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रियल लाइफ के 'फुनसुख वांगडू' के आगे बड़े-बड़े वैज्ञानिक फेल! क्या है उनका असली सच जो अब तक नहीं जानते आप?

थ्री इडियट्स फिल्म असल जिंदगी के फुनसुख वांगडू यानी सोनम वांगचुक पर आधारित थी। सोनम वही शख्स हैं जो अपने नए-नए आइडियाज पर बेहतरीन काम करने के लिए जाने जाते हैं। उनका सबसे बड़ा आविष्कार पहाड़ों पर तैनात सेना के जवानों के लिए एक ऐसा टेंट बनाना है।

रियल लाइफ के 'फुनसुख वांगडू' के आगे बड़े-बड़े वैज्ञानिक फेल! क्या है उनका असली सच जो अब तक नहीं जानते आप?

2010 में एक फिल्म रिलीज हुई थी, इसका नाम था 'थ्री इडियट्स'। यह इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे तीन दोस्तों की कहानी है। फिल्म (3 इडियट्स) में अभिनेता आमिर खान ने फुनसुख वांगडू का किरदार निभाया था। फिल्म में उन्हें मुश्किल वक्त में अपने दोस्तों की मदद करते हुए दिखाया गया है। इसके अलावा फुनसुख को विज्ञान और तकनीक से जुड़े कई दिलचस्प आइडिया पर काम करते हुए दिखाया गया है। उनके पास कई पेटेंट भी हैं।

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'थ्री इडियट्स' फिल्म सोनम वांगचुक पर आधारित थी

ये फिल्म असल जिंदगी के फुनसुख वांगडू यानी सोनम वांगचुक पर आधारित थी। सोनम वही शख्स हैं जो अपने नए-नए आइडियाज पर बेहतरीन काम करने के लिए जाने जाते हैं। उनका सबसे बड़ा आविष्कार पहाड़ों पर तैनात सेना के जवानों के लिए एक ऐसा टेंट बनाना है, जो माइनस 20 डिग्री सेल्सियस पर भी अंदर का तापमान 15 डिग्री सेल्सियस पर बनाए रखता है। इसकी खासियत यह है कि पहाड़ों में सैनिकों के तंबुओं को गर्म रखने के लिए कोयला या मिट्टी के तेल जैसे जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल करने के बजाय सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। उनकी इस अनूठी खोज को पहाड़ों में पर्यावरण संरक्षण के लिहाज से अहम माना जा रहा है।

सेना के लिए सोनम के अनोखे विचार

पहाड़ों में जीवन को आसान बनाने के लिए सोनम के पास हमेशा अपने अनोखे विचार होते हैं, जिन पर वह काम करते रहते हैं। उनके ऐसे ही एक विचार के परिणामस्वरूप लद्दाख के त्रिकोणीय बर्फ के स्तूप बने।

लद्दाख जैसे सुदूर पहाड़ी इलाकों में बारिश कम होने की वजह से पानी की समस्या बनी रहती है। सूखे की समस्या से जूझ रहे लद्दाख के लिए सोनम वांगचुक ने एक कृत्रिम ग्लेशियर बनाया है। गर्मियों में इसके जरिए सिंचाई भी की जाती है। सोनम ने इस कृत्रिम ग्लेशियर का नाम 'आइस स्तूप' रखा है।

इनके निर्माण से पानी एकत्र किया गया, जिससे लद्दाख के लोगों को पानी की कमी से काफी हद तक निजात मिली। इस कार्यक्रम को 'ऑपरेशन होप' नाम दिया गया। सोनम की इस खोज ने उन्हें पूरी दुनिया में एक अलग पहचान दिलाई है।

1988 में विदेशी शिक्षा प्रणाली के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

वे 1988 में छात्रों द्वारा स्थापित लद्दाख के छात्र शैक्षिक और सांस्कृतिक आंदोलन (SECOML) के संस्थापक-निदेशक भी हैं। संस्थापक छात्रों के अनुसार, वे विदेशी शिक्षा प्रणाली के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसके अलावा, सोनम SECMOL परिसर को डिज़ाइन करने के लिए भी जाने जाते हैं जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा पर चलता है, और खाना पकाने, प्रकाश या हीटिंग के लिए जीवाश्म ईधन का इस्तेमाल नहीं करता है।

सोनम वांगचुक हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लद्दाख के निदेशक भी हैं। वे लद्दाख में शिक्षाविद और पर्यावरणविद् की भूमिका भी निभाते हैं। उन्हें अपनी नई तकनीकों के ज़रिए समाज में जीवन को आसान बनाने के लिए वर्ष 2018 में मैग्सेसे पुरस्कार मिल चुका है। उन्होंने लद्दाखी बच्चों और युवाओं का समर्थन करने और उन छात्रों को प्रशिक्षित करने के उद्देश्य से 1988 में SECMOL की स्थापना की।

9 साल की उम्र तक कोई औपचारिक शिक्षा नहीं

सोनम वांगचुक का जन्म 1966 में लेह के उलेटोक्पो गांव में हुआ था। सोनम को 9 साल की उम्र तक कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली, क्योंकि उनके गांव में कोई स्कूल नहीं था। 9 साल की उम्र में उन्हें श्रीनगर के एक स्कूल में भर्ती कराया गया था।