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राजस्थानी जैन मंदिर, खूबसूरती ऐसी कि दुनिया दंग रह जाए

दिलवाड़ा जैन मंदिर और देलवाडा मंदिर के नाम से विख्यात है. दरसल यह मंदिर पांच मंदिरों का एक समूह है. यह मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी से 16 शताब्दी के बीच करवाया गया था. यहां के समूह में स्थित सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं.

राजस्थानी जैन मंदिर, खूबसूरती ऐसी कि दुनिया दंग रह जाए

भारत एक ऐसा देश है जिसे मंदिरों का देश कहा जाता है. हजारों की तादात में यहां मंदिर हैं कुछ नए तो कुछ बहुत ही प्राचीन भी हैं. हजारों साल पुराने होने के बाद भी आज भी कई ऐसे मंदिर हैं जो खूबसूरती के मामले में बेजोड़ हैं. इसी कड़ी में आज हम बात करेंगे राजस्थान के एक ऐसे मंदिर के बारे में जो करीब 900 साल से भी ज्यादा पुराना है. ये मंदिर आज भी इतना सुंदर है कि लोग दुनिया के सात अजूबों से इसे अलग नहीं मानते. निर्माण शैली और शिल्प कला ऐसी जो अपने आप में अद्भुत और बेजोड़ है.

माउंट आबू में स्थित है मंदिर

यह मंदिर दिलवाड़ा जैन मंदिर और देलवाडा मंदिर के नाम से विख्यात है. दरसल यह मंदिर पांच मंदिरों का एक समूह है. यह मंदिर राजस्थान के सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है. बताया जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 11 वीं शताब्दी से 16 शताब्दी के बीच करवाया गया था. यहां के समूह में स्थित सभी मंदिर जैन धर्म के तीर्थंकरों को समर्पित हैं.

पहला मंदिर भगवान आदिनाथ को समर्पित

इन मंदिरों में सबसे प्राचीन है विमल वासाही मंदिर. जिसकी स्थापना सन् 1031 ईसवी में की गई थी. विमल वासाही मंदिर जैन धर्म के पहले तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण सफेद रंग के संगमरमर को तराश कर किया गया है. मंदिर का निर्माण गुजरात के चालुक्य राजवंश के राजा भीम प्रथम के मंत्री विमल शाह ने कराया था. कहा जाता है कि मंदिर में स्थापित भगवान आदिनाथ की मूर्ति की आंखों में असली हीरे का प्रयोग किया गया है, साथ ही मूर्ति के गले में जो हार है वह भी बेशकीमती रत्नों से बना हुआ है.

दूसरा सबसे भव्य मंदिर है लूना वसाही मंदिर जो कि जैन धर्म के 22वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ को समर्पित है. इस मंदिर का निर्माण सन् 1230 ईसवी में दो भाइयों वास्तुपाल और तेजपाल ने करवाया. इनका ताल्लुक गुजरात के वाहेल से हैं. इस मंदिर के मुख्य हॉल में 360 तीर्थंकरों की मूर्तियां हैं. साथ ही यहां एक हाथीकक्ष भी है, जिसमें संगमरमर के 10 हाथी भी मौजूद हैं.

इसके अलावा यहां पित्तलहार मंदिर, श्री पार्श्वनाख मंदिर और महावीर स्वामी का भी मंदिर है. महावीर स्वामी के मंदिर का निर्माण सबसे आखिरी में सन् 1582 ईसवी में कराया गया. जोकि भगवान महावीर स्वामी को समर्पित है.