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राजस्थान से कौन जीतेगा राज्यसभा में जाने की बाज़ी, ये नाम चल रहे आगे, पढ़ें एक क्लिक में

विधायकों की संख्या भाजपा के पक्ष में दिख रही है। अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो भाजपा आसानी से अपना उम्मीदवार जीत लेगी। अब सवाल यह है कि भाजपा की ओर से सबसे मजबूत उम्मीदवार कौन होगा?

राजस्थान से कौन जीतेगा राज्यसभा में जाने की बाज़ी, ये नाम चल रहे आगे, पढ़ें एक क्लिक में

राजस्थान में एक सीट के लिए राज्यसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल के लोकसभा सीट जीतने के बाद यह सीट खाली हुई थी। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस की ओर से राज्यसभा उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने की संभावना कम है।

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सबसे मजबूत उम्मीदवार कौन ?
विधायकों की संख्या भाजपा के पक्ष में दिख रही है। अगर कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो भाजपा आसानी से अपना उम्मीदवार जीत लेगी। अब सवाल यह है कि भाजपा की ओर से सबसे मजबूत उम्मीदवार कौन होगा?

कांग्रेसी नेता केसी वेणुगोपाल के लोकसभा चुनाव जीतने के बाद राजस्थान से राज्यसभा की एक सीट खाली हो गई है। जिस सीट पर उपचुनाव हो रहा है उसका कार्यकाल जून 2026 तक है।

चुनाव आयोग के अनुसार, 14 अगस्त को अधिसूचना जारी होने के साथ ही नामांकन शुरू हो जाएंगे। 21 अगस्त नामांकन दाखिल करने की आखिरी तारीख होगी। 22 अगस्त को नामांकन पत्रों की जांच होगी। 27 अगस्त तक नामांकन वापस लिए जा सकेंगे। मतदान का समय 3 सितंबर को सुबह 9 बजे से शाम 4 बजे तक है। उसी दिन शाम 5 बजे मतगणना के बाद नतीजे घोषित किए जाएंगे।

सबसे मजबूत सतीश पूनिया
राजस्थान विधानसभा चुनाव से ठीक 8 महीने पहले हाईकमान ने सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया था। हालांकि उनका कार्यकाल खत्म हो चुका था, लेकिन हाईकमान के इस फैसले से पूनिया आहत थे। पूनिया चाहते थे कि हाईकमान उन्हें विधानसभा चुनाव तक प्रदेश अध्यक्ष बने रहने का मौका दे। उस दौरान पार्टी में चर्चा थी कि जातिगत समीकरणों को संतुलित करने के लिए ब्राह्मण चेहरे सीपी जोशी को इस पद पर नियुक्त किया गया।

चर्चा यह भी थी कि आलाकमान गुटबाजी के कारण राजस्थान चुनाव में नुकसान नहीं उठाना चाहता था। पूनिया को वसुंधरा राजे गुट से भी लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा था। साथ ही किरोड़ी लाल मीना और पिछले संगठन महासचिव चंद्रशेखर से भी उनकी पटरी नहीं बैठ पा रही थी।

पूनिया को 2019 में भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। मार्च 2023 में उन्हें पद से हटा दिया गया। हालांकि, पूनिया का निर्वाचित कार्यकाल दिसंबर 2022 में ही पूरा हो गया। वे 3 साल तक इस पद पर रहे। इस दौरान उन्होंने राज्य के आदिवासी इलाकों समेत कई इलाकों का दौरा किया और अपनी टीम तैयार की। कांग्रेस सरकार के विरोध-प्रदर्शन में भी घायल हो गए। भाजपा की प्रदेश की राजनीति में अपना प्रभाव माना जाता है। इस कारण राष्ट्रपति पद से हटने के बाद उनके उप नेता प्रतिपक्ष पद से मिले और अब वे हरियाणा के प्रभारी हैं।

आलाकमान क्या चाहता है? 
सूत्रों के अनुसार, आलाकमान पूनिया को राष्ट्रीय राजनीति में लाना चाहता है। हरियाणा प्रभारी बनाने से पहले आलाकमान ने उनसे संगठन में राष्ट्रीय महासचिव पद को लेकर भी चर्चा की थी। लेकिन किन्हीं कारणों से बात नहीं बन पाई। अब आलाकमान उन्हें राज्यसभा का टिकट देकर दिल्ली की राजनीति में सक्रिय करने पर गंभीरता से विचार कर रहा है। इसके बाद संभावना है कि उन्हें संगठन में भी कोई पद दिया जा सकता है। अगर वे राज्यसभा सांसद बनते हैं तो उन्हें दिल्ली में रहने के लिए मकान भी आवंटित किया जाएगा।

संघ की क्या राय है?
राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो टिकट से लेकर प्रचार तक में आरएसएस का काफी दखल रहा। माना जा रहा है कि राज्यसभा चुनाव में भी आरएसएस का दखल रहेगा। यह पहलू पूनिया के पक्ष में जाता है। माना जा रहा है कि उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने में आरएसएस की सबसे बड़ी भूमिका रही। अध्यक्ष पद पर रहते हुए भाजपा के एक धड़े को छोड़कर बाकी सभी धड़ों से पूनिया को आरएसएस का पूरा समर्थन मिला।

राजेंद्र राठौड़ भी दौड़ में
पुराना राजनीतिक अनुभव और संसदीय समझ राजेंद्र राठौड़ को अन्य नेताओं से आगे रखती है। सूत्रों के अनुसार, भाजपा आलाकमान राठौड़ की भूमिका तय करने में जुटा है। इसी वजह से पार्टी राज्यसभा चुनाव के लिए राठौड़ के नाम पर भी विचार कर रही है। बड़े नेता होने के साथ ही राठौड़ को राज्य में भाजपा के राजपूत चेहरे के तौर पर भी देखा जाता है। ऐसे में वह राज्यसभा चुनाव में दावेदारों की दौड़ में शामिल हैं।