अमर है राजस्थान का कठपुतली नृत्य, दशकों से लोगों को आ रहा पसंद
राजस्थान कला की जननी है, धरती है रीति और रिवाजों की. यहां के लोगों की रगों में कला दौड़ती है जो दुनिया भर के लोगों के दिलों में बसती है. कला ऐसी जिसको दशकों से पसंद किया जा रहा है. राजस्थान की लोक कला की बात ही कुछ और है. लोककलाओं में यहां की सबसे फेमस कला है कठपुतली नृत्य.
राजस्थान कला की जननी है, धरती है रीति और रिवाजों की. यहां के लोगों की रगों में कला दौड़ती है जो दुनिया भर के लोगों के दिलों में बसती है. कला ऐसी जिसको दशकों से पसंद किया जा रहा है. राजस्थान की लोक कला की बात ही कुछ और है. लोककलाओं में यहां की सबसे फेमस कला है कठपुतली नृत्य.
लोकनृत्य की शैली है कठपुतली नृत्य
कलाकार लोकनृत्य की खास शैली के रूप में कठपुतली नृत्य को लोगों के सामने पेश करते हैं. लोकनृत्य की ही एक विशेष शैली के रूप में ही कठपुतली नृत्य को माना जाता है. जिसमें कई किरदारों की गुड़िया बनाकर उन्हें नचाया जाता है. प्राचीन ग्रंथों में भी कठपुतली कला का उल्लेख किया गया है.. कठपुतली नृत्य के जरिए कई कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है. जिसमे परिधान, काष्ठकला, वस्त्र-निर्माण कला, रूप-सज्जा, संगीत, नृत्य और मनोरंजन को रखा जाता है.
कठपुतली नृत्य में होते हैं कई मनोरंजक किरदार
कठपुतली नृत्य में कई किरदार होते हैं जिसमें हीर-रांझा, लैला-मजनूं, शीरी-फरहाद के किरदार होते हैं. इसके अलावा, व्यंग्य और मनोरंजन के लिए कई स्थानीय किरदारों को भी प्रस्तुत किया जाता है.
कठपुतलियों के प्रकार
कठपुतलियों के भी कई प्रकार होते हैं जैसे यथा-धागा पुतली, छाया पुतली, गिरा पुतली, दस्ताना पुतली. इन्ही के माध्यम से कठपुतली नृत्य को जीवंत किया जाता है.
ऐतिहासिक धरोहरों पर कला का प्रदर्शन
राजस्थान में कई जगहों पर इसके प्रदर्शन किया जाता है. जयपुर में सबसे ज्यादा हवा महल, आमेर फोर्ट, जयगढ़ फोर्ट, जलमहल पर कलाकार आज भी कठपुतली का नृत्य प्रस्तुत करते हैं. साथ ही यहां और भी कलाकार हैं जो वाद्ययंत्रों को बजाकर गाने बजाने का काम करते हैं. इसी कामों से उनका जीवनयापन होता है. जयपुर के हवामहल पर सालों से लोकगीत कलाकार यहां गीत गाकर पर्यटकों को आकर्षित करते हैं. कई की पीढ़ियां भी अब इन्ही कलाओं का प्रदर्शन करते हैं. खास बात यह है कि पर्यटन विभाग की ओर से भी अब इन्हें प्रोत्साहन राशि दी जाती है.