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खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा की बीच ऐसा यद्ध जीसकी गाथा अमर है...

खानवा का युद्ध भारत के इतिहास के उन युद्धों में से है जिसकी गाथा अमर है। खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा की बीच हुआ था। लेकिन यह युद्ध भारत में सदियों के लिए मुगलों की स्थापना का कारण बन गया। बाबर वही शासक था जिसने कई छोटी-छोटी लड़ाईयों में रियासतें जीती और अंत में पानीपत की लड़ाई जीतकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा की बीच ऐसा यद्ध जीसकी गाथा अमर है...

खानवा का युद्ध भारत के इतिहास के उन युद्धों में से है जिसकी गाथा अमर है। खानवा का युद्ध बाबर और राणा सांगा की बीच हुआ था। लेकिन यह युद्ध भारत में सदियों के लिए मुगलों की स्थापना का कारण बन गया। बाबर वही शासक था जिसने कई छोटी-छोटी लड़ाईयों में रियासतें जीती और अंत में पानीपत की लड़ाई जीतकर दिल्ली पर कब्जा कर लिया।

खानवा का युद्ध कहां हुआ था

‘खानवा का युद्ध’ राजस्थान के भरतपुर के पास ‘खानवा’ नामक एक गांव में लड़ा गया था। इस लड़ाई से दिल्ली-आगरा में बाबर की स्थिति मज़बूत हो गई थी। आगरा से पहले बाबर ने ग्वालियर और धौलपुर के क़िलों को जीत कर अपनी स्थिति और भी मज़बूत कर ली थी। हालांकि, इस युद्ध के बारे में इतिहासकारों के अनेक मत हैं।

खानवा का युद्ध की वजह

बाबर ने अपने पूर्वज तैमूर की विरासत को पूरा करने के लिए विजय अभियान शुरू किया था। 1524 तक वह पंजाब क्षेत्र में अपने शासन का विस्तार करने का लक्ष्य बना रहा था। लेकिन कुछ घटनाओं ने उसे तैमूर के पूर्ववर्ती साम्राज्य की मूल सीमाओं से बहुत आगे बढ़ा दिया। लोदी वंश के तहत दिल्ली सल्तनत के पतन ने विजय के नए अवसर प्रस्तुत किए और बाबर को दौलत खान लोदी ने दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। लगभग उसी समय राणा सांगा द्वारा गठबंधन का प्रस्ताव रखा गया था।

खानवा पहली बार युद्ध के दौरान प्रयोग की गई तकनीकी का भी गवाह रहा है। यहीं से बाबर ने तोपखाने और बंदूकों को प्रयोग किया था। इस युद्ध की भयावहता के निशां यहां पहाडिय़ों पर बने हैं। युद्ध के दौरान बाबर के तोपखाने और बंदूकों ने पहाड़ियों को छलनी कर दिया था। इसके बावजूद राणा सांगा ने बाबर के तोपखाने का डटकर मुकाबला किया।

फतेहपुर-सीकरी से 10 मील उत्तर-पश्चिम में स्थित खानवा युद्ध के दौरान महाराणा संग्रामसिंह (राणा सांगा) गंभीर घायल हो गए थे। जो बाबर से लड़ते रहे थे। जब उन्हें युद्ध स्थल से बाहर ले जाया गया तो सेना में निराशा छा गई थी।