शेख हसीना की ज़िंदगी 'हसीन' तो नहीं! जब परिवार की मौत के बीच जिंदा बची थी और भारत में ली 6 साल तक शरण, जानिए पूरी कहानी
Sheikh Hasina: शेख हसीना ने पहली बार अपनी जान नहीं बचाई है। 76 साल की शेख हसीना ग्रेनेड हमले का शिकार हो चुकी हैं, जिसमें उन्होंने अपनी जान के खतरे को बिल्कुल पास से अनुभव किया था।
भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना अब इस्तीफा देकर सुरक्षित स्थान की तलाश में निकल चुकी हैं। उनके साथ उनकी बहन है और उनके देशवासियों का गुस्सा। बताया जा रहा है कि शेख हसीना को सेना ने इस्तीफा देने के बाद देश छोड़ने के लिए महज 45 मिनट का ही समय दिया था। जिसमें शेख हसीना सफल हुई और अपना देश छोड़ निकल आईं।
लेकिन ये पहली बार नहीं है, जब 76 साल की शेख हसीना ने ऐसा कुछ देखा या किया हो। इससे पहले भी वो ग्रेनेड हमले का शिकार हो चुकी हैं, जिसमें उन्होंने अपनी जान के खतरे को बिल्कुल पास से अनुभव किया था।
शेख हसीना पहले भी मौत को मात दे चुकी है। साल 2004 में उनपर ढाका में बंगबंधु एवेन्यू पर, अवामी लीग के केंद्रीय कार्यालय के सामने एक रैली में जनता के संबोधन के दौरान ग्रेनेड हमला हुआ था। इस हमले में 24 लोगों की मौत हो गई और 300 से अधिक घायल हो गए थे। उस हमले में शेख हसीना की हत्या की कोशिश थी, लेकिन हत्या के प्रयास में हसीना बाल-बाल बच गईं थीं।
हालांकि इससे पहले भी शेख हसीना को मारने की कोशिश कई बार की जा चुकी थी। इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले चार दशकों में 19 बार शेख हसीना को मारने की कोशिश हुई है, जिसमें वो बार-बार मौत को मात देते हुए बच गईं। पहली बार में जब उनके परिवार की हत्या हुई, तब वो विदेश में पढ़ाई कर रही थीं, इसी के चलते उनकी जान बच गई। इसके बाद एक के बाद एक कभी रैलियों में तो कभी सभाओं में उनपर कई हमले हुए।
शेख हसीना की जिंदगी में साल 1975 किसी तूफान से कम नहीं था। इस साल बांग्लादेश की सेना ने बगावत कर दी थी और शेख हसीना के परिवार वालों के खिलाफ विद्रोह छेड़ दिया था। ऐसे में हथियारबंद लड़ाकों ने शेख हसीना की मां, उनके पिता शेख मुजीबुर रहमान और तीन भाइयों को घर में घुसकर मौत के घाट उतार दिया।
उस वक्त शेख हसीना अपने पति वाजिद मियां और छोटी बहन के साथ यूरोप में थीं। इसी के चलते उनकी जान बच गई। माता-पिता और तीन भाईयों की हत्या के बाद शेख हसीना कुछ समय जर्मनी में रहीं, फिर इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हें भारत में शरण दी। इसके बाद वो अपनी बहन के साथ दिल्ली आ गईं और 6 सालों तक भारत में रहीं।