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बुजुर्ग मां को रुला रहे थे खून के आंसू, अब कोर्ट ने सीखाया ऐसा सबक, हो गई बोलती बंद

दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में एक 80 वर्षीय महिला के बेटे, बहू, और पोते-पोतियों को घर खाली करने का आदेश दिया है, जहां वे सभी साथ रह रहे थे। यह फैसला बुजुर्ग महिला के लिए एक सुरक्षित, सम्मानजनक, और उपेक्षा मुक्त माहौल सुनिश्चित करने के लिए लिया गया है।

बुजुर्ग मां को रुला रहे थे खून के आंसू, अब कोर्ट ने सीखाया ऐसा सबक, हो गई बोलती बंद

भारत में वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल के लिए विभिन्न कानून और योजनाएं शुरू की गई हैं और उन पर बहुत ध्यान दिया जा रहा है। आज के समय में लोग अपने कामों में ज्यादा व्यस्त हो गए हैं और इतना ज्यादा परेशान है कि इसका गुस्सा अपने बूढ़े मां बाप पर निकालते हैं।

इस समय एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला का मामला खूब वायरल हो रहा है जो दिल्ली की निवासी है। दिल्ली हाई कोर्ट ने उनके बेटे, बहू, और पोते-पोतियों को घर को खाली करने का आदेश दिया है जिसमें वह एक साथ रह रहे थे। हाई कोर्ट का ये निर्देश बुजुर्ग महिला के लिए एक सम्मानजनक और सराहनीय है।

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बूढ़ी महिला ने अदालत से लगाई गुहार

दरअसल बूढ़ी महिला ने अदालत से गुहार लगाई थी कि उनके बेटे और परिवार उनकी देखभाल नहीं करते हैं, और उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हैं। अदालत ने इस मामले को गंभीरता से लेते ये फैसला सुनाया है कि माता-पिता की देखभाल न करना और उन पर अत्याचार करना एक तरह का अपराध है, जिसके लिए दोषी को जेल भी भेजा जा सकता है।

सीनियर सिटिजन ने लगाया बेटे और बहू पर आरोप

सीनियर सिटिजन महिला ने अपने बेटे और बहू पर उत्पीड़न और दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया है। वह संपत्ति की इकलौती और पंजीकृत स्वामी हैं, उनके बेटे और बहू उनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं और किसी ने भी उनकी और उनके पति की देखभाल नहीं की।

धीमी मौत का भी किया दावा

इसके अलावा उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके बेटे और बहू के बीच लड़ाई से भी लगातार असुविधा और तनाव होता है जो उनके लिए ‘धीमी मौत’ की तरह है। इस मामले पर न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने कहा कि बहू का निवास कोई अपरिहार्य अधिकार नहीं है, और इस अधिकार पर वरिष्ठ नागरिक अधिनियम के अंतर्गत वरिष्ठ नागरिकों को प्रदत्त संरक्षण के साथ विचार किया जाना चाहिए।

इस मामले पर जज ने कहा, ‘ये मामला सामाजिक मुद्दे को उजागर करता है, जहां वैवाहिक कलह न केवल दंपति के जीवन को, बल्कि वरिष्ठ नागरिकों को भी काफी प्रभावित करता है। ऐसे में बुजुर्ग याचिकाकर्ताओं को अपने जीवन के नाजुक समय में लगातार पारिवारिक विवादों और अनावश्यक संकट का सामना करना पड़ता है।