धनंजय सिंह की जमानत से गरमाई पूर्वांचल की राजनीति, बदल जाएगा पूर्वांचल का चुनाव
जौनपुर के बाहुबली नेता धनसंजय सिंह को चुनाव से पहले हाईकोर्ट ने जमानत दे दी हैं. लेकिन सजा में रोक ना लगने की वजह वह चुनाव नहीं लड़ पाएगे. इसलिए धनंजय सिंह ने अपनी पत्नी को जौनपुर से चुनाव मैदान में उतरा है.
देश के सबसे बड़े राजनीतिक प्रदेश उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस वक्त सबसे ज्यादा नाम एक ही बहुबली नेता धनंजय सिंह का सूर्खियों में है. वह जौनपुर सीट से एक बार सांसद और रारी सीट से दो बार विधायक भी रह चुके हैं. लोकसभा चुनाव में धनंजय सिंह ने जौनपुर सीट से लड़ने का ऐलान करके सबको चौका दिया था. लेकिन ऐलान के कुछ ही दिन बाद इनको अपहरण के मामले में जेल हो गई और इनके चुनाव लड़ने का सपना टूट गया. तब उन्होंने जौनपुर सीट से अपने पत्नी श्रीकला रेड्डी को चुनाव मैदान में उतारा और बसपा ने उन्हें अपनी पार्टी से टिकट दिया.
27 अप्रैल को यूपी हाईकोर्ट ने अपहरण मामले में धनसंजय सिंह को जमानत दे दी. जिसके बाद से जौनपुर की राजनीतिक गलियों में हलचल मच गई. हाईकोर्ट ने धनंजय को मिली सजा में रोक नहीं लगाई है. फिलहाल धनंजय बरेली जेल में बंद है. राजनीति के जानकारों का कहना कि धनंजय के जेल से बाहर आते ही जौनपुर के चुनाव का रूख बदल सकता है. जिसका बसपा और उनकी पत्नी श्रीकला होगा.
धनंजय सिंह को जमानत मिलते ही समाजवादी पार्टी के बागी विधायक और धनंजय सिंह के पुराने दोस्त अभय सिंह ने धनंजय पर जुबानी हमला बोलते हुए उन्हें उत्तर भारत का सबसे बड़ा डॉन तक कह डाला. अभय सिंह के मुताबिक, "राजस्थान, पंजाब और यूपी में आज धनंजय से बड़ा कोई माफिया नहीं है. उनको किसी से नहीं बल्कि हर किसी को उन्हीं से खतरा है."
1990 में पहली बार हत्या का लगा आरोप
साल 1990 में पहली बार धनंजय सिंह का नाम एक टीचर की हत्या मामले में सामने आया. लेकिन इस मामले में उस पर आरोप साबित ना हो सका. इस वारदात के बाद धनंजय के तार आपराधिक मामलों से जुड़ते चले गए. दो साल बाद ही 1992 में जौनपुर में 12वीं की परीक्षा के वक्त भी उनपर एक युवक की हत्या का आरोप लगा.
1998 में एनकाउंटर की आई खबर
1998 में यूपी पुलिस को भदोही जिले में मिर्जापुर रोड पर बने एक पेट्रोल पंप में लूट की सूचना मिलती है. पुलिस और लूटरे को बीच मुठभेड़ की खबर सामने आती है. जिसमें पुलिस द्वारा कहा जाता है कि बाहुबली नेता धनंजय सिंह एनकाउंटर में मारा गया. लेकिन एमकाउंटर के चार महीने बाद खुलासा हुआ कि धनंजय जिंदा है. उसने साल 1999 में सरेंडर कर दिया था. बाद में इस फेक एनकाउंटर के आरोप में यूपी पुलिस के 30 जवानों पर मुकदमा चला.
साल 2002 में बना विधायक
2002 के चुनाव में पहली बार धनंजय सिंह ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. अबतक जनंजय सिंह ने अपराध और राजनीति दोनों में अपना दबदबा बना लिया था. 2004 के चुनाव में जनता दल यूनाइटेट ने धनंजय को टिकट दी और उसने लगातार दूसरी बार जीत हासिल की. 2009 में धनंजय ने बसपा का दामन थाम लिया और लोकसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाई. साल 2009 में धनंजय सिंह सांसद बन गया. लेकिन 2 साल मायावती ने उसे पार्टी के विरोध काम करने चलते निष्कासित कर दिया.
लगातार तीन बार हार का करना पड़ा सामना
2014 के चुनाव में एक बार फिर धनंजय सिंह ने लोकसभा चुनाव लड़ा. लेकिन इस बार उको बार का सामना करना पड़ा. इसके बाद लगातार विधानसभा चुनाव 2017 और 2022 में धनंजय विधायकी का चुनाव हार गया.