लोकसभा चुनाव के बीच गरमाया मुस्लिम आरक्षण का मुद्दा, किसको फायदा और किसको नुकसान होगा?
देश में लोकसभा चुनाव के बीच मुस्लिम आरक्षण को लेकर सियासत भी गरमा गई है. एक ओर कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों को दिए आरक्षण को रद्द कर दिया है.
देश में लोकसभा चुनाव के बीच मुस्लिम आरक्षण को लेकर सियासत भी गरमा गई है. एक ओर कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों को दिए आरक्षण को रद्द कर दिया है. तो वहीं दूसरी ओर यूपी में इस मुद्दे पर चर्चा गर्म हो गई है. बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया है और उत्तर प्रदेश में भी अब ओबीसी कोटे के अंदर मुस्लिम जातियों को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा पर विचार किए जाने की खबरें उठ रही हैं. ऐसे में, अब यहां सवाल उठ रहा है कि क्या इस पूरे मुद्दे का छठे और सातवें चरण में होने वाले चुनाव से कोई कनेक्शन है? क्या 80-20 वाली वोटबैंक की सियासत फिर करवट ले रही है? और कोर्ट के फैसले और यूपी सरकार के इस बयान का क्या असर होगा?. किसको फायदा और किसको नुकसान होगा?
बंगाल में भड़की आरक्षण की आग पहुंची यूपी !
OBC आरक्षण को लेकर बंगाल से उठा तूफान उत्तर प्रदेश के सियासी गलियरों तक पहुंच गया है. प्रदेश में मुस्लिम जातियों को मिलने वाले आरक्षण पर माहौल फिर गर्म है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने बड़ी बात कही है. यह बयान प. बंगाल में हाईकोर्ट के आदेश और लोकसभा चुनाव के आखिरी दो चरणों से पहले आया है. ऐसे में यूपी में इस पर ऐलान को बड़ा सियासी फैक्टर माना जा रहा है. राज्य की योगी सरकार ने ओबीसी कोटे में मुस्लिम जातियों को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा करने की बात कही है. बताया जा रहा है की इसमें इस बात की तफ्तीश की जाएगी कि मुस्लिमों के लिए ओबीसी रिजर्वेशन में हिस्सेदारी किस हिसाब से तय की गई है.
योगा सरकार का क्या है प्लान?
OBC आरक्षण को लेकर लगातार नेताओं के अलग अलग बयान सामने आ रहे हैं. ऐसे में एक बार फिर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का बयान सामने आया है. जिसमें सीएम ने कोलकाता हाई कोर्ट के OBC आरक्षण पर दिए गए बयान का स्वागत किया.
लोकसभा चुनाव के बीच आरक्षण के मुद्दे पर भी जमकर बयानबाजी हो रही है. मुस्लिम आरक्षण के बयान को लेकर सपा की तरफ से भी बयान सामने आया है. मुरादाबाद से सपा सांसद एसटी हसन ने कहा है कि मुसलमानों को भी आरक्षण मिलना चाहिए.
उधर, डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने कोलकाता हाईकोर्ट से आए फैसले और ममता बनर्जी द्वारा एतराज जताए जाने के मामले पर कहा है कि अगर ममता हाईकोर्ट के फैसले को नहीं मानती हैं तो उसे मनाने के तमाम तरीके हैं.
बंगाल में हाईकोर्ट के एक फैसले के बाद से योगी सरकार भी पुराने दस्तावेज खंगालने में जुट गई है. अब इस फैसले को समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेता हिंदू-मुस्लिम की राजनीति के खांचे में ढालने का आरोप लगा रहे हैं. आइए समझते हैं कि अरक्षण का मामला क्या है और
मुस्लिम आरक्षण पर संविधान में क्या?
भारतीय संविधान में सभी के लिए समानता की बात की गई.
इसलिए, मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता.
आर्टिकल 341 और 1950, धार्मिक आधार पर आरक्षण की व्याख्या करता है.
जाति के आधार पर आरक्षण में अनूसचित जाति में सिर्फ हिंदू ही शामिल हैं.
1956 में सिख और 1990 में बौद्ध धर्म के लोगों को इसमें शामिल किया गया.
मुसलमान और ईसाई इस कैटेगरी में आरक्षण नहीं ले सकते.
मुसलमानों के आरक्षण का आधार?
मुस्लिम जातियों को ओबीसी कोटे में आरक्षण मिलता है.
सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक तौर पर पिछड़ा होना कारण.
शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी आरक्षण.
अनुसूचित जनजातियों को 7.5 फीसदी, ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण.
12 राज्य/केंद्र शासित प्रदेशों में ओबीसी श्रेणी की केंद्रीय सूची के तहत मुसलमानों को आरक्षण.
कुछ राज्यों में मुसलमानों को 27 फीसदी से अधिक आरक्षण
कहां क्या है आरक्षण की व्यवस्था
कर्नाटक में 32% ओबीसी कोटा के भीतर मुस्लिमों को 4% उप-कोटा.
केरल में 30% ओबीसी कोटा में 12% मुस्लिम कोटा.
तमिलनाडु में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 3.5% आरक्षण.
यूपी में 27% ओबीसी कोटे के अंदर मुस्लिमों के आरक्षण की व्यवस्था.
मुस्लिम आरक्षण पर सियासत क्यों?
छह चरण के चुनाव बीत चुके हैं. अब उत्तर प्रदेश में एक चरण का चुनाव बाकी है. छठा चरण काफी अहम रहा है. छठे चरण का हिस्सा पूर्वांचल का है....... इस इलाके में जातीय समीकरण काफी मजबूत माने जाते हैं. ऐसे में बीजेपी की कोशिश यही है कि वोटर जातियों में बंटने की बजाय हिंदू एकता की छत के नीचे आ जाएं. असल में छठे और सातवें चरण में यूपी की 27 सीटों पर मतदान होने हैं. साथ ही साथ बिहार और बंगाल की कई सीटों पर भी चुनावी रण पर जनता फैसला लेगी. गौर करने वाली बात ये है कि इन राज्यों की 60 में से 16 सीट पर मुस्लिम आबादी 20 फीसदी है. यानी हार जीत का फैक्टर मुसलमान बन सकते हैं. हो सकता है इसीलिए शायद नेता अब आरक्षण, संविधान, हिंदू-मुसलमान जैसी बातों पर फोकस ज्यादा कर रहे हैं ताकि अपने अपने वोट बैंक को क्लियर मैसेज दिया जा सके.