Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

PM मोदी का जोधपुर दौरा, हाईकोर्ट के जुबली कार्यक्रम से लेकर यहां करेंगे शिरकत

राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर में बढ़ते शहरीकरण के कारण वाहनों की संख्या में वृद्धि हो रही है। लोगों की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्थानीय परिवहन में वाहनों की बड़ी भूमिका है।

PM मोदी का जोधपुर दौरा, हाईकोर्ट के जुबली कार्यक्रम से लेकर यहां करेंगे शिरकत

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 10 महीने बाद जोधपुर आ रहे हैं। इससे पहले जब मोदी जोधपुर आए थे, तो चुनावी माहौल में कई सौगातें दी थीं। इस बार मौका राजस्थान हाईकोर्ट के प्लेटिनम जुबली वर्ष का है। मारवाड़ को एक बार फिर उम्मीदें हैं। कुछ बड़ी उम्मीदें हैं, जिन्हें केंद्र सरकार पूरा कर सकती है। अगर इन पर काम आगे बढ़ा तो 2047 तक विकसित भारत की अवधारणा में जोधपुर क्षेत्र की अहम भूमिका होगी।

इसे भी पढ़िये - भारी बारिश के जलजले में बह गए पांच लोग, सुंधा माताजी में हुई दर्दनाक घटना

जोधपुर को मेट्रो नहीं तो डेमू मिलनी चाहिए

राजस्थान के दूसरे सबसे बड़े शहर जोधपुर में बढ़ते शहरीकरण के कारण वाहनों की संख्या में वृद्धि हो रही है। लोगों की भागदौड़ भरी जिंदगी में स्थानीय परिवहन में वाहनों की बड़ी भूमिका है। वाहनों की भीड़ के कारण सड़कें हांफ रही हैं, आने वाले समय में स्थानीय परिवहन बड़ी चुनौती बन सकता है। इन चुनौतियों का सामना करने में रेलवे अहम भूमिका निभा सकता है।

रेलवे अगर स्थानीय परिवहन के लिए डेमू जैसी ट्रेनें चलाए तो शहर में बढ़ती ट्रैफिक समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकता है। मुंबई में चलने वाली लोकल ट्रेनों और दिल्ली-जयपुर में चलने वाली मेट्रो की तरह जोधपुर में भी डेमू स्थानीय परिवहन का बड़ा विकल्प बन सकती है। फिलहाल मेड़ता रोड-मेड़ता सिटी और मकराना-परबतसर के बीच डेमू ट्रेनें चल रही हैं।

इन रूटों पर मिल सकती है राहत

रेलवे विशेषज्ञों के अनुसार जोधपुर में लूणी, हनवंत, सालावास, बासनी, भगत की कोठी, महामंदिर, मंडोर, मथानिया तक डेमू ट्रेन चलाई जा सकती है। इस तरह की ट्रेन में लोग सफर करना पसंद करेंगे। साथ ही यातायात पर काफी हद तक नियंत्रण होगा और वाहनों की संख्या में कमी आएगी। इससे शहर में ध्वनि और वायु प्रदूषण भी कम होगा।

ग्रामीण क्षेत्र: बुझेगी प्यास और खेतों को पानी, WRCP को मिली हरी झंडी

ई-आरसीपी की तर्ज पर अगर WRCP को धरातल पर उतारा जाता है तो यह पश्चिमी राजस्थान का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट होगा। माही बेसिन से माही का सरप्लस पानी लूणी बेसिन जालोर जिले में लाने की योजना है। इसके लिए प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट के बाद अब डीपीआर पर काम होना है। माही बेसिन के सरप्लस पानी से राजस्थान के जालोर, बाड़मेर, पाली और जोधपुर जिले के लाखों लोगों की प्यास बुझेगी। साथ ही 2.25 लाख हैक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई का लाभ मिलेगा। VEPCOS कंपनी ने इसकी प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट पर काम कर लिया है। फिलहाल 350 किलोमीटर लंबी सुरंग के जरिए पानी लाना प्रस्तावित है।

फिजिबिलिटी पर चल रहा है काम

जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता रिनेश सिंघवी ने बताया कि वीईपीसीओएस फिलहाल फिजिबिलिटी पर काम कर रहा है। अगर सकारात्मक जवाब मिलता है तो डीपीआर के लिए बजट जारी कर दिया जाएगा।

युवा प्रशिक्षित हों, पवन खुश हो, राष्ट्रीय आतिथ्य संस्थान खुले

पश्चिमी राजस्थान के कई शहर पूरे देश में पर्यटन के प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं, लेकिन राजस्थान में भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान का अभाव है। जोधपुर में राज्य सरकार का होटल प्रबंधन संस्थान तो है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर का संस्थान नहीं है। पर्यटन मंत्रालय के अधीन संचालित यह संस्थान जोधपुर में खुलेगा तो रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे।

संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री भी जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत ही हैं। ऐसे में जोधपुर और मारवाड़ का इस संस्थान पर सबसे बड़ा दावा है। फिलहाल इस संस्थान का मुख्यालय ग्वालियर है और देश में भुवनेश्वर समेत अन्य शहरों में इसकी शाखाएं हैं। यहां से कोर्स करने के बाद पर्यटन क्षेत्र में नए अवसर बनते हैं। अब जोधपुर समेत पूरे मारवाड़ में कई जगह छोटे-बड़े होटल खुल रहे हैं। पर्यटन स्थल विकसित हो रहे हैं। देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है। ऐसे में राष्ट्रीय संस्थान से प्रशिक्षित युवा मेहमानों का बेहतर आतिथ्य कर सकेंगे और इससे पर्यटन भी बढ़ेगा। रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

बॉर्डर, रेगिस्तान और हेरिटेज पर्यटन के लिए मेगा प्रोजेक्ट

पश्चिमी राजस्थान का एक बड़ा इलाका अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़ा हुआ है। इन दूरदराज के इलाकों में आर्थिक गतिविधियां भी बहुत कम हैं। पर्यटक अब रोमांच और नई तरह की जगहों को देखना चाहते हैं। ऐसे में अगर सुरक्षा प्रावधानों को बनाए रखते हुए बॉर्डर टूरिज्म को विकसित किया जाए तो बॉर्डर के आसपास के गांवों में लोगों को रोजगार मिलेगा। अटारी और वाघा बॉर्डर की तरह मुनाबाव को विकसित किया जाना चाहिए। वाइब्रेंट विलेज योजना भी लागू की जानी चाहिए। डेजर्ट नेशनल पार्क और रेगिस्तान के और भी इलाकों के लिए विशेष योजना बनाकर स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर दिए जाने चाहिए।