Ratan Tata Death: कैसे होता है पारसी धर्म में अंतिम संस्कार,जानें क्या है 'टॉवर ऑफ साइलेंस'?
रतन टाटा के निधन के बाद उनके अंतिम संस्कार को लेकर चर्चा हो रही है। जानिए पारसी धर्म के अंतिम संस्कार की रीति-रिवाजों के बारे में, टॉवर ऑफ साइलेंस के बारे में, और आधुनिक समय में पारसी अंतिम संस्कार कैसे किए जाते हैं।
देश के चहेते औ उद्योगपति रतन टाटा का 9 अक्टूबर की आधी रात मुंबई के कैंडी ब्रीच अस्पताल में निधन हो गया। उन्होंने 86 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया। बताया जा रहा है,रतन टाटा की तबियत कई दिनों से खराब चल रही थी, जिस कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था,उनके निधन से बिजनेस सेक्टर में शोक की लहर है। मुकेश अंबानी से आनंद मंहिद्रा तक ने उन्हें श्रद्धांजलि दी। बता दें, रतन टाटा पारसी धर्म से ताल्लुक रखते थे। उनका जन्म मुंबई के पारसी परिवार में 8 दिंसबर 1937 में हुआ था। ऐसे में जानते हैं कि उनका अंतिम संस्कार पारसी धर्म में अंतिम संस्कार कैसे किया जाता है।
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किन रीति-रिवाजों से होगा अंतिम संस्कार
वैसे तो रतन टाटा पारसी धर्म से आते हैं। जिसे दुनिया का सबसे पुराना धर्म भी माना जाता है, हालांकि पारसी रीति-रिवाजों में अंतिम संस्कार अलग तरीके से किया जाता है। पारसी धर्म के लोग प्रियजनों का शव टॉवर ऑफ साइलेंस लेकर जाते हैं। जहां शव को गिद्ध या फिर दूसरी जानवर खाते हैं इस पूरी प्रक्रिया को पारसी में दख्मा कहा जाता है हालांकि खबर हैं टाटा परिवार रतन टाटा का अंतिम संस्कार हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार होगा।
भारत में कहां स्थित है 'टॉवर ऑफ साइलेंस'
टॉवर ऑफ साइलेंस भारत में दो जगह मुंबई और कोलकाता में स्थित है। भारत का पहला टॉवर ऑफ साइलेंस कोलकाता में है। जिसका निर्माण 1822 में किया गया था। पारसी धर्म के लोगों का मानना है शव प्रकृति का होता है। इन्हें जलाने से वायु प्रदूषण बढ़ता है,जबकि नदी में बहाने से जल प्रदूषित होता है। ऐसे में पारसी धर्म शवों को प्रकृति के हवाले कर देते हैं। हालांकि वक्त और विकास से साथ टॉवर ऑफ साइलेंस का प्रचलन कम हो गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब ऐसा करना पॉसिबल नहीं है क्योंकि आजकल गिद्ध न के बराबर नजर आते हैं। ऐसे में शवों को डिकम्पोज्ड नहीं किया जा सकता है। ऐसे में ज्यादर पारसी लोग अब हिंदू रीति रिवाजों से अंतिम संस्कार करते हैं।