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आखिर क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ने को राजी हुए राहुल गांधी, जानें इसके पीछे की Inside स्टोरी

आजादी के बाद रायबरेली से फिरोज गांधी पहले सांसद रहे। जिसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया और 1967 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद 1971 के चुनावों में भी इंदिरा गांधी यहां से जीतीं, लेकिन 1977 में उन्हें जनता पार्टी के राजनारायण के हाथों हार मिली। ये वो समय था, जब इमरजेंसी के बाद कांग्रेस चुनाव लड़ी थी।

आखिर क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ने को राजी हुए राहुल गांधी, जानें इसके पीछे की Inside स्टोरी
आखिर क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ने को राजी हुए राहुल गांधी??

कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली की लोकसभा सीटों के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। जिसमें अमेठी से किशोरी लाल शर्मा और रायबरेली से राहुल गांधी मैदान में हैं। राहुल गांधी केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं। अमेठी से उम्मीदवार केएल शर्मा गांधी परिवार के काफी करीबी बताए जाते हैं। वह सोनिया गांधी के सांसद प्रतिनिधि भी हैं। काफी समय से खबरे थीं कि राहुल गांधी के अमेठी से चुनाव लड़ेंगे। अब पार्टी ने आखिर समय में राहुल को रायबरेली से चुनावी मैदान में उतारा।

क्यों रायबरेली से चुनाव लड़ने को राजी हुए राहुल गांधी

जैसा कि हम जानते हैं कि अमेठी और रायबरेली गांधी-नेहरू परिवार की परंपरागत सीट रही है। इस सीट पर परिवार के सदस्यों ने कई दशकों तक प्रतिनिधित्व किया है। साल 2019 में अमेठी से राहुल गांधी को भाजपा की स्मृति ईरानी से हार मिली थी। इस सीट पर इस बार किशोरी लाल शर्मा मैदान में हैं। अमेठी सीट पर फिरोज गांधी से लेकर संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। सोनियां गांधी साल 2004 से 2019 तक यहां की सांसद रहीं।

रायबरेली इंदिरा गांधी की कर्मभूमि

आजादी के बाद रायबरेली से फिरोज गांधी पहले सांसद रहे। जिसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली को अपनी कर्मभूमि बनाया और 1967 के लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद 1971 के चुनावों में भी इंदिरा गांधी यहां से जीतीं, लेकिन 1977 में उन्हें जनता पार्टी के राजनारायण के हाथों हार मिली। ये वो समय था, जब इमरजेंसी के बाद कांग्रेस चुनाव लड़ी थी। जिसमें इंदिरा गांधी को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हार मिली थी। 1980 में इंदिरा गांधी रायबरेली के साथ-साथ तेलंगाना सीट से चुनाव लड़ी। दोनों सीटों से वो जीतने में सफल रही, लेकिन उन्होंने रायबरेली सीट छोड़ दी। 43 साल तक रायबरेली सीट से गांधी परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन किसी बाहरी पर भी कांग्रेस ने भरोसा नहीं जताया बल्कि दूर के रिश्तेदार को ही टिकट दिया।

इंदिरा गांधी के रायबरेली सीट छोड़ने के बाद कांग्रेस से अरुण नेहरू चुनाव लड़े थे और जीतकर सांसद बने थे। अरुण नेहरू मोती लाल नेहरू के चचेरे भाई भाई श्याम लाल नेहरू के पौत्र थे। इस तरह गांधी फैमिली का परिवारिक रिश्ता था। राजीव गांधी जब राजनीति में आए तो अरुण नेहरू उनके सलाहकार थे, लेकिन बाद में कांग्रेस छोड़कर वीपी सिंह के साथ हो गए।

इसके बाद 1998 में शीला कौल की बेटी दीपा कौल को कांग्रेस ने रायबरेली से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वो भी जीत नहीं सकी। 1999 में कांग्रेस ने कैप्टन सतीश शर्मा को टिकट दिया, जो कांग्रेस के टिकट पर रायबरेली से सांसद बने।

कैप्टन शर्मा वैसे गांधी परिवार से नहीं थे, लेकिन राजीव गांधी के दोस्त थे। बताया जाता है राजीव गांधी ही उन्हें राजनीति में लेकर आए थे। साल 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद अमेठी लोकसभा सीट से कांग्रेस का टिकट कैप्टन सतीष शर्मा को मिला था। सोनिया गांधी ने उस समय राजनीति में आने से इनकार दिया था, जिसके बाद कांग्रेस ने कैप्टन शर्मा को अमेठी से प्रत्याशी बनाया। कैप्टन शर्मा 1991 और 1996 में अमेठी से जीतकर सांसद बने और केंद्र में मंत्री रहे। इसके बाद 1998 में भी कैप्टन शर्मा अमेठी से चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं सके।