शिल्पकारी का अप्रतिम उदाहरण राजस्थान का रणकपुर जैन मंदिर
राजस्थान जितना राजशाही के लिए जाना जाता है, उतना ही यहां के मंदिर भी खास हैं. सिर्फ हिंदू धर्म के ही नहीं बल्कि जैन धर्म के भी कई मंदिर यहां स्थित हैं. यह जैन मंदिर इतने खूबसूरत हैं कि दुनिया भर में यहां की शिल्पकारी मशहूर है. खासतौर पर अरावली की पहाड़ों के बीच स्थित इन मंदिरों की खूबसूरती देखते ही बनती है. इन्हीं में से एक है राजस्थान के पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन मंदिर.
राजस्थान जितना राजशाही के लिए जाना जाता है, उतना ही यहां के मंदिर भी खास हैं. सिर्फ हिंदू धर्म के ही नहीं बल्कि जैन धर्म के भी कई मंदिर यहां स्थित हैं. यह जैन मंदिर इतने खूबसूरत हैं कि दुनिया भर में यहां की शिल्पकारी मशहूर है. खासतौर पर अरावली की पहाड़ों के बीच स्थित इन मंदिरों की खूबसूरती देखते ही बनती है. इन्हीं में से एक है राजस्थान के पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन मंदिर.
तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित मंदिर
रणकपुर जैन मंदिर पूरी दुनिया में अपनी विशाल आकृति, वास्तुकला और सुंदरता के लिए जाना जाता है. यह मंदिर जैन धर्म के पांच प्रमुख मंदिरों में से एक है, जोकि जैन तीर्थंकर आदिनाथ जी को समर्पित है. साथ ही चारों ओर से जंगलों से घिरा हुआ यह मंदिर अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए अपनी अलग पहचान रखता है. यह मंदिर इतना खूबसूरत है कि कोई भी इस मंदिर की नक्काशी और डिजाइन को देखकर हैरान हो जाए. इस मंदिर में आने पर मंदिर की जगह भव्य महल जैसा एहसास होता है.
600 साल पुराना है मंदिर
इस मंदिर के इतिहास की अगर बात करें तो यह मंदिर 600 साल पुराना है, जोकि राणा कुम्भा के शासनकाल में तैयार हुआ. यह मंदिर अपनी राजशाही अंदाज के लिए मशहूर है. कहा जाता है कि उस समय इस मंदिर को बनाने में करीब 99 लाख रुपये खर्च हुए थे.
राणा कुम्भा ने दान की जमीन
कथाओं के अनुसार कहा जाता है कि राणा कुम्भा ने इस मंदिर को बनवाने के लिए अपनी जमीन को धरनशाह को दान दे दिया थी और इसी के साथ एक नगर बसाने का भी प्रस्ताव रखा. इस भव्य मंदिर के रखरखाव की जिम्मेदारी साल 1953 में एक ट्रस्ट को दी गई. आज के समय में यह महल जैसा दिखने वाला मंदिर पर्यटकों के बीच अपने आकर्षण के लिए जाना जाता है.
रणकपुर मंदिर काफी क्षेत्रफल में फैला हुआ है, इस मंदिर में करीब चार प्रवेश द्वार हैं. इसमें तीर्थंकर आदिनाथ की संगमरमर से बनी 4 मूर्तियां हैं, इनकी खास बात यह है कि इनके मुख चारों दिशाओं की ओर हैं. चारों मूर्तियों की ऊंचाई लगभग 6 फीट है. इस वजह से ही इसे चतुर्मुख मंदिर भी कहा जाता है. मंदिर में करीब चार बड़े पूजा स्थान और प्रार्थना कक्ष हैं. साथ ही 76 छोटे गुम्बदनुमा स्थान हैं, जो मनुष्य के काल-चक्र की 84 योनियों को दर्शाते हैं.