मैहर की मां शारदा मंदिर का यह राज जानकर आप भी हो जायेंगे हैरान,जानिए क्या है राज
सतना जिले में मैहर तहसील है. यहां त्रिकुट पर्वत पर 600 फीट ऊंचाई पर मां शारदा का यह मंदिर स्थापित है. माता के दरबार में पहुंचने के लिए भक्तों को 1064 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. जिसके बाद माता शारदा के भव्य मंदिर में भक्त पहुंचते हैं.
भारत में मां दुर्गा के कई सिद्ध पीठ हैं, इन्हीं में से एक है मैहर का मां शारदा का मंदिर. मध्यप्रदेश के सतना जिले में मैहर तहसील है. यहां त्रिकुट पर्वत पर 600 फीट ऊंचाई पर मां शारदा का यह मंदिर स्थापित है. माता के दरबार में पहुंचने के लिए भक्तों को 1064 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. जिसके बाद माता शारदा के भव्य मंदिर में भक्त पहुंचते हैं. इस शक्तिपीठ में मां शारदा की काले रंग की सुंदर सी प्रतिमा है, जिसे देखकर हर भक्त भाव से भर जाता है.
माता सती का यहां गिरा था हार
कहा जाता है कि यही वह स्थान है, जहां माता सती का हार गिरा था. मैहर का शाब्दिक अर्थ होता है माई (मां) का हार. कथाओं के अनुसार, जब सती हवनकुंड में प्रवेश कर गईं, तो भगवान शिव उनके शरीर को लेकर निकल पड़े, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से उसे काटा तो उसके हिस्से और आभूषण पृथ्वी पर अलग-अलग स्थानों पर गिर गए, यही वो स्थान हैं जो बाद में शक्तिपीठ बने.
आल्हा और ऊदल ने की थी मंदिर की खोज
कथाओं के अनुसार वीर आल्हा ने इस जगह पर 12 सालों तक तपस्या की थी और आल्हा ऊदल ने ही इस मंदिर की खोज की. वो शारदा माता को माई कहकर पुकारते थे. इसलिए यहां माता को शारदा माई कहा जाने लगा. ऐसी भी मान्यता है कि यहां आदिशंकराचार्य ने सबसे पहले पूजा की थी और 559 वि. में माता की मूर्ति स्थापना की.
आल्हा आज भी करते हैं माई का पहला श्रंगार
इस मंदिर को लेकर तमाम कथाएं प्रचलित हैं. लोगों का ऐसा मानना है कि शयन आरती के बाद पुजारी मंदिर के द्वार को बंद कर देते हैं. इसके बाद पूरा मंदिर अंदर से घंटी और पूजा की आवाज़ से गूंज उठता है. लोगों का मानता है कि वीर आल्हा यहां आज भी सुबह की पहली आरती करते हैं. पुजारियों का कहना है कि आल्हा ही मंदिर में माता का पहला श्रृंगार करते हैं. सुबह जब मंदिर के पट खोले जाते हैं तो यहां पूजा हो चुकी मिलती है. लोगों का कहना है कि इसका पता वैज्ञानिक भी नहीं लगा सके हैं.