HC ने रद्द की 69000 शिक्षक भर्ती की मेरिट लिस्ट, यूपी सरकार को बड़ा झटका, कैसे हुआ था पूरा खेल
उत्तर प्रदेश में 69 हजार प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने अहम फैसला देते हुए पूरी मेरिट लिस्ट रद्द कर दी है.
उत्तर प्रदेश में 69 हजार शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण घोटाले का मामला काफी समय से चल रहा था, जिसमें अब इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच का आदेश आया है. शिक्षक भर्ती में 19 हजार सीटों पर आरक्षण घोटाला साबित हो गया है. ऐसे में हाईकोर्ट ने शिक्षक भर्ती की पूरी सूची रद्द कर दी है.
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उत्तर प्रदेश में 69 हजार प्राथमिक शिक्षकों की भर्ती मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट की डबल बेंच ने अहम फैसला देते हुए पूरी मेरिट लिस्ट रद्द कर दी है. हाईकोर्ट ने सरकार को तीन माह के अंदर नई मेरिट लिस्ट तैयार करने का आदेश दिया है, जिसमें बेसिक शिक्षा नियमावली और आरक्षण नियमावली का पालन किया जाएगा. आपको बता दें कि सांडों ने इस भर्ती पर पूरी तरह से सवाल उठाए थे और 19 हजार लोगों की भर्ती करने का आरोप लगाया था.
भर्ती पर उठ रहे सवाल
आइए आपको इस पूरी भर्ती प्रक्रिया और इस पर उठ रहे सवालों के बारे में विस्तार से बताते हैं। दरअसल, अखिलेश सरकार में 1.72 लाख शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन किया गया था, जिसे हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. साथ ही हाईकोर्ट ने सहायक अध्यापकों की नए सिरे से भर्ती करने का आदेश दिया था। फिर यूपी सरकार ने सबसे पहले 68,500 सहायक अध्यापकों की भर्ती की. यह भर्ती भी सवालों के घेरे में आ गई और मामले की जांच भी सीबीआई से हुई.
कब हुई थी शिक्षक भर्ती परीक्षा?
खैर, 68500 सहायक शिक्षकों की भर्ती के बाद, यूपी सरकार ने 69,000 सहायक शिक्षकों की भर्ती के लिए दिसंबर 2018 में विज्ञापन जारी किया और जनवरी 2019 में परीक्षा आयोजित की गई। इस भर्ती में 4 लाख 10 हजार उम्मीदवारों ने भाग लिया था, जिनमें से 1 लाख 40 हजार अभ्यर्थी सफल हुए. इसके बाद सरकार ने मेरिट लिस्ट जारी की. मेरिट लिस्ट आते ही हंगामा मच गया, क्योंकि जिन अभ्यर्थियों को भरोसा था कि उनका चयन हो जाएगा, वे खाली हाथ रह गए।
फिर सामने आया घोटाला
फिर छात्रों ने सभी 69 हजार सहायक अध्यापकों की नियुक्ति का डाटा निकालना शुरू कर दिया. चार महीने की जद्दोजहद के बाद अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि 19 हजार पदों पर आरक्षण घोटाला हुआ है. उनका आरोप था कि ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी की जगह सिर्फ 3.86 फीसदी आरक्षण मिला, जबकि अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग को 21 फीसदी की जगह 16.2 फीसदी आरक्षण मिला. इसे लेकर हंगामा शुरू हुआ तो सरकार ने आरक्षण घोटाले से इनकार कर दिया.