बाघा और भारमली के अमर प्रेम की कहानी
सलमेर की बाघा और भारमली के प्रेम की कहानी सबसे खास है. मारवाड़ की ये कहानी किसी को भी भावुक कर देने वाली है. जैसलमेर गूंज रही यह कहानी कोटड़ा के शिव के पास स्थित जोधपुर रियासत के कोटड़ा परगने के जागीरदार बाघा कोटडिया है और जैसलमेर रजवाड़े की राजकुमारी उमा दे भटियानी के इर्द गिर्द घूमती है.
राजस्थान की माटी वीरता, और त्याग की अमर गाथाएं से सुशोभित है, लेकिन यहां पर कई ऐसी प्रेम कहानियां हुईं जो अमर हो गईं. जैसलमेर की बाघा और भारमली के प्रेम की कहानी सबसे खास है. मारवाड़ की ये कहानी किसी को भी भावुक कर देने वाली है. जैसलमेर में गूंज रही यह कहानी कोटड़ा के शिव के पास स्थित जोधपुर रियासत के कोटड़ा परगने के जागीरदार बाघा कोटडिया है और जैसलमेर रजवाड़े की राजकुमारी उमा दे भटियानी के इर्द गिर्द घूमती है. इतिहास में राजकुमारी उमा को रूठी रानी के नाम से जाना जाता है. वो मारवाड़ के शक्तिशाली शासक मालदेव की रानी थी. लेकिन ये कहानी राजकुमारी उमा दे भटियानी की नहीं, बल्कि उनके विवाह में दहेज में मिली दासी भारमली की प्रेम कहानी हैं. राजकुमारी की दासी उनके पति और मारवाड़ के राजा मालदेव के प्रेम में पड़ गई. राजकुमारी ने जब दासी भारमली को पति के साथ देखा नाराज हो गईं और फिर ताउम्र पति से रुठी रहीं.
शक्तिशाली शासक था मालदेव
हुमायूं के समकालीन समय 1532 में मारवाड़ के शक्तिशाली शासक राजा मालदेव हुए. उन्होंने हुमायूं को मदद का भरोसा दिया, जिसके बल पर हुमायुं ने अपने पिता बाबर की गद्दी को वापस हासिल किया. मालदेव ने भाटी राजपूतों की रियासत जैसलमेर पर आक्रमण करते हुए घेरा डाल दिया, लेकिन जैसलमेर के तत्कालीन राजा लूणकरण ने अपनी कूटनीति का इस्तेमाल कर मालदेव से अपने राज्य को बचा लिया . साथ ही मारवाड़ और जैसलमेर के बीच रिश्तेदारी का हाथ बढ़ाते हुए अपनी बेटी उमा दे भटियानी का विवाह मालदेव से कर दिया.
दासी को दिल दे बैठे राजा मालदेव
विवाह में राजकुमारी उमा दे भटियान को दहेज में भारमली नाम की दासी भी गई. शादी के बाद राजकुमारी ने राजा मालदेव को उनकी दासी के साथ देख लिया और राजकुमारी पति से रुठ गई. इसलिए इतिहास में उन्हें रूठी रानी के नाम से पुकारा गया.
बाघ सिंह कोटडिया और दासी भारमली कहानी
राजा के साथ दासी की नजदीकी का पता जब राजकुमारी की भाभी को लगा, तो उन्होंने जोधपुर मारवाड़ राज्य के ही अधीन परगने के जागीरदार और भाई बाघसिंह कोटडिया को दासी भारमली को गायब करने को निर्दश दिया. बाघा ने बगावत का बिगुल फूंकते हुए दासी को उठाकर लेकर आया, लेकिन उसकी सुंदरता पर वह दिल हार बैठा और भारमली को अपने गांव कोटड़ा ले आया. बाघा दासी भारमली के प्रेम में पड़ चुका था और दोनों ने पति-पत्नी के रूप में एक दूसरे को स्वीकार लिया. उधर भारमली की गुमशुदगी से व्याकुल राजा मालेदव ने दासी को बाघा के चंगुल से छुड़ाने का निश्चय किया और बाघा पर आक्रमण करने की तैयारी की. राजा के दरबार में मौजूद सलाहकारों की जोड़ी ने उन्हें रोक दिया. लेकिन आशानंद नामक चारण को बाघा के पास भेजकर भारमली को वापस लाने को कहा. राजा के आदेश से आशानंद कोटड़ा पहुंचे, लेकिन बाघा और भारमली की प्रेम कहानी और समर्पण देखकर प्रभावित हो गए और अपना उद्देश्य भूल गए. आशानंद चारण ने लिखा, " बाघा बिजली तो भारमली बरसात, भारमली की कमर पर बाघा मोतियों का गुच्छा है.
बाघा की मौत के बाद सती हो गई भारमली
बाघा और भारमाली की प्रेम कहानी का अंत तब हुआ जब करीब 12 साल साथ रहने के बाद बाघा की मौत हो गई. बाघा की मौत के बाद भारमली भी उसकी चिता की अग्नि में समाकर सती हो गई, जिससे दोनों की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गई.