Independence Day 2024: जब गोरों ने नाना राव की ‘मैना’ को जिंदा जलाया, कांप उठी थी कानपुर की आत्मा
नाना साहेब पेशवा की दत्तक पुत्री और स्वतंत्रता सेनानी मैनावती 13 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हो गईं।
नाना साहेब पेशवा की वीरांगना बेटी राजकुमारी मैनावती को आज शायद ही कोई जानता हो, लेकिन आजादी के इतिहास के पन्नों में 13 साल की राजकुमारी मैना की मौत की कहानी काले अक्षरों से लिखी गई है। उनकी मौत की एक ऐसी कहानी जिसे सुन किसी की भी रूह कांप जाए।
नाना साहेब पेशवा की दत्तक पुत्री और स्वतंत्रता सेनानी मैनावती 13 वर्ष की आयु में वीरगति को प्राप्त हो गईं। 1857 में अंग्रेजों ने उन्हें जीवित ही मार डाला था। उनके बलिदान के बारे में बहुत कम लोगों ने सुना है।
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यह 1857 का साल था जब देश भर में कई जगहों पर स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया और सशस्त्र संघर्ष किया। उत्तर प्रदेश के बिठूर में भी अंग्रेजों की क्रूरता अपने चरम पर थी।
नाना को कभी गिरफ्तार नहीं कर पाए अंग्रेज
नाना साहब पेशवा, जिनका राज्य बिठूर (कानपुर से लगभग 24 किमी दूर) में था। नाना कानपुर में अंग्रेजों को हराने में सफल हुए और वहां ब्रिटिश सेना पर कब्जा कर लिया। कई अंग्रेज मारे गए। नाना साहब ने कुछ दिनों तक कानपुर पर कब्ज़ा किया। अंग्रेज़ अतिरिक्त सेना लेकर पहुंचे और कानपुर पर फिर कब्ज़ा कर लिया। वो नाना साहब को गिरफ़्तार नहीं कर पाए।
अंग्रेजों ने नाना साहब की 13 वर्षीय दत्तक पुत्री मैनावती को बंदी बना लिया था। मैनावती को अपने पिता के बारे में पता था। लगातार यातनाएं दिए जाने के बावजूद उसने किसी को नहीं बताया कि उनके पिता नाना राव कहां हैं। अंग्रेजों ने किले के महलों में आग लगा दी थी।
उन्होंने मैनावती को चेतावनी दी कि अगर उसने उन्हें नाना साहब के बारे में नहीं बताया तो वे उसे आग में फेंक देंगे। मैनावती ने फिर भी एक शब्द नहीं कहा। फिर अंग्रेजों ने उसके पैर बांध दिए और उसे आग में फेंक दिया।
कहा जाता है कि मैनावती इतनी कम आयु में भी इतनी वीर थी कि उन्होंने महिलाओं की मल्लाह ब्रिगेड बनाई हुई थी। जिसके साथ मिलकर उन्होंने सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया था।