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चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ लोकसभा चुनाव2024: डेढ़ दर्जन से अधिक प्रत्याशी , BJP और कांग्रेस के बीच मुकाबले में बीएपी बनेगी रोड़ा?

भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबले में बीएपी बनेगी रोड़ा ?

मांगू दादा किसकी छाती पर दलेंगे मूंग ?

मंहगाई और बेरोजगारी के बीच पीस कर कब तक देंगे राष्ट्रभक्ति का परिचय.....?

चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ लोकसभा चुनाव2024: डेढ़ दर्जन से अधिक प्रत्याशी , BJP और कांग्रेस के बीच मुकाबले में बीएपी बनेगी रोड़ा?

लोकसभा 2024 चुनाव की तारीख जैसे जैसे नजदीक आ रही हैं, प्रत्याशी प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक रहे हैं. चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ लोकसभा सीट पर डेढ़ दर्जन से अधिक उम्मीदवारों ने अपना पर्चा दाखिल किया है। जिसके चलते अबकी बार बूथों पर मतदाताओं को एक से अधिक मशीन देखने को मिलेगी। चित्तौड़गढ़-प्रतापगढ़ संसदीय सीट को जातिगत आधार पर देखा जाए, तो प्रतापगढ़ विधानसभा जहां  जनजाति बाहुल्य है. वहीं छोटी सादड़ी, निम्बाहेड़ा सामान्य सीट होकर अब तक भाजपा के श्रींचद कृपलानी और कांग्रेस के उदयलाल आंजना की ताजपोशी होती रही है। दूसरी तरफ चित्तौड़गढ़ राजपूताना क्षेत्र पर दृष्टि डाली जाए तो यहां कभी राजपूत वर्चस्व का बोलबाला था, लेकिन गत दो संसदीय चुनावों मे सांसद सीपी जोशी ने इस मिथक को बदल दिया । गत दो चुनावों में जीत के बाद सांसद सीपी जोशी के कद में अप्रत्याशीत बढ़ोतरी देखी गई है। पार्टी ने उन्हें दो बार लगातार जीत के बदले में विधानसभा 2023 के चुनाव में प्रदेश की बागडोर संभलाते हुए उन्हें प्रदेश की जिम्मेदारी सौंप डाली और उन्हें राजस्थान भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष के ताज से सुशोभित किया। जोशी ने भी अपनी जिम्मेदारी का कर्मठता से निर्वहन करते हुए कांग्रेस की जनकल्याणकारी योजनाओं को दरकिनार करवाते हुए जनता का मुंह मोड़ प्रदेश में भाजपा की सरकार बनवा दी।  हालांकि ये सब इतना आसान नहीं था। टिकट बंटवारे के दौरान जोशी को अपनी ही पार्टी के कद्दावर लोगों का विरोध भी झेलना पड़ा लेकिन कहते है कि अंत भला तो सब कुछ भला।

