुगल शैली का सुंदर मिश्रण है। इसमें भव्य तोरण द्वार, विशाल आंगन और उंची मीनारें हैं।मंदिर का निर्माण जयपुर के संस्थापक महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय द्वारा 1735 में कराया गया था।इसे जयपुर के सिटी पैलेस परिसर के भीतर बनाया गया है, जो इसकी शाही भव्यता और महत्व को दर्शाता है।