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कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे पर हाईकोर्ट की सुनवाई, 6 नेताओं को भेजा गया नोटिस

सितंबर 2022 में कांग्रेस के 81 विधायकों ने सामूहिक रूप से इस्तीफे सौंपे थे, जो अशोक गहलोत सरकार को समर्थन देने के संदर्भ में विवाद का कारण बने। भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जिसके बाद अदालत ने कांग्रेस के 6 वरिष्ठ नेताओं को नोटिस जारी किया है। 

कांग्रेस के 81 विधायकों के इस्तीफे पर हाईकोर्ट की सुनवाई, 6 नेताओं को भेजा गया नोटिस

सितंबर 2022 में कांग्रेस के 81 विधायकों द्वारा सामूहिक इस्तीफा देने के विवादास्पद मामले पर राजस्थान हाईकोर्ट में आज सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश एमएम श्रीवास्तव और जस्टिस उमाशंकर व्यास की खंडपीठ ने इस मामले की जांच करते हुए कांग्रेस के 6 प्रमुख नेताओं को नोटिस जारी किया है। भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने शांति धारीवाल, महेश जोशी, रफीक खान, संयम लोढ़ा, महेंद्र चौधरी और रामलाल जाट से चार सप्ताह के भीतर जवाब मांगा है।

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विधायकों के इस्तीफे की सत्यता पर सवाल

भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ ने दो साल पुराने इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने कांग्रेस विधायकों के इस्तीफों की स्वैच्छिकता पर सवाल उठाए थे। विधानसभा सचिवालय ने पहले ही स्पष्ट किया था कि विधायकों के इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे, इसलिए उन्हें स्वीकार नहीं किया गया। अब हाईकोर्ट ने छह नेताओं से जवाब की मांग की है, जिसके बाद मामले की अगली सुनवाई होगी।

राठौड़ ने की वेतन भत्तों की रिकवरी की मांग

राजेंद्र राठौड़ का आरोप है कि अशोक गहलोत सरकार को बचाने के लिए 81 विधायकों के इस्तीफे एक साजिश के तहत लिए गए थे। उन्होंने दावा किया कि विधायकों ने सितंबर 2022 में यह कहकर इस्तीफे सौंपे थे कि वे अपने पदों पर बने नहीं रहना चाहते। बाद में इन्हीं इस्तीफों को यह कहते हुए वापस ले लिया गया कि वे स्वैच्छिक नहीं थे। राठौड़ ने कोर्ट से मांग की है कि इन इस्तीफों के पीछे की सच्चाई की जांच की जानी चाहिए, और यदि ये इस्तीफे स्वैच्छिक नहीं थे, तो उस दौरान लिए गए वेतन और भत्तों की वसूली भी होनी चाहिए।

81 विधायकों के इस्तीफे की पृष्ठभूमि

सितंबर 2022 में कांग्रेस के आलाकमान ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को जयपुर भेजा था, जहां उन्हें विधायक दल की बैठक में एक लाइन का प्रस्ताव पारित करने का निर्देश दिया गया था। उस समय के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में थे, और ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि सचिन पायलट को राज्य का अगला मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है। इस संभावना के विरोध में गहलोत खेमे के विधायकों ने बैठक का बहिष्कार किया और तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल के आवास पर एक समानांतर बैठक का आयोजन किया।

इस दौरान 81 विधायकों ने कांग्रेस आलाकमान के खिलाफ बगावत की और इस्तीफे सौंपे। उनका मुख्य तर्क था कि अगला मुख्यमंत्री उन्हीं विधायकों में से होना चाहिए, जिन्होंने मानेसर कांड के समय सरकार का समर्थन किया था। माना जाता है कि इस पूरी कार्रवाई का उद्देश्य सचिन पायलट की मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को रोकना था। इस्तीफे तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी को सौंपे गए थे, लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं किया गया।