अब जोशी के समक्ष लोकसभा चुनाव 2024 की जिम्मेदारी है। जिसमें पार्टी उनसे गत चुनाव की भांति अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दोहराने की आंकाक्षा रखती है। जिसमें देखना होगा कि जोशी पार्टी की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरेंगे। प्रदेश की बात से पहले जोशी की अपनी स्वयं की सीट पर बात की जाए तो कांग्रेस की ओर से उदयलाल आंजना के प्रत्याशी बनने से चुनाव रोचक हो गया है। आंजना का जहां निम्बाहेड़ा और छोटीसादड़ी में अपना वर्चस्व है। वहीं धनबल के मामले में वे राजस्थान के अग्रणी प्रत्याशियों में गिने जा रहे है। वहीं सीपी जोशी को विधानसभा चुनाव में आक्या के निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद स्थिति विचारणीय हो सकती है। हालांकि वरिष्ठ नेता श्रीचंद कृपलानी के हस्तक्षेप के बाद संतोषजनक स्थिति हो सकती है, लेकिन पक्के तौर पर यह बात नहीं कही जा सकती है कि जोशी को जनता का समर्थन मिल जाए। वही बात कांठल की करें तो यहां कांग्रेस अपना वजूद खो चुकी है। विधानसभा चुनाव में रामलाल मीणा की हार ने यह निश्चित कर दिया है कि कांठल की जनता ने कांगेस को स्थाई मौका दिया था। लेकिन रामलाल मीणा ने अपने तानाशाह रवैये और पार्टी पदाधिकारियों द्वारा किए गए भष्टाचार के चलते मतदाताओं में अपना विश्वास खो दिया है। जिसका खामियाजा कांग्रेस का उठाना पड़ सकता है। लेकिन यहां भारतीय आदिवासी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में जो धमाकेदार एन्ट्री की थी उसको देखते हुए बीएपी कांठल क्षेत्र से दोनों प्रमुख दलों को दरकिनार कर सकती है। विधानसभा चुनाव के बाद जमीनी हालात को देखा जाए तो कुछ लोग दबी जुबान में यह अवश्य कर रहे हैं कि इस बार हेमन्त भैया भी रामलाल की राह पर चल रहे हैं। अपनी पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की अनदेखी के चलते लोग आगामी चुनाव के परिणामों की घोषणा करने लगे हैं। इससे इस क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों को कोई विशेष लाभ मिलता नहीं दिख रहा है।  ऐसे में बीएपी के वोट बैंक पर नजर डाली जाए तो उनका सबसे बड़ा वोट बैंक जनजाति मतदाता है वहीं विधायक हेमन्त मीणा का पूर्व विधायक रामलाल मीणा के पदचिन्हों का अनुसरण करना जोशी के लिए राह में कांटे बिखेरने जैसा हो रहा है। दोनों प्रमुख दलों की जीत के लिए जनजाति बाहुल्य क्षेत्र पर अपनी गिद्ध दृष्टि गड़ाये रखनी होगी। बीएपी को फोकस जनजाति मतदाताओं के साथ मुस्लिम मतदाताओं को साधने का भी रहा है । इसके लिए पार्टी पदाधिकारी मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में नुक्कड़ सभाओं के जरिए मुस्लिम वोट साधने में लगे हुए हैं। हालांकि मुस्लिम मतदाता कांग्रेस समर्थित रहे हैं। इससे बीएपी को कोई बड़ा लाभ मिलने से रहा । लेकिन गत विधायक रामलाल मीणा की कारगुजारियों के चलते मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस से मोहभंग अवश्य हुआ है। जिसके  परिणामस्वरूप जो मुस्लिम मतदाता कांग्रेस से दूरी बना रहे हैं उसका लाभ बीएपी को मिलेगा। इससे बीजेपी को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। मुस्लिम मतदाताओं के बीएपी के पक्ष में होने से बीजेपी फायदे में रहेगी।

सीपी जोशी के लिए जहां आक्या के समर्थित लोगों का रोष झेलना पड़ेगा, वहीं कांठल में हेमन्त मीणा की कार्यप्रणाली से भी जुझना होगा। दोनो ही दलों के बीच में चल रहे भीतराघात का फायदा क्या बीएपी उठा पायेगी। दूसरी ओर मोदी मैजिक की बात की जाए तो उसमें इस बार कमी देखने को मिल रही है। हालांकि गत चुनावों में मोदी मैजिक लोगों के मनमष्तिक पर चढ़ा हुआ था। मोदी मैजिक अभी भी बरकरार है । लोगों के दिलों में मोदी ने जो अपनी पहचान बनाई है वो अपनी जगह है। लेकिन मंहगाई की मार झेल कर जनता कब तक अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देती रहेगी। मानव शरीर के भीतर बना पेट से बड़ा कोई भगवान नहीं है। जिसे प्रतिदिन सुबह शाम उदरपूर्ति के लिए चढ़ावा चढ़ाना पड़ता है। ईश्वर का नाम लेने से पेट रूपी भगवान प्रसन्न नहीं होते हैं। उदर में रोटी का भोग लगने के बाद ही उसे धर्म की बातें याद रहती हैं । मंहगाई और बेरोजगारी दो ऐसी समस्या है जिसके चलते मोदी मैजिक बेअसर साबित हो सकता है। अन्य दलों के बड़े बड़े नेता भले ही अपनी पार्टियों को छोड़ कर मोदी सरकार का समर्थन कर रहे हों लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि मंहगाई और बेरोजगारी मोदी मैजिक पर भारी पड़ती दिख रही है। मंहगाई और बेरोजगारी दो पाटों के बीच पिस कर जनता कहीं अपना आपा न खो दे. वहीं पार्टी के वरिष्ठ पदाधिकारियों की अनदेखी जैसे कई मुददे हैं। जो प्रदेश में सीपी जोशी के समक्ष बांह फैलाये खड़े हैं. हालांकि गत चुनावों में मोदी मैजिक लोगों के मनमष्तिक पर चढ़ा हुआ था. मोदी मैजिक अभी भी बरकरार है। लोगों के दिलों में मोदी ने जो अपनी पहचान बनाई है। वो अपनी जगह है। लेकिन मंहगाई की मार झेल कर जनता कब तक अपनी राष्ट्रभक्ति का परिचय देती रहेगी। इन सभी से पार पाना सीपी जोशी के लिए कोई बड़ा मसला तो नहीं है, लेकिन फिर भी समस्या तो समस्या होती है। पता नहीं आखिरी समय में कौनसी समस्या नासूर बन जाए ।

रिपोर्टर- हारुन यूसुफ, प्रतापगढ़