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17 साल की शीतल के नहीं हैं दोनों हाथ, वैष्णो देवी बोर्ड से खेलकर पेरिस पैरा ओलंपिक में रचा इतिहास, जानिए शीतल की कहानी!

भारत की एथलीट शीतल देवी ने पैरालंपिक खेलों में कमाल किया है। उन्होंने शुक्रवार को पैरालंपिक खेलों में विश्व रिकॉर्ड तोड़ा, लेकिन फिर एक अंक से किसी और एथलीट ने उनका रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस तरह वह पहले राउंड में दूसरे स्थान पर रही थीं और अंतिम-16 में पहुंचने में कामयाब रही थीं।

17 साल की शीतल के नहीं हैं दोनों हाथ, वैष्णो देवी बोर्ड से खेलकर पेरिस पैरा ओलंपिक में रचा इतिहास, जानिए शीतल की कहानी!
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पेरिस पैरालंपिक 2024 की शुरुआत 28 अगस्त से हो चुकी है। जहां पर भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रच दिया है। कांग्रेस प्रमुख वाड्रा ने भी उनके इस करतब पर बधाई दी है। लोग शीतल देवी के जज्बे को जानकर उनके बारे में जानना चाहते हैं, तो चलिए आपको जम्मू के एक छोटे से गांव से निकली 17 साल की शीतल के बारे में बताते हैं....

प्रिंयका गांधी ने दी बधाई

पेरिस पैरा ओलंपिक में शीतल देवी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रच दिया है। जिसपर कांग्रेस प्रमुख प्रियंका गांधी ने एक्स पर लिखा- ‘पेरिस पैरालंपिक में भारतीय तीरंदाज शीतल देवी ने वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़कर इतिहास रचा है। जम्मू-कश्मीर के एक किसान परिवार में जन्मी शीतल देवी का संघर्ष, परिस्थितियों को हराने का उनका जज्बा और बाधाओं के पहाड़ लांघ जाने वाला आसमान सा हौसला पूरे देश के लिए प्रेरणा है। शीतल देवी को ढेरों बधाइयां और उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएं’

कौन हैं शीतल देवी?

शीतल देवी का परिचय देने से पहले अगर आप उनका ये वीडियो देखें, तो वो जज्बे का दूसरा नाम हैं। जम्मू कश्मीर की एक छोटे गांव किश्तवाड़ की रहने वाली शीतल देवी ने बिना हाथों के देश के लिए पैरालंपिक में देश को मेडल जीतना का जिम्मा उठाया है। शीतल देवी के पिता किसान हैं और मां घर में बकरियां संभालती हैं। शीतल 17 साल की हैं, उनके दोनों हाथ नहीं हैं। जानकारी के मुताबिक, वो फोकोमेलिया नाम की बीमारी से जन्मजात पीड़ित हैं। लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी भी हार नहीं मानी। वह पैरों से ही तीरंदाजी करती हैं। जैसा कि वीडियो में भी देख सकते हैं शीतल देवी कुर्सी पर बैठी हैं, अपने दाहिने पैर से धनुष उठाती हैं, फिर दाहिने कंधे से डोरी खींचती हैं और अपने जबड़े की ताकत से तीर छोड़ती हैं। उनकी इस कला को देखकर हर कोई हैरान रह जाता है।

पेरिस पैरा-ओलंपिक में रचा इतिहास

भारत की एथलीट शीतल देवी ने पैरालंपिक खेलों में कमाल किया है। उन्होंने शुक्रवार को पैरालंपिक खेलों में विश्व रिकॉर्ड तोड़ा, लेकिन फिर एक अंक से किसी और एथलीट ने उनका रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस तरह वह पहले राउंड में दूसरे स्थान पर रही थीं और अंतिम-16 में पहुंचने में कामयाब रही थीं। शीतल ने गुरुवार को क्वालिफाइंग रैंकिंग राउंड में 720 में से 703 का स्कोर किया। रैंकिंग राउंड का 698 अंकों के साथ पिछला विश्व रिकॉर्ड ग्रेट ब्रिटेन की फोएबे पीटरसन के नाम था, जिसे शीतल ने पीछे छोड़ दिया। हालांकि, तुर्किये की ओजनूर गिर्डी ने 704 अंकों के साथ नया विश्व रिकॉर्ड बनाया और शीर्ष स्थान पर रहकर अंतिम-16 में पहुंचीं। शीतल कुमारी दुनिया की पहली महिला तीरंदाज हैं, जो हाथ नहीं होने के बावजूद तीरंदाजी में कमाल कर रही हैं।

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आपको बता दें, पैरा ओलंपिक की शुरुआत 28 अगस्त से हुई है और ये खेल आठ सितंबर तक खेल खेले जाएंगे। दुनिया भर के लगभग 4,400 एथलीट 22 खेलों में भाग लेने वाले हैं। वहीं, भारत के 84 पैरा एथलीट इस बार पैरालंपिक में हिस्सा लेंग। शीतल देवी बिना हाथों के प्रतिस्पर्धा करने वाली दुनिया की पहली और एकमात्र सक्रिय महिला तीरंदाज भी हैं। बता दें, 2023 में उन्होंने पैरा-तीरंदाजी वर्ल्ड चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था, जिससे उन्हें पेरिस खेलों के लिए क्वालिफाई करने में मदद मिली थी।

एशियाई खेलों में जीता था गोल्ड

शीतल देवी ने एशियाई पैरा गेम्स 2023 में ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए चीन के हांगझाऊ में हुए एशियाई पैरा खेलों में दो गोल्ड मेडल समेत तीन मेडल जीते थे और इतिहास रच दिया था। आपको बता दें, वो एक ही संस्करण में दो गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला भी बनी थीं। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।

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माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड में खेलकर हुई शुरुआत

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शीतल देवी जम्मू-कश्मीर के एक छोटे से गांव में किसान परिवार में जन्मी थीं, साल 2022 में शीतल की जिंदगी का निर्णायक मोड़ आया। जब उन्होंने एक परिचित की सिफारिश पर जम्मू के कटरा में श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड खेल परिसर का दौरा किया, जो उनके घर से लगभग 200 किमी (124 मील) दूर है। वहां उनकी मुलाकात अभिलाषा चौधरी और उनके दूसरे कोच कुलदीप वेदवान से हुई, जिन्होंने उन्हें तीरंदाज़ी की दुनिया से परिचित कराया। वह जल्द ही कटरा शहर में एक ट्रेनिंग शिविर में चली गईं थी। इसके बाद उन्होंने कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा और आज उन्होंने पेरिस पैरा-ओलंपिक में इतिहास रच दिया है।