Rajasthan News: जनजाति गौरव दिवस: सम्मान और स्मरण, रंगों से सराबोर जनजातीय जीवन, जंगल की धड़कन, पढ़ें पूरी खबरें
छात्रों ने उत्साहपूर्वक चर्चा में भाग लिया। उनका मानना था कि जनजातियां न केवल जंगलों पर आश्रित हैं, बल्कि उनकी संरक्षक भी हैं। अंग्रेजों द्वारा उन्हें जानबूझकर 'ट्राइब' कहकर पिछड़ा दिखाने का प्रयास किया गया।
जनजाति गौरव दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर के राष्ट्रीय आयुर्वेद संस्थान में एक विचारोत्तेजक संगोष्ठी का आयोजन हुआ। विद्यार्थियों और प्रशिक्षुओं से भरे सभागार में मुख्य वक्ता मनोज कुमार ने 'जनजाति' शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि ये संविधान सम्मत शब्द है, जिसे वनवासी आदि भी कहा जाता है। उन्होंने प्राचीन भारत की त्रि-स्तरीय व्यवस्था – नगर, ग्राम और वन – का जिक्र करते हुए समझाया कि वनों में रहने वाले समुदाय 'वनवासी' कहलाए।
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जनजातियों का योगदान
छात्रों ने उत्साहपूर्वक चर्चा में भाग लिया। उनका मानना था कि जनजातियां न केवल जंगलों पर आश्रित हैं, बल्कि उनकी संरक्षक भी हैं। अंग्रेजों द्वारा उन्हें जानबूझकर 'ट्राइब' कहकर पिछड़ा दिखाने का प्रयास किया गया। वास्तव में, जनजातियां भारत की सभ्यता और संस्कृति की सच्ची संरक्षक हैं, जिन्होंने कभी अंग्रेजी हुकूमत को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से पहले ही दुधा, भगवान बिरसा मुंडा, काली बाई, गोविन्द गुरु जैसे अनेक जनजातीय नायकों ने देश के लिए बलिदान दिया।
जनजाति गौरव दिवस
मनोज कुमार ने बताया कि जनजाति गौरव दिवस जनजातीय योगदान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक माध्यम है। 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर ये दिवस मनाया जाता है, जिन्होंने जनजातियों को संगठित कर स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जनजातीय संस्कृति और परंपरा
चर्चा के दूसरे चरण में रानी दुर्गावती, शबरी, केवट, नाना भाई खांट, तिलका मांझी जैसे अन्य महानायकों के योगदान पर प्रकाश डाला गया। ये भारत के लिए गर्व की बात है कि आज देश के सर्वोच्च पद पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू विराजमान हैं, जबकि कई विकसित देशों में मूल निवासियों को ऐसे अवसर नहीं मिलते। कार्यक्रम ने जनजातीय संस्कृति, कला और उनके अमूल्य योगदान को रेखांकित किया।