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सीएम अरविंद केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार, केजरीवाल को सिर्फ सत्ता की चाह

कहते हैं जब राजनीति में किसी के सितारे बुलंद होते हैं तो वो फर्श से अर्श पर पहुंच जाता है और जब ग्रहों की चाल बदलती है तो आसमान से जमीन पर आने में देर भी नहीं लगती. अन्ना आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. दो-दो बार दिल्ली की जनता ने उनको दिल्ली की गद्दी सौंप दी. लेकिन वक्त का फेर देखिए कि नई आबकारी नीति को लेकर केजरीवाल के सितारे ऐसे गर्दिश में गए कि दिल्ली के सीएम होते हुए आज वो तिहाड़ जेल में बंद हैं. केजरीवाल की मुश्किलें यहीं कम होती नहीं दिख रही. एक तरफ तो ईडी और सीबीआई गवाहों के आधार पर उनको शराब घोटाले का किंगपिन बता रही है, तो वहीं दूसरी ओर कोर्ट ने बच्चों की किताबों को लेकर कुछ ऐसा कहा कि जो उनकी किरकिरी का सबब बन गया है.

सीएम अरविंद केजरीवाल को दिल्ली हाईकोर्ट की फटकार, केजरीवाल को सिर्फ सत्ता की चाह

कहते हैं जब राजनीति में किसी के सितारे बुलंद होते हैं तो वो फर्श से अर्श पर पहुंच जाता है और जब ग्रहों की चाल बदलती है तो आसमान से जमीन पर आने में देर भी नहीं लगती. अन्ना आंदोलन के बाद अरविंद केजरीवाल के साथ कुछ ऐसा ही हुआ था. दो-दो बार दिल्ली की जनता ने उनको दिल्ली की गद्दी सौंप दी. लेकिन वक्त का फेर देखिए कि नई आबकारी नीति को लेकर केजरीवाल के सितारे ऐसे गर्दिश में गए कि दिल्ली के सीएम होते हुए आज वो तिहाड़ जेल में बंद हैं. केजरीवाल की मुश्किलें यहीं कम होती नहीं दिख रही. एक तरफ तो ईडी और सीबीआई गवाहों के आधार पर उनको शराब घोटाले का किंगपिन बता रही है, तो वहीं दूसरी ओर कोर्ट ने बच्चों की किताबों को लेकर कुछ ऐसा कहा कि जो उनकी किरकिरी का सबब बन गया है.

दिल्ली की सड़कों से लेकर देश की सर्वोच्च अदालत तक आम आदमी पार्टी और बीजेपी के बीच शराब घोटाले को लेकर नूराकुश्ती जारी है. वहीं ईडी और सीबीआई के चक्कर में दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ऐसे फंसे हैं कि अदालत से उनको राहत मिलती नहीं दिख रही. इन सबके बीच जिस शिक्षा नीति को लेकर आम आदमी पार्टी के स्थानीय नेता से लेकर पूरी लीडरशिप कसीदे पढ़ती थी. उसको लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने ऐसी फटकार लगाई है, जिसने बीजेपी को उसके ऊपर हमला बोलने का एक नया मौका दे दिया है.

केजरीवाल को सिर्फ सत्ता की चाह : दिल्ली हाईकोर्ट

दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें ये कहा गया था कि नगर निगम की आपसी खींचतान के कारण एमसीडी स्कूलों में पढ़ने वाले 2 लाख स्टूडेंट्स को पाठ्य पुस्तकें नहीं मिल पाई हैं और वे टिन शेड में पढ़ाई करने को मजबूर हैं. इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली सरकार की दिलचस्पी सिर्फ सत्ता में बने रहने की है और गिरफ्तारी के बावजूद इस्तीफा न देकर अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय हित के ऊपर निजी हित को प्राथमिकता दी है.

याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट केवल यहीं तक नहीं रूका. कोर्ट ने शहरी विकास मंत्री सौरभ भारद्वाज पर भी नाराजगी जाहिर की और कहा उन्होंने छात्रों की दुर्दशा पर आंखें मूंद ली हैं और घडियाली आंसू बहा रहे हैं.

दिल्ली हाईकोर्ट की इस कड़ी टिप्पणी को लेकर आम आदमी पार्टी ने जवाब दाखिल करते हुए कहा कि उन्हें सौरभ भारद्वाज से निर्देश मिले हैं कि एमसीडी की स्थायी समिति की गैरमौजूदगी में किसी उपयुक्त प्राधिकारी को शक्तियां सौंपने के लिए मुख्यमंत्री की सहमति की जरूरत होगी, जो अभी हिरासत में हैं. साथ ही अपना बिंदुवार जवाब देते हुए कहा कि दिल्ली के एलजी के ऊपर ठीकरा फोड़ने की कोशिश की और कहा.

AAP का कोर्ट में जवाब

LG ने गैरकानूनी तरीके से मनोनीत पार्षदों की नियुक्ति की. LG के गैरकानूनी तरीका अपनाने से MCD की स्टैंडिंग कमिटी नहीं बनी. स्टैंडिंग कमिटी नहीं बनने के लिए LG VK सक्सेना जिम्मेदार हैं. स्टैंडिंग कमिटी न बनने की वजह से MCD का काम रुका है. स्टैंडिंग कमिटी का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है.

केजरीवाल सरकार पर बीजेपी का हमला

दिल्ली हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद से बीजेपी केजरीवाल सरकार के ऊपर हमलावर है. बीजेपी नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि हाईकोर्ट की टिप्पणी के बाद तो अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के सीएम के पद से तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. तो वहीं मनोज तिवारी ने कहा कि सत्ता के लोभ में केजरीवाल दिल्ली और बच्चों के साथ नाइंसाफी कर रहे हैं.

जेल से किसी राज्य की सरकार चलाना ये कितना मुश्किल काम है ये दिल्ली एमसीडी में पढ़ने वाले बच्चों की किताबें जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में आ रही किल्लत को देखकर समझ में आता है. ऐसे में आने वाले समय में केजरीवाल जेल में बैठकर सरकार चलाने की जिद पर अड़े रहे तो दिल्ली एमसीडी में पढ़ने वाले उन 2 लाख बच्चों के भविष्य का क्या होगा जो अब तक अपनी किताबों के आने की बाट जोह रहे हैं.