Jhunjhunu News: राजस्थान में शहीदों की विधवाओं और योद्धाओं का एक गांव
राजस्थान के इस गांव ने भारतीय सेना को ऐसे सैनिक दिए हैं जिन्होंने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर भारत-चीन युद्ध, भारत-पाक युद्ध और कारगिल युद्ध तक देश हित के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
झुंझुनू के धनोरी गांव की सायरा बानो, हसन बानो, अनवर बानो, मुमताज बानो और अलहमदो बानो एक ही धागे से बंधी हैं। वे सभी शहीदों की विधवाएं हैं। राजस्थान के इस गांव ने भारतीय सेना को ऐसे सैनिक दिए हैं जिन्होंने प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध से लेकर भारत-चीन युद्ध, भारत-पाक युद्ध और कारगिल युद्ध तक देश हित के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। युद्ध के नाम पर ही यहां के लोग देश के लिए शहीद होने को तैयार हो जाते हैं।
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सायरा के पति अजीमुद्दीन खान द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हो गए थे। हसन और अनवर ने अपने पति सैफी मुहम्मद और निज़ामुद्दीन खान को 1962 के भारत-चीन युद्ध में खो दिया था। मुमताज के पति जफर अली खान 1971 में शहीद हो गए थे और अल्हम्दो के पति रमजान खान ने कारगिल युद्ध के दौरान भारती की धरती की रक्षा करते हुए अपनी जान दे दी थी। हालांकि गांव की प्रथम विश्व युद्ध की विधवाएं अब जीवित नहीं हैं, लेकिन धनोरी के छह सैनिक युद्ध में शहीद हो गए थे।
धनौरी के रहने वाले कुल सत्रह जवान देश के लिए शहीद हुए हैं। वर्तमान में, गांव के 550 से अधिक लोग भारतीय सेना में सेवारत हैं, जबकि कई लोग सेवानिवृत्ति के बाद अपने गांव में ही जीवन का आनंद ले रहे हैं। गांव में एक भी घर ऐसा नहीं है, जहां से परिवार का कोई सदस्य सेना में न गया हो।
कारगिल युद्ध के शूरवीर
सेवानिवृत्त कैप्टन अली हसन ने कहा, ''मैंने 1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। युद्ध हमारे गांव के लिए आसान नहीं था, क्योंकि इस युद्ध के दौरान हमने अपने तीन बेटों को खो दिया था। इस गांव में एक वीर चक्र प्राप्तकर्ता भी हैं। मेजर एमएच खान हमारे गांव से थे, मैं उनके अंडर में था। वह युद्ध में शहीद हो गए, बाद में उन्हें वीर चक्र से सम्मानित किया गया ।''
एमएच खान, जिनके पिता एक आईएएस अधिकारी थे, गांव के एकमात्र सैनिक हैं, जो भारतीय सेना में मेजर के पद तक पहुंचे। उस समय उन्होंने हैदराबाद में अपनी शिक्षा प्राप्त की थी।
अली हसन का परिवार चार पीढ़ियों से भारतीय सीमाओं की रक्षा कर रहा है। देश की सुरक्षा के लिए युद्ध लड़ रहा है। हसन इस बात पर बहुत गर्व महसूस करते हुए कहा, "मेरे दादा और पिता भारतीय सेना में थे। इसलिए मैं भी इसमें शामिल हो गया और अब मेरा बेटा हमारे देश की सेवा कर रहा है।"
देश के लिए समर्पित गांव
धनोरी, झुंझुनू से केवल 15 किलोमीटर दूर है और इसकी आबादी 10000 से अधिक है, जिसमें से 70 प्रतिशत से कुछ अधिक मुस्लिम हैं। वे ज्यादातर कायमखानी मुसलमान हैं और उन्होंने हर समुदाय के लोगों को अपने कम से कम एक बेटे को देश की सेवा के लिए भेजने के लिए प्रेरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।