Rajasthan by-election: टूटेगा बेनीवाल का तिलिस्म, बीजेपी की चाल कितनी होगी कामयाब, जानें क्या कहते हैं नागौर के समीकरण ?
राजस्थान में खींवसर उपचुनाव की सरगर्मी तेज हो गई है। बीजेपी और आरएलपी के बीच कड़ी टक्कर होने वाली है, जहां हनुमान बेनीवाल की रणनीति और बीजेपी के रेवंतराम डांगा की चुनौती से चुनाव दिलचस्प बन रहा है।
राजस्थान में उपचुनाव की सरगर्मी के साथ पक्ष-विपक्ष आमने-सामने हैं। एक तरफ पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर हैं तो दूसरी तरफ बड़े नेताओं ने चुनाव से पहले चुप्पी साध रखी है। दरअसल, हम बात कर रहे हैं नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल की। बेनीवाल के गढ़ खींवसर में भी उपचुनाव होने है। राजनीतिक एक्सपर्ट्स इस सीट को सबसे मजबूत सीट मान रहे हैं। जहां बीजेपी-आरएलपी में तगड़ी फाइट देखने को मिलेगी। बीजेपी ने रेवंतराम डांगा को मैदान उतारकर चुनाव और रोचक बना दिया है। यूं कहें रेंवत के जरिए बीजेपी बेनीवाल के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी तैयारी कर चुकी है, ऐसा इसलिए भी है क्योंकि इस बार आरएलपी का चेहरा हनुमान बेनीवाल नहीं होंगे। इस सीट पर वह किसी प्रत्याशी बनाते हैं,इसपर सभी की निगाहें टिकी हैं। बता दें, लोकसभा चुनाव जीतने पर बेनीवाल ने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था।
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पिछले चुनावों में मिली थी कड़ी टक्कर
2023 में हुए विधानसभा चुनाव में खींवसर सीट पर ऐसी टक्कर देखने को मिली थी जिसकी उम्मीद शायद खुद हनुमान बेनीवाल ने की हो। जो सीट उनका गढ़ मानी जाती है वहां वह केवल दो हजार वोटों से जीते थे। ऐसे में खुद का विकल्प उतराना और कार्यकर्ताओं को मनाना बेनीवाल के लिए सबसे बड़ा टास्क है। इससे इतर लोकसभा चुनाव वह इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर लड़े थे लेकिन इस बार गठबंधन के चर्चे दूर-दूर तक नहीं है। ऐसे में उन्हें दोनो फ्रंट के लिए तैयार रहना होगा। रेवंतराम खींवसर में अच्छा जनाधार रखते हैं, उन्हें चुनौती देने के लिए बेनीवाल के कद का कोई प्रत्याशी चाहिए होगा,हालांकि कयास ये भी हैं वह अपने परिवार से किसी को उतार सकते हैं। 2019 में हुए उपचुनावों में उन्होंने भाई नारायण बेनीवाल को मैदान में उतारा था। कुलमिलाकर वह उपचुनाव के सियासी रण में अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। बीजेपी में ज्योति मिर्धा तो कांग्रेस का हरेंद्र मिर्धा परिवार बेनीवाली से सियासी अदावत रखथा है। ऐसे में हर कोई उन्हें इस सीट पर चित होते देखना चाह रहा है।
चुनौती को अवसर में बदलेंगे बेनीवाल ?
भले चुनावी मैदान में बेनीवाल अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं। उन्होंने एक साथ कांग्रेस-बीजेपी का सामना करने पड़े लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि वह साहनुभूति कार्ड भी खेल सकते हैं। अभी तक के चुनावों को देखें तो इस कार्ड ने हमेशा उनका साथ दिया है। इस बार बेनीवाल जाटों के साथ एससी वोटर्स पर भी फोकस बनाए हुए हैं। देखा जाए तो बेनीवाल को ताकतवर उनके वोकल समर्थक बनाते हैं, जो हर स्थिति में साथ खड़े रहते हैं। राजस्थान के युवाओं में बेनीवाल की दिवानगी सिर चढ़कर बोलती है। ऐसे मे एससी वोटर्स को साधना चुनाव में फायदा दिला सकता है,और चुनावी नतीजे उनके पक्ष में हो सकते हैं,हालांकि ये कितना सही बैठता है ये तो वक्त बताएगा।