किसे कहते हैं मोनालिसा ऑफ राजस्थान, क्यों एक झलक के दीवाने रहते हैं लोग
बणी-ठणी चित्र के पीछे की कहानी के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. राजस्थान की मोनालिसा कहे जाने वाली बणी-ठणी एक चित्र नहीं है, बल्कि एक पूरा चरित्र है.
राजस्थान में एक जगह है किशनगढ़, जो अपनी चित्रकारी शैली के लिए विख्यात है. इस शैली में बणी ठौणी की चित्रकारी को श्रेष्ठ माना जाता है. इसमें एक नारी के सौंदर्य को दिखाया गया है.
बणी-ठणी चित्र के पीछे की कहानी
बणी-ठणी चित्र के पीछे की कहानी के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं. राजस्थान की मोनालिसा कहे जाने वाली बणी-ठणी एक चित्र नहीं है, बल्कि एक पूरा चरित्र है. बता दें कि संत नागरीदास और बणी ठनी के बीच ईश्वरीय प्रेम की वो कहानी है, जो इतिहास में अमर है.
रुपनगढ़ में बनी है वर्कशॉप
बणी-ठणी चित्र किशनगढ़ शैली का अद्भुत नमूना है. कहा जाता है कि एक समय में किशनगढ़ एक बड़ी रियासत थी. उस समय में किशनगढ़ की राजधानी रूपनगढ़ थी. बताया जाता है कि किशनगढ़ चित्रकला शैली की शुरुआत रुपनगढ़ से हुई. यहां किशनगढ़ शैली की चित्रकला के लिए बड़ा वर्कशॉप था.
राजा सावंत सिंह के शासनकाल में विकास
राजा सावंत सिंह के समय यहां तेजी से कला का विकास हुआ. कहा जाता है कि भवानी दास किशनगढ़ शैली के पहले चित्रकार थे. भवानी दास को दिल्ली से किशनगढ़ लाया गया.
देश-दुनिया में विख्यात
राजा सावंत सिंह ने इस शैली के चित्रकला को बढ़ावा दिया. राजा सांवत सिंह ने ही बणी-ठणी का चित्र बनवाया था. बणी-ठनी का अर्थ है सुंदर सजी धजी महिला. तीखे नाक नक्श वाली बणी ठनी का चित्र किशनगढ़ शैली की चित्रकला को देश दुनिया में पसंद किया गया..
स्वरूप पर असमंजस
जानकार बताते हैं कि बणी ठणी चित्र को लेकर असमंजस की स्थित है. कुछ लोग बणी ठणी के चित्र को राधा के स्वरूप में देखते हैं. खास बात यह है कि भारत सरकार ने बणी-ठणी चित्र का डाक टिकट भी जारी किया है. डाक टिकट पर भी राधा लिखा है.
कहा जाता है कि राजा सांवत सिंह पर कृष्ण की भक्ति का प्रभाव था. राजपाट छोड़कर राजा सावंत वृंदावन चले गए थे. राजा सांवत सिंह को नागरीदास के नाम से भी जाना गया. राधा कृष्ण के स्वरूप को लेकर किशनगढ़ के चित्रकारों ने उन्हें प्रियसी के रूप में चित्रित किया है.
आध्यात्मिक स्वरूप का कोई प्रतिबिंब नहीं
किशनगढ़ की एकमात्र कलम में ही यह चित्रण स्थापित होता है. इसमें आध्यात्मिक प्रेम को प्रदर्शित किया गया है. उन्होंने कहा कि कई वर्षों पहले तक वैलेंटाइन डे को कोई इतना जानता नहीं था, लेकिन आज की युवा पीढ़ी वैलेंटाइन डे को अलग स्वरूप में देखती है. इसमें आध्यात्मिक स्वरूप का कोई प्रतिबिंब देखने को नहीं मिलता.
राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक
किशनगढ़ शैली के चित्रों के जरिए प्रेम और अध्यात्म की परिभाषा क्या होती है वो चित्रकार और साहित्यकार के माध्यम से देखने को मिलती है. उन्होंने बताया कि राजा सावंत सिंह ने राधा-कृष्ण को एक प्रियसी के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है. इसमें चित्रकारों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रही है. किशनगढ़ की कलम को आज विश्व स्तर पर देखा जाता है. निश्चित रूप से यह राधा-कृष्ण के प्रेम का प्रतीक है.
नागरीदास और बणी ठणी के बीच था ईश्वरीय प्रेम
कचारिया पीठ के पीठाधीश्वर डॉ. जय कृष्ण देवाचार्य ने बताया कि राजा राज सिंह बणी ठणी को दिल्ली से लेकर आए थे. वह महारानी वृहददासी के पास रही, जिसका प्रभाव इस पर पड़ा. वृहददासी ने ही वृहददासी भागवत ग्रंथ की रचना की थी. नागरीदास के समुख भी वो भगवत प्रेम के कारण ही आई. रसिक बिहारी के नाम से उन्होंने काफी पद्य ढूंढाड़ी भाषा में लिखे हैं. वृहददासी, सुंदर भवरी का साथ बणी ठणी को मिला, जिससे उनमें स्वाभाविक रूप से भगवत प्रेम बढ़ता गया.
वृंदावन में त्यागे प्राण
नागरीदास जब वृंदावन चले गए तो उसके एक वर्ष बाद ही वो भी वृंदावन चली गई. वहां नागरीदास के साथ ही वो कृष्ण भक्ति में रमी रहती थी और वहीं उन्होंने प्राण त्याग दिए. वृंदावन में संत नागरीदास और उनके साथ रही बणी-ठणी की समाधि है. पीठाधीश्वर डॉ. जय कृष्ण देवाचार्य बताते हैं कि नागरीदास के साथ उनका एक चित्र भी है. जिसमें नागरीदास तुलसी माला पहने पूजा के लिए बैठे है और वो पूजन सामग्री लेकर आ रही हैं.