Budget 2024: ड्रीम से लेकर ब्लैक बजट, देश के इन बजटों की हुई सबसे ज्यादा चर्चा, जानें एक क्लिक में
पीएम मोदी के नेतृक्व में चल रही एनडीए सरकार अपने तीसरे कार्यकाल का पहला पूर्ण बजट 23 जुलाई को पूरे देश के सामने पेश करेंगी. जिसको लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लगभग तैयारियां पूरी कर ली है. सीतारण का ये सातवां पूर्ण बजट होगा. आइए आज देश के उन बजटों में एक नजर डालते है. जिनकी चर्चा आज भी की जाती है.
- भारत का पहला बजट (1947)
आरके शानमुखम चेट्टी ने देश की आजादी के बाद भारत सरकार का पहला बजट देश के सामने पेश किया था. यह बजट 13 अगस्त 1947 से लेकर 31 मार्च 1948 तक के लिए पेश किया था. इस बजट में ये भी तय किया गया था कि सितंबर तक भारत और पाकिस्तान में एक ही करेंसी का इस्तेमाल किया जाएगा. इस बजट प्रमुख रूप से आजादी और विभाजम के बद की आर्थिक चुनौतियों को शामिल किया गया था.
- ब्लैक बजट (1973)
इंदिरा गांधी की सरकार में वित्त मंत्री यशवंतराव बी. चव्हाण 1973-74 का बजट पेश किया था. इस बजट में देश को 550 करोड़ राजकीय घाटा होने के कारण इसे ब्लैक बजट कहा जाता है. ये उस समय अभूतपूर्ण आकंड़ा था. यह पेश उस समय आया था जह पूरे देश आर्थिक उथल-पुथल का दौर जारी था.
- गाजर और छड़ी बजट (1986)
तात्कालीन वित्त मंत्री वी.पी. सिंह द्वारा प्रस्तुत 1986 के बजट को आज भी गाजर और छड़ी बजट कहा जाता है. इस बजट में विकास की नई रफ्तार, टैक्स चोरी को रोकने और कालेधन पर अकुंश लगाने के लिए कई तरह उपायों को शामिल किया था. यह भारत सरकार द्वारा लाइसेंस राज को खत्म करने का पहला कदम था. सरकार ने करों के व्यापक प्रभाव को खत्म करने और निर्माताओं और उपभोक्तओं को सीधा लाभ पहुंचने के लिए संशोधित मूल्य वर्धित कर (MODVAT) लेकर आए थे. साथ ही काला बाजारी, कर चोरों और तस्करों के खिलाफ कड़े कदम उठाए गए थे.
- युगान्तकारी बजट (1991)
1991 में मनमोहन सिंह द्वारा प्रस्तुत बजट को 'युगांतकारी बजट' के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसने देश में आर्थिक उदारीकरण के युग की शुरुआत की थी। इसे अब तक प्रस्तुत किए गए सबसे प्रतिष्ठित बजटों में से एक माना जाता है। यह अपने आर्थिक उदारीकरण सुधारों के लिए जाना जाता है, इस बजट ने एक बंद अर्थव्यवस्था से एक खुले बाजार में बदलाव को चिह्नित किया। प्रमुख सुधारों में आयात शुल्क में कमी, उद्योगों का विनियमन और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए भारतीय रुपये का अवमूल्यन शामिल था। यह बजट ऐसे समय में प्रस्तुत किया गया था जब भारत आर्थिक पतन के कगार पर था, इसने सीमा शुल्क को 220 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया और निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कदम उठाए।
- ड्रीम बजट (1997)
पी चिदंबरम द्वारा प्रस्तुत 1997-98 के बजट को 'ड्रीम बजट' कहा गया। इसमें आयकर दरों को कम करने, कॉर्पोरेट कर अधिभार को हटाने और कॉर्पोरेट कर दरों को कम करने सहित कई आर्थिक सुधार पेश किए गए। व्यक्तियों के लिए अधिकतम सीमांत आयकर दर 40 प्रतिशत से घटाकर 30 प्रतिशत और घरेलू कंपनियों के लिए 35 प्रतिशत कर दी गई। बजट में काले धन की वसूली के लिए स्वैच्छिक आय प्रकटीकरण योजना (वीडीआईएस) भी शुरू की गई। इसने सीमा शुल्क को भी घटाकर 40 प्रतिशत कर दिया और उत्पाद शुल्क संरचना को सरल बना दिया।
- मिलेनियम बजट (2000)
वर्ष 2000 में यशवंत सिन्हा द्वारा प्रस्तुत बजट सूचना प्रौद्योगिकी पर केंद्रित था। बजट में आईटी और दूरसंचार को बढ़ावा देने के उपाय शामिल थे, जिससे भारत को आईटी पावरहाउस के रूप में स्थापित करने में मदद मिली। वर्ष 2000 में यशवंत सिन्हा के मिलेनियम बजट को देश के सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) उद्योग के विकास के लिए रोड मैप के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
- रोलबैक बजट (2002)
एनडीए सरकार के दौरान यशवंत सिन्हा द्वारा प्रस्तुत 2002-03 के बजट को 'रोलबैक बजट' के नाम से जाना गया। इसे यह नाम इसलिए मिला क्योंकि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा कई प्रस्तावों और नीतियों को वापस ले लिया गया था.
- रेलवे विलय (2017)
वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत 2017 का केंद्रीय बजट कई प्रमुख कारणों से उल्लेखनीय था। यह फरवरी के अंतिम कार्य दिवस की पारंपरिक तिथि के बजाय 1 फरवरी को प्रस्तुत किया जाने वाला पहला बजट था। इसके अतिरिक्त, 2017 के बजट में रेल बजट को आम बजट के साथ मिला दिया गया और यह नोटबंदी के बाद का पहला बजट था, जिसका उद्देश्य काले धन और नकली मुद्रा पर अंकुश लगाना था। 2017 के केंद्रीय बजट का उद्देश्य आर्थिक विकास को बढ़ावा देना, डिजिटलीकरण को बढ़ावा देना और समावेशी विकास सुनिश्चित करना था।