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वीरांगनाओं के बलिदान की कहानी, अकबर और खिलजी ने खाई मात

बाड़मेर जिले का ऐतिहासिक किला सिवाणा है, जोकि अरावली पर्वतमाला में बसा है. सिवाना के दुर्ग का निर्माण वीरनारायण परमार ने दसवीं शताब्दी में करवाया. वह शासक राज भोज का पुत्र था. उस समय परमारों का एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था. जिसमें मालवा, चंद्रावती, जालोर, किराड़ू, आबू प्रदेश शामिल थे. इसके बाद सिवाना जालोर के सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया.

वीरांगनाओं के बलिदान की कहानी, अकबर और खिलजी ने खाई मात

बाड़मेर जिले का ऐतिहासिक किला सिवाणा है, जोकि अरावली पर्वतमाला में बसा है. सिवाना के दुर्ग का निर्माण वीरनारायण परमार ने दसवीं शताब्दी में करवाया. वह शासक राज भोज का पुत्र था. उस समय परमारों का एक विशाल क्षेत्र पर आधिपत्य था. जिसमें मालवा, चंद्रावती, जालोर, किराड़ू, आबू प्रदेश शामिल थे. इसके बाद सिवाना जालोर के सोनगरा चौहानों के अधिकार में आ गया. इन्होंने ऐबक और इल्तुतमिश जैसे सुल्तानों का सफलतापूर्वक प्रतिरोध किया, लेकिन सिवाना को सबसे प्रबल चुनौती मिली अलाउद‌्दीन खिलजी के आक्रमण के समय. उस वक्त सिवाना पर अधिकार सातलदेव सोनगरा चौहान का था. सातलदेव जालोर के शासक कान्हड़देव का भतीजा था. सिवाणा पर खिलजी की सेना का पहला आक्रमण 1305 ई. में हुआ. तब सातल और सोम ने कान्हड़देव की सहायता से खिलजी सेना का डटकर मुकाबला किया और विजयी हुए. पराजय से क्षुब्ध होकर अलाउद‌्दीन खिलजी ने 1310 ई. के लगभग एक विशाल सेना लेकर सिवाना पर चढ़ाई की. सातल देव ने बड़ी वीरता के साथ शत्रु सेना के हौसले पस्त कर दिए, लेकिन खिलजी सिवाना पर जीत का निश्चय कर चुका था. उसने एक विशाल और ऊंचा चबूतरा बनाया, जिसके जरिए खिलजी की सेना दुर्ग तक पहुंचने में सफल हो गई. खुलजी ने दुर्ग के प्रमुख पेयजल स्रोत भोडेलाव तालाब को गो- रक्त से दूषित करवा दिया. कहा जाता है कि एक व्यक्ति के विश्वासघात का यह परिणाम था. कोई उपाय न देख महल की क्षत्राणियों ने जौहर कर लिया और सातल, सोम सहित अन्य क्षत्रिय योद्धा केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु सेना पर टूट पड़े और वीर गति को प्राप्त हुए. खिलजी सैनिकों ने सातल देव का क्षत-विक्षत शव खिलजी के सामने प्रस्तुत किया. जिसने दुर्ग को खैराबाद का नाम दिया. लेकिन खिलजी की मौत के साथ ही सिवाणा पर उसके वंश का आधिपत्य खत्म हुआ. इसके बाद सिवाना पर राव मल्लीनाथ राठौड़ के भाई जैतमाल और उसके वंशजों ने राज किया. सन् 1538 में राव मालदेव ने सिवाना के आधिपति राठौड़ डूंगरसी को पराजित कर इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया. इसके बाद कई राजपूत राजा हुए जिन्होंने शेरशाह और अकबर के साथ युद्ध किया.