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राजस्थान की एक ऐसी कोठी जिसके बाहर लगी रहती है धारा-144, कहानी सुनकर रह जाएंगे दंग

राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक ऐसी कोठी है, जिसके बाहर खड़े होना भी अपराध है इस कोठी से 500 मीटर की दूरी तक कोई डीजे भी नहीं बजा सकता। जी हां ये सही है  जयपुर में एक ऐसी कोठी है जहां पिछले 31 साल से धारा-144 लगी हुई है। 

राजस्थान की एक ऐसी कोठी जिसके बाहर लगी रहती है धारा-144, कहानी सुनकर रह जाएंगे दंग

राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक ऐसी कोठी है, जिसके बाहर खड़े होना भी अपराध है इस कोठी से 500 मीटर की दूरी तक कोई डीजे भी नहीं बजा सकता। जी हां ये सही है  जयपुर में एक ऐसी कोठी है जहां पिछले 31 साल से धारा-144 लगी हुई है। आज तक न जानें कितनी सरकारें आई, पुलिस अधिकारियों के तबादले हुए, लेकिन धारा-144 को नहीं हटाया गया। हाल ही में 162वीं बार धारा-144 लगाने का आदेश जारी किया गया है।

कोठी के अंदर रहता है एक परिवार

मिली जानकारी के मुताबिक कोठी के अंदर एक परिवार भी रहता है और बाहर धारा-144 के तहत पुलिस का पहरा। ऑर्डर इतने सख्त हैं कि कोठी के 500 मीटर एरिया में डीजे बजाना, भीड़ इकट्ठी करने जैसी कई पाबंदियां हैं यहां पर।

पिछले 31 वर्षो से लगी है धारा-144

जयपुर की वॉल सिटी (परकोटा क्षेत्र) के गंगापोल रोड पर बास बदनपुरा की ओर जाते समय सड़क पर बदहाल पड़ी खाचरियावास कोठी पिछले 31 वर्ष से धारा-144 के साये में है। इस कोठी में कभी रौनक हुआ करती थी।आजादी से पहले इस कोठी में जयपुर रियासत के जज रहा करते थे। आजादी के बाद देश के उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत से लेकर उपप्रधानमंत्री रहे लालकृष्ण आडवाणी यहां संघ की शाखाएं लगाते थे।

आसपास रहने वालों को जानकारी नहीं

आसपास रहने वाले लोगों को भी इसकी पूरी जानकारी नहीं है। ज्यादातर लोगों का मानना है कि यह कोठी मुस्लिम बहुल क्षेत्र में है और कानून व्यवस्था बनाने के लिए धारा लगाई गई है।कोठी के पास ही कचौरी-समोसे बनाने वाले लोग बताते हैं कि उनकी तो उम्र बीत गई धारा-144 लगी हुई देखते-देखते। बस इतना जानते हैं कि 1993 में हुए साम्प्रदायिक दंगों के बाद इस इलाके में धारा 144 लगाई गई थी।यहां 2 बड़े सवाल थे...दंगे भड़कने की आशंका थी तो केवल एक कोठी पर ही निषेधाज्ञा क्यों लागू की गई? क्या 31 साल बाद भी हालात इतने बिगड़े हुए हैं कि धारा-144 नहीं हटाई जा सकती।

आरटीआई के जरिये मिली जानकारी

इन सवालों का जवाब जानने के लिए RTI का सहारा लिया गया। क्योंकि कोई पुलिस अधिकारी मामले में कुछ भी बताने के लिए तैयार नहीं था। आरटीआई से मिली जानकारी के बाद पुलिस अधिकारी कुछ बताने को राजी हुए। जानकारी मिली है कि खाचरियावास हाउस पर धारा 144 लगाने का असल कारण इसके संपत्ति के मालिकाना हक को लेकर उपजा विवाद है। हवेली के मालिक जयपुर रियासत ने राजपूताना हाउस के न्यायाधीश रहे ठाकुर कल्याण सिंह के बेटे ठाकुर सुरेंद्र सिंह हुआ करते थे।

मंदिर में बंद हुई पूजा तो शुरु हुआ विवाद

सुरेंद्र सिंह ने इसे मुनव्वर चौधरी नाम के एक बिल्डर को बेच दिया था। मामले में पेंच तब फंसा जब मुनव्वर चौधरी ने इस हवेली को डायरेक्ट ठाकुर सुरेंद्र सिंह से खरीदने की बजाय रमेश शर्मा नामक के किसी व्यक्ति के नाम से खरीदा। 1993 में इस हवेली को प्रथम बेचान और रजिस्ट्री रमेश शर्मा के नाम पर हुई थी।बाद में मुनव्वर चौधरी ने रमेश शर्मा से यह हवेली खरीदी और फिर मालिकाना हक जताते हुए कब्जा ले लिया। हवेली के परिसर में मुख्य द्वार के सामने बने भौमिया जी के मंदिर में पहले लोग पूजा पाठ करने के लिए आते थे, जिसे मुनव्वर ने बंद करवा दिया था।

मंदिर तोड़े जाने की आशंका पर हुई कार्रवाई

तब यह बात जाहिर हुई कि हवेली मुनव्वर चौधरी ने खरीद ली है। आस पास के लोगों ने परिसर में बने मंदिर को तोड़े जाने की आशंका जताई और इसका विरोध करना शुरू कर दिया। यह वो दौर था जब बाबरी मस्जिद का विवाद ताजा था।

जयपुर कलेक्टर ने दिये थे आदेश

प्रशासन को दंगा भड़कने की आशंका थी। मामले की गंभीरता को समझते हुए तत्कालीन जयपुर कलेक्टर एस एन थानवी ने पहली बार 20 मई, 1993 को हवेली और उसके 500 मीटर दायरे में धारा 144 लगाने का आदेश जारी किया था। 1993 में शुरू हुआ यह सिलसिला चार साल तक चलता रहा।

1993 से शुरु हुई धारा-144 की कहानी

1993 का रिकॉर्ड तो कहीं नहीं सहेजा गया लेकिन वर्ष 1997 से इसका रिकॉर्ड सुभाष चौक थाने में रखा जाने लगा। निषेधाज्ञा के ऑर्डर की कॉपी पर 1997 में तत्कालीन अतिरिक्त जिला कलेक्टर एवं अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट (नगर प्रथम जयपुर) एल. सी. असवाल के हस्ताक्षर हैं, जिसमें उन्होंने हवेली पर 26 मई से 25 जुलाई, 1997 तक निषेधाज्ञा लगाने के आदेश जारी किए थे।