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बाड़मेर की सियासत में घुले हैं कई रंग, कभी निर्दल तो कभी बड़ी पार्टी ने मारी बाजी, इस बार क्या कह रहीं हवाएं ?

देश में हुए पहले चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह लोकसभा क्षेत्रों में भी ऐसी शख़्सियतों ने चुनाव लड़े थे, जिनका अब तक कोई जोड़ नहीं है, बाड़मेर के पहले दो लोकसभा सदस्य शिक्षा, मानवीयता, सांप्रदायिक सौहार्द और निर्धन लोगों की मदद की भावना से तो लबरेज़ थे ही, वे बेहद शिक्षित भी थे।   

बाड़मेर की सियासत में घुले हैं कई रंग, कभी निर्दल तो कभी बड़ी पार्टी ने मारी बाजी, इस बार क्या कह रहीं हवाएं ?

देश में हुए पहले चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभ भाई पटेल की तरह लोकसभा क्षेत्रों में भी ऐसी शख़्सियतों ने चुनाव लड़े थे, जिनका अब तक कोई जोड़ नहीं है, बाड़मेर के पहले दो लोकसभा सदस्य शिक्षा, मानवीयता, सांप्रदायिक सौहार्द और निर्धन लोगों की मदद की भावना से तो लबरेज़ थे ही, वे बेहद शिक्षित भी थे।   

विधानसभा के हिसाब से बीजेपी का पलड़ा भारी

जैसलमेर, शिव, बाड़मेर, बायतू, पचपदरा, सिवाना, गुड़ामालानी, चौहटन, इनमें से पांच (जैसलमेर, पचपदरा, सिवाना, गुड़ामालानी और चौहटन) भाजपा के पास हैं, जबकि दो निर्दलीय (शिव और बाड़मेर) और एक काँग्रेस (बायतू) के पास है, विधानसभा चुनाव को देखें तो यहां ज्यादातर सीटों पर बीजेपी का कब्जा है वहीं कांग्रेस के पास मात्र एक सीट है।इस हिसाब से अगर देखें तो यहां बीजेपी को पलड़ा भारी दिख रहा है।

रवींद्र सिंह भाटी बिगाड़ सकते हैं खेल

मुक़ाबले में काँग्रेस और सबके समीकरण बिगाड़ता भाटी का तूफ़ान है,विधानसभा चुनावों के हिसाब से पलड़ा भले भाजपा की तरफ झुका हुआ हो और मुक़ाबले में चाहे काँग्रेस के उम्मेदाराम नज़र आते हों, लेकिन निर्दलीय रवींद्र सिंह भाटी नाम के तूफ़ान ने अपनी लोकप्रियता से धूम मचा रखी है जिससे सारे सियासी समीकरण उलट-पलट गये हैं। दिलचस्प पहलू ये है कि विधानसभा चुनाव में बायतू से आरएलपी के उम्मेदाराम और काँग्रेस के हरीश चौधरी आमने-सामने थे। अब चौधरी ने उम्मेदाराम को अपने पक्ष में कर लिया और पार्टी का उम्मीदवार बना दिया। 

कैंब्रिज के जज ने लड़ा था पहला चुनाव

1952 के पहले लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र का नाम बाड़मेर-जालौर था, काँग्रेस ने यहाँ से पूनमचंद बिश्नोई को टिकट दिया था। उनके सामने खड़े भवानी सिंह (निर्दलीय) चुनाव लड़ रहे थे चुनाव में उन्हे जीत भी मिली आखिर मिलती भी क्यो न आखिर वो इलाके के जागीरदार थे। वे बहुत क़ाबिल बैरिस्टर थे और 1941 से 1947 तक सेशन जज रहे थे।वे टेनिस और गॉल्फ के अच्छे खिलाड़ी भी रहे थे।उन्होंने न्यायाधीश की नौकरी इसलिए छोड़ी थी कि वे राजनीति करें; लेकिन उनका निधन 45 साल की उम्र में 1956 में ही हो गया।

अधिकारी पद से इस्तीफा देकर लड़ा चुनाव

1957 : अब लोकसभा क्षेत्र बाड़मेर हो चुका था। काँग्रेस ने गोवर्धनदास बिन्नाणी को उम्मीदवार बनाया और उनके सामने निर्दलीय के रूप में थे जैसलमेर के युवा महारावल रघुनाथ सिंह बहादुर थे, वे महज 27 साल के थे, उनका ननिहाल अमरकोट था। वे मेयो कॉलेज से पढ़े हुए थे और इंडियन आर्मी में कैप्टेन थे। वे सेवा से त्यागपत्र देकर राजनीति में आए थे।

जब रघुराज ने दिया ईमांदारी का परिचय...

