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Ganesh Chaturthi 2024: खुद के मकान सपना पूरा करते है चूंधी गणेश, 1400 साल पुराने इस मंदिर की मान्यता सुन, हो जाएंगे दंग

जैसलमेर के चूंधी गणेश जी को लोग घर देने वाले गणेश जी के नाम से भी जानते हैं। यहां के लोगों का कहना है कि चूंधी गणेश जी घर बनाने का सपना पूरा करते हैं। साथ ही इस मंदिर का इतिहास भी बहुत पुराना बताया जाता है।

Ganesh Chaturthi 2024: खुद के मकान सपना पूरा करते है चूंधी गणेश, 1400 साल पुराने इस मंदिर की मान्यता सुन, हो जाएंगे दंग

जैसलमेर शहर से 12 किलोमीटर दूर भगवान गणेश जी का एक ऐसा मंदिर है जो अपने भक्तों को घर देता है। बहुत दूर-दूर से भक्त यहां भगवान के दर्शन करने आते हैं और भगवान के सामने घर की इच्छा जताते हैं। ये सिर्फ एक मान्यता नहीं है, बल्कि कहा जाता है कि भगवान ने यहां आने वाले भक्तों को घर भी दिया है। इसी का नतीजा है कि यहां आने वाले दर्शनार्थियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

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अपना खुद का घर होने का सपना कौन नहीं देखता? हर किसी की चाहत होती है कि उसका अपना घर हो। इस सपने को पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत की जाती है लेकिन फिर भी कई लोग अपना घर नहीं बना पाते हैं। जैसलमेर के चूंधी गणेश मंदिर में आने वाले भक्त मंदिर के आसपास बिखरे पत्थरों से अपना मनचाहा घर बनाते हैं और गणेश जी से प्रार्थना करते हैं कि वे उनके मंदिर में बनाए गए घर जैसा घर उन्हें भी बना दें।

1400 साल पुराना चूंधी गणेश मंदिर

जैसलमेर की स्थापना से भी पुराने इस मंदिर के इतिहास की बात करें तो पता चलता है कि ये मंदिर 1400 साल से भी ज्यादा पुराना है। उस काल में चंवड़ ऋषि ने यहां 500 साल तक तपस्या की थी। इसलिए इस जगह का नाम चूंधी पड़ा। इतना ही नहीं, अलग-अलग कालखंडों में विभिन्न ऋषियों-मुनियों ने यहां तपस्या कर इस जगह की तपस्‍या को बढ़ाया। इसी का नतीजा है कि आज यहां आने वाले दर्शनार्थी यहां आकर शांति और सुकून का अनुभव करते हैं।

मंदिर परिसर में बने छोटे-छोटे घर

आज के वैज्ञानिक युग में ऐसी बातें बेमानी लगती हैं, लेकिन आस्था और भक्ति के आगे विज्ञान भी नतमस्तक है। जहां विज्ञान की खोज खत्म होती है, वहीं से भगवान के चमत्कार शुरू होते हैं और इसी का नतीजा है कि आज भी आस्था और भक्ति के वशीभूत होकर भगवान भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं और ऐसा ही कुछ हो रहा है जैसलमेर के चूंधी गणेश जी मंदिर में। जहां मंदिर परिसर के पास बने सैकड़ों छोटे-छोटे घर इस बात की गवाही दे रहे हैं कि भगवान मौजूद हैं और वे भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। भक्तों का मानना ​​है कि हमने जितने घर बनाए हैं, भगवान गणेश ने हमें उतने ही घर दिए हैं।

देशभर के मंदिरों में चूंधी गणेश की अलग पहचान

बरसाती नदी के बीच बना ये मंदिर देशभर के मंदिरों में अपनी अलग पहचान रखता है। इसकी वजह ये है कि भारत में ऐसे बहुत कम मंदिर हैं जो नदी के बीच में बने हैं। एक और बात जो चूंधी गणेश जी की महिमा को और बढ़ा देती है वो ये है कि यहां स्थित गणेश जी की मूर्ति को न तो किसी कारीगर ने बनाया है और न ही किसी ने यहां इसकी प्राण प्रतिष्ठा की है। इस मूर्ति के बारे में मान्यता है कि ये मूर्ति अपने आप प्रकट हुई है।

सभी देवता मिलकर करते हैं भगवान गणेश का जलाभिषेक

नदी के बीच में स्थित होने के कारण कई बार बरसात के दिनों में ऐसा होता है कि गणेश जी की मूर्ति पानी में डूब जाती है। इसलिए मूर्ति के बारे में मान्यता है कि हर साल गणेश चतुर्थी से पहले बारिश होती है और सभी देवता मिलकर गणेश जी का जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के दोनों तरफ दो कुएं स्थापित हैं। इन कुओं के बारे में कहा जाता है कि हरिद्वार में बहने वाली मां गंगा का पानी इन कुओं में आता है, क्योंकि ऐसी किवदंती है कि एक भक्त का रिश्तेदार हरिद्वार में गंगा में स्नान कर रहा था और वो खुद चूंधी के इस कुएं के सामने तपस्या कर रहा था। नहाते समय उनके रिश्तेदार के हाथ से कंगन फिसलकर गंगा में बह गया। कंगन बहता हुआ चूंधी में पहुंच गया।

मान्यता ये भी है कि साल में एक बार इन कुओं में प्राकृतिक रूप से गंगा का पानी आता है। गणेश मंदिर के सामने राम दरबार मंदिर है, जिसमें श्री राम अपनी पत्नी सीता, भाई लक्ष्मण और अपने प्रिय हनुमान जी के साथ विराजमान हैं। भगवान श्री कृष्ण अपने बाल रूप में पालने में विराजमान होकर मंदिर में आने वाले भक्तों के साथ झूला झूलते हैं। इस मंदिर के ठीक सामने शिव मंदिर है।

हर साल गणेश चतुर्थी के दिन लगता है भव्य मेला

चूंधी गणेश की इन्हीं मान्यताओं और चमत्कारों के कारण यहां हर साल गणेश चतुर्थी के दिन भव्य मेला लगता है। जिसमें जैसलमेर सहित अन्य जिलों और राज्यों से कई श्रद्धालु भगवान गणपति के दर्शन करने और उनसे अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए जुटते हैं। गणेश चतुर्थी के दिन यहां लगने वाले मेले का आयोजन यहां की स्थानीय समिति द्वारा किया जाता है। जिसमें जैसलमेर से चूंधी तक दर्शनार्थियों को लाने के लिए बसों की व्यवस्था के साथ-साथ मंदिर परिसर में आने वाले दर्शनार्थियों के लिए प्रसादी की व्यवस्था और सभी के लिए महाप्रसादी का आयोजन शामिल है।