Rajasthan By-election Exit Poll: सियासी समीकरण और जनादेश का इंतजार, 23 नवंबर को खुलेगा सबकी किस्मत का पिटारा, जानें
इन सीटों पर आरएलपी, बीजेपी, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। देवली-उनियारा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा का प्रदर्शन खासा चर्चा में है।
राजस्थान की सात विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों ने राज्य की राजनीति को गर्मा दिया है। ये उपचुनाव केवल स्थानीय राजनीति नहीं, बल्कि प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर दलों की स्थिति के संकेतक माने जा रहे हैं।
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चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला
इन सीटों पर आरएलपी, बीजेपी, कांग्रेस और निर्दलीय प्रत्याशियों के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिली। देवली-उनियारा सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार नरेश मीणा का प्रदर्शन खासा चर्चा में है। मीणा ने अपने जुझारू तेवरों और जनता से सीधे जुड़ाव के जरिए चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है। आरएलपी की ओर से हनुमान बेनीवाल और उनकी पार्टी के लिए ये उपचुनाव एक महत्वपूर्ण परीक्षा माना जा रहा है। शुरुआती अनुमानों के अनुसार, आरएलपी को एक सीट पर जीत मिलने की संभावना है।
कनिका बेनीवाल की जीत की संभावना
बीजेपी ने खींवसर और रामगढ़ जैसी सीटों पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए आक्रामक प्रचार किया। खींवसर में हनुमान बेनीवाल की बहन कनिका बेनीवाल मैदान में थीं, जिनकी जीत की संभावना 4,000-5,000 वोटों के अंतर से मानी जा रही है। वहीं, रामगढ़ में मुस्लिम बहुल क्षेत्र और अनुसूचित जाति के मतदाताओं के बीच ध्रुवीकरण हुआ।
अंतिम नतीजों पर टिकी हैं नजरें
कांग्रेस के लिए ये चुनाव सत्ता में रहते हुए अपनी पकड़ बनाए रखने की चुनौती साबित हुए। ओला परिवार के प्रभाव वाले इलाकों में कांग्रेस को मजबूत समर्थन मिला। हालांकि, कई सीटों पर मुकाबला बेहद नजदीकी रहा, जिससे अंतिम नतीजों पर नजरें टिकी हैं।
पीएम मोदी और गहलोत की नीतियों का प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की नीतियों का प्रभाव भी इन चुनावों पर देखा गया। लेकिन सियासी पंडितों का मानना है कि इन नतीजों से किसी दल का भविष्य तय नहीं होगा, ये महज एक परीक्षा है।
अब 23 तारीख को तस्वीर पूरी तरह साफ होगी, जब ये देखा जाएगा कि जनता ने किस पर विश्वास जताया है।
जितेश जेठानंदानी और अभिषेक जोशी की रिपोर्ट