वे निर्धन किसानों को बीज तो पशुपालकों को चारा मुहैया करवाया करते थे।बहुत बार किसी के पास रोजमर्रा के कामकाज या बेटे-बेटी के विवाह के लिए पैसा न होता तो नगद भी पैसा दे दिया करते थे।निर्धन बच्चों को भोजन, किताबें और वस्त्र नियमित रूप से देते थे। उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे।वे बहुत अध्ययनशील व्यक्ति थे। रेगिस्तान के समुद्र में पैदा हुए इस युवा को तैरने का बेहद शौक था। वे क़माल के घुड़सवार भी थे। चुनाव खर्च के लिए उन्हे 21,000 रुपए मिले थे जिसमें खर्च हुए करीब 11,000 तो बाकी 10,000 रुपये उन्होने मतदान के दिन ही लौटा दिए।

बाड़मेर से अब तक के लोकसभा सदस्य

1952 : भवानीसिंह निर्दलीय

1957 : रघुनाथसिंह बहादुर निर्दलीय

1962 : तनसिंह राम राज्य परिषद

1967 : अमृत नाहटा काँग्रेस

1971 : अमृत नाहटा काँग्रेस

1977 : तनसिंह बीएलडी

1980 : विरदीचंद जैन काँग्रेस

1984 : विरदीचंद जैन काँग्रेस

1989 : कल्याणसिंह कालवी जनता दल

1991 : रामनिवास मिर्धा काँग्रेस

1996 : कर्नल सोनाराम काँग्रेस

1998 : कर्नल सोनाराम काँग्रेस

1999 : कर्नल सोनाराम काँग्रेस

2004 : मानवेंद्रसिंह भाजपा

2009 : हरीश चौधरी काँग्रेस

2014 : कर्नल सोनाराम भाजपा

2019 : कैलाश चौधरी भाजपा 

मोतीलाल ओसवाल भी कम नहीं है

अगर आप शेयर मार्केट में रुचि रखते हैं तो आपने मोतीलाल ओसवाल का नाम ज़रूर सुना होगा। यह मोतीलाल ओसवाल कोई और नहीं, बाड़मेर के सिवाना इलाक़े के पदरू के रहने वाले हैं और वहीं के सरकारी स्कूल में पढ़ेहुए हैं।बाड़मेर की सियासत की सिगड़ी लंबे समय से बुझी हुई थी; लेकिन अब रवींद्रसिंह भाटी ने आकर भीतर ही भीतर इसके कोयलों को इतना दहका दिया है कि देश में सत्ता के सबसे बड़े शक्ति केंद्र तक उसका ताप साफ़ दिख रहा है।विशेषज्ञों को समझ नहीं आ रहा कि यह नया शेयर एकदम कैसे बाकी सबको ऑनली सेलर्स वाली श्रेणी में डाले हुए है!

बाड़मेर के सियासी खेल का क्या होगा अंत ?

अब तक के सियासी सफर को अगर देखें तो ज्यादातर चुनावों में यहां कांग्रोस को हा जीत हांसिल हुई है लेकिन कुछ एक बार निर्दलीय प्रत्याशियों ने यहां परचम लहराकर बड़ी पार्टियों को घुटने पर लाया है वहीं बीजेपी की अगर बात करें तो पिछले चुनावों को अगर देखें तो यहां भी मोदी लहर का असर देखने को मिल चुका है ऐसे में निर्दलीय रवींद्र सिंह भाटी किसका खेल बनाएंगे या बिगाड़ेंगे ये आने वाला समय तय करेगा लेकिन हो कुछ भी फैसला इस बार इस सीट का कुछ हटके ही रहेगा।

रिपोर्ट: जितेश जेठनंदानी