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कृष्ण की दीवानी मीरा, जानिए कैसे बेअसर हुआ जहर

राणा विक्रमाजीत ने चरणामृत के बहाने मीरा को जहर का प्याला भेजा जिसे मीराबाई ने ग्रहण कर लिया, लेकिन उनपर विष का असर नहीं हुआ.कृष्ण की भक्ति में उनका समय ऐसे बीतता गया कि उनको कुछ भी याद न रहता. उनकी राहों में कई परेशानियां आईं 

कृष्ण की दीवानी मीरा, जानिए कैसे बेअसर हुआ जहर

भारत में कई कृष्ण भक्त हुए हैं, जिन्होंने अनन्य भक्त कर दुनिया में अपनी छाप छोड़ी है. जब भी सबसे बड़े कृष्ण भक्तों की बात होती है तो नाम मीरा बाई का जरूर आता है. मीरा बाई  का जन्म मारवाड़ के कुड़की गांव में सन् 1498 में रतन सिंह राठ़ौर और वीर कुमारी की बेटी के रूप में हुआ. नाजों से पली मीरा बाई का झुकाव बचपन से ही भगवान कृष्ण की ओर था. एक बार उनके घर में एक साधू आया, जिनसे उन्होंने श्रीकृष्ण की मूर्ति ले ली. जिसके बाद उनका पूरा दिन उसी मूर्ति के साथ बीतता. मीरा उन्हें नहलाती, भोग लगाती और आरती उतारतीं. वह हमेशा सूरदास जी का 'जो विधना निज वश करि पाऊं' पद गातीं और भाव से पद गाते हुए बेहोश भी हो जातीं. 1516 में उनका विवाह चित्तौड़ के महाराणा सांगा के ज्येष्ठ कुमार भोजराज के साथ हुआ. विवाह के मंडप में भी मीराबाई कृष्ण की मूर्ति लेकर पहुंचे. कुमार भोज के साथ फेरे लेते समय मीराबाई ने श्रीकृष्ण के साथ भी फेरे लेने का भाव रखते हुए विवाह भगवान के साथ होना ही  स्वीकार कर लिया. विवाह के बाद भी मीराबाई मूर्ति अपने साथ ले गईं.  ससुराल में जब मीरा को देवी पूजा के लिए कहा गया तो उन्होंने  सिर्फ श्रीकृष्ण की पूजा करने की बात कहते हुए इन्कार कर दिया. यहां तक की गणगौर पूजा भी यह कहकर नहीं की कि श्रीकृष्ण की पत्नी होने पर मेरा सुहाग तो वैसे ही अखंड है. मीरा के इस व्यवहार से भोजराज पहले नाराज हुए, लेकिन मीरा के ह्रदय की शुद्ध भक्ति जानकर उन्हें बहुत सुख मिला. साहित्य प्रेमी होने की वजह से मीरा के पद उन्हें अच्छे लगने लगे. मीरा ने श्रीकृष्ण को अपना पति मानने पर भी भोजराज की सेवा में कोई कमी नहीं रखी. कहते हैं कि कुछ समय बाद भोजराज ने दूसरा विवाह किया. लेकिन, मीराबाई को इससे प्रसन्नता हुई. इसके बाद मीरा पूरी तरह से कृष्ण प्रेम में रम गईं और सुध-बुध खो बैठीं. विवाह के बाद 1521 में भोजराज का निधन हो गया. महाराणा सांगा के भी निधन के बाद राजगद्दी पर मीरा के दूसरे देवर विक्रमाजीत आसीन हुए. विक्रमाजीत को मीरा की भक्ति अच्छी नहीं लगी. 

मीरा बाई के लिए भेजा जहर का प्याला

आखिर में राणा विक्रमाजीत ने चरणामृत के बहाने मीरा को जहर का प्याला भेजा जिसे मीराबाई ने ग्रहण कर लिया, लेकिन उनपर विष का असर नहीं हुआ.कृष्ण की भक्ति में उनका समय ऐसे बीतता गया कि उनको कुछ भी याद न रहता. उनकी राहों में कई परेशानियां आईं लेकिन अंत में कृष्ण का नाम जपते जपते वो उन्हीं की मूर्ति में समां गईं.