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आज भी मौजूद है वो जगह जहां आज तक नहीं हुई कलयुग की शुरूआत

आज के अगर समय की बात करें तो भागती दौड़ती जिंदगी है. समय लोगों के पास काम है और वो हर पल संसाधन की तलाश में रहता है. हर किसी की आज कोशिश विलासितापूर्ण जीवन जीने की होती है. शायद इसीलिए खा जाता है कि कलियुग अपने चरम पर है. लेकिन क्या आपको पता है की इन सब भोग विलास और दौड़ भाग की जिंदगी से दूर आज भी एक ऐसा स्थान है जहां के लिए कहा जाता है कि इस स्थान पर कलयुग का प्रवेश नहीं हुआ है.

आज भी मौजूद है वो जगह जहां आज तक नहीं हुई कलयुग की शुरूआत

आज के अगर समय की बात करें तो भागती दौड़ती जिंदगी है. समय लोगों के पास काम है और वो हर पल संसाधन की तलाश में रहता है. हर किसी की आज कोशिश विलासितापूर्ण जीवन जीने की होती है. शायद इसीलिए खा जाता है कि कलियुग अपने चरम पर है. लेकिन क्या आपको पता है की इन सब भोग विलास और दौड़ भाग की जिंदगी से दूर आज भी एक ऐसा स्थान है जहां के लिए कहा जाता है कि इस स्थान पर कलयुग का प्रवेश नहीं हुआ है.

यह स्थान है वृंदावन में स्थित टटिया स्थान. स्वामी हरिदास सम्प्रदाय से जुड़ी इस जगह पर भगवान कृष्ण और राधा विराजमान हैं. यह एक ऐसी जगह है जहां लोगों को मानसिक रूप से शांति मिलती है.

टटिया का इतिहास

हरिदास जी बांके बिहारी के भक्त थे. हरिदास जी ने प्रेम और संगीत का पाठ यहां के पक्षियों, फूलों और पेड़ों से सीखा. इस संप्रदाय के 8 आचार्य हुए हैं. कहा जाता है कि इस जगह को सुरक्षित करने के लिए यहां पर बांस के डंडे का इस्तेमाल कर पूरे इलाके को घेर लिया गया. यहां कि स्थानीय भाषा में बांस की छड़ों को टटिया कहा जाता है. इसीलिए इस स्थान का नाम टटिया स्थन पड़ा.

ये है नियम

टटिया स्थान में रहने वाले साधु-संत देह त्याग के लिए समाधि लेते है. यहां स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है. यहां साधु-संत कुएं के पानी का ही इस्तेमाल करते हैं. खास बात यह है कि यहां साधु संत किसी प्रकार का दान नहीं लेते है. ना ही यहां दान पेटी मिलेंगी. बल्कि यहां साधु-संतों की ओर से भक्तों को रेत में बैठा कर पत्तलों और मिट्टी के बर्तनों में दिव्य प्रसादी बांटी जाती है. यहां आने वाला कोई भी व्यक्ति यहां मोबाइल या कोई इलेक्ट्रॉनिक सामान नहीं ला सकता. न ही यहां किसी आधुनिक वस्तु का उपयोग किया जा सकता है. यहां महिलाओं को सिर ढंककर ही र प्रवेश करने की अनुमति है.

कलयुग आखिर क्यों नहीं आया यहां

यहां कलयुग का मतलब मशीनी युग से है. हरिदास संप्रदाय से जुड़े इस स्थान पर साधु संत संसार से विरक्त होकर बांके बिहारी लाल के ध्यान में लीन रहते है. टटिया स्थान में आपको दिव्य प्राकृतिक सौंदर्य देखने को मिलेगा. यहां आने पर ऐसा लगता है मानों आप कई शताब्दियों पीछे आ गए हों.

यहां पर किसी भी मशीन या बिजली के उपकरण का इस्तेमाल नहीं होता. यहां आपको पंखे और बल्ब तक नहीं मिलेंगे. शाम के समय यहां पूरे परिसर में दीप जलाए जाते हैं. आरती के समय बिहारी जी को पंखा भी पुराने समय की तरह डोरी की मदद से किया जाता है.