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Ramlala Surya Tilak: रामनवमी पर रामलला का ‘सूर्य तिलक’... इन मंदिरों में भी सूर्य करते हैं देवी-देवताओं का अभिषेक

Surya tilak- रामलला के अयोध्या में विराजमान होने के बाद यह पहली रामनवमी है. 12 बजकर 16 मिनट पर रामलला का सूर्यतिलक हुआ. इन मंदिरों में भी देवी-देवताओं का सूर्यतिलक होता हैं. 

 

Ramlala Surya Tilak: रामनवमी पर रामलला का ‘सूर्य तिलक’... इन मंदिरों में भी सूर्य करते हैं देवी-देवताओं का अभिषेक

इस बार की रामनवमी पूरी देश के लिए खास हैं. अयोध्या में रमलला के प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह पहली रामनवमी है. राम मंदिर ट्रस्ट ने रामनवमी के लिए विशेष तैयारियां भी की हैं. इसके तहत रामनवमी में रामलला का सूर्य तिलक किया गया. इस दौरान रामलला की विशेष पूजा-अर्चना की गई. मंत्रोच्चराण के साथ रामलला का सूर्याभिषेक हुआ.

सूर्य तिलक मैकेनिज्म का उपयोग रामलला मंदिर से पहले भी कई जैन मंदिरों और सूर्य मंदिरों में होता आ रहा है. इन मंदिरों में अलग तरह की तकनीक का प्रयोग किया जाता है. रामलला मंदिर में मैकेनिज्म तो वहीं है. लेकिन तकनीक बिलकुल अलग है.  

आइए जानते हैं और किन-किन मंदिरों में सूर्य तिलक होता है ?

  1. जैन मंदिर 

गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में स्थित कोबा जैन तीर्थ भी श्री महावीर जैन का सूर्य तिलक होता है. कोबा जैन तीर्थ को गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स का उत्कृष्टता प्रमाण पत्र भी मिल चुका है. इसे जैन धर्म के ग्रंथों का विशाल संग्रह रखने के लिए जाना जाता है. हर साल 22 मई को लाखों जैनियों के सामने सूर्य की किरणें भगवान श्री महावीर स्वामी के मस्तक पर पड़ती है. ये अद्भूत घटना करीब 3 मिनट तक होती है. 

कोबा जैन आराधना केंद्र के ट्रस्टी बताते हैं, '1987 से हर साल सूर्य तिलक 22 मई को दोपहर 2.07 बजे होता है. आज तक इस समय बादलों को सूर्य की किरणों में बाधा डालते नहीं देखा गया है. ट्रस्टी का यह भी कहना है कि कोई जादू नहीं है, बल्कि गणित, खगोल विज्ञान और मूर्तिकला के पारंपरिक ज्ञान के सही उपयोग के साथ मंदिर के कुशलतापूर्वक निर्माण के कारण ऐसा सूर्य तिलक संभव हुआ है.'   

  1. महालक्ष्मी मंदिर 

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में स्थित महालक्ष्मी मंदिर में सूर्यतिलक की घटना साल में दो बार होती है. 31 जनवरी और 9 नवंबर को सूर्य की किरणें माता के चरणों पर पड़ती हैं. 1 फरवरी और 10 नवंबर को सूर्य की किरणें रश्मि मूर्ति के मध्य भाग पर गिरती है. 2 फरवरी और 11 नवंबर को सूर्य की किरणें पूरी मूर्ति को अपनी रोशनी से नहला देती हैं. इस पूरी घटना को किरणोत्सव के रूप में बहुत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. इस अद्भुत घटना को एलईडी स्क्रीन के जरिए लाइव स्ट्रीम किया जाता है.

  1. बालाजी सूर्य मंदिर 

मध्य प्रदेश के दतिया से 17 किमी दूर स्थित उनाव बालाजी सूर्य मंदिर में  भी सूर्य किरण से जुड़ी घटना होती है. मानना है कि सूर्य मंदिर  प्रागैतिहासिक युग (prehistoric) समय का है. पहाड़ियों में स्थित इस सूर्य मंदिर पर सूर्योदय की पहली किरण सीधे मंदिर के गर्भागृह में स्थित मूर्ति पर पड़ती है.

  1. मोढेरा का सूर्य मंदिर

गुजरात के मेहसाणा से 25 किमी. दूर मोढेरी गांव में एक सूर्य मंदिर है. जहां हर साल 21 मार्च और 21 सितंबर को सूर्य किरण से जुड़ी घटना होती है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के मुताबिक, मंदिर का निर्माण इस तरह से किया गया था कि 21 मार्च और 21 सितंबर को सूर्य की किरणें सीधे मंदिर में प्रवेश करेंगी और सूर्य की मूर्ति पर पड़ेंगी.मंदिर आज एक संरक्षित स्मारक है.

  1. कोणार्क सूर्य मंदिर 

ओडिशा में स्थित कोणार्क सूर्य मंदिर अपने आर्किटेक्चर के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है. सूर्य मंदिर को 13 वीं सदी में गंगा राजवंश के महान शासक राजा नरसिम्हदेव प्रथम ने बनाया था. इसकी आर्किटेक्चर इस प्रकार है कि सूर्य की पहली किरण मंदिर के मुख्य द्वार पर पड़ती है. जिसके बाद सूर्य का प्रकाश इसके अलग-अलग द्वारों के जरिए मंदिर में प्रवेश कर गर्भगृह को प्रकाशमान करता है.

 6.रणकपुर मंदिर

 

राजस्थान के उदयपुर शहर से 90 किमी. दूर मघई नदी के तट पर राजस्थान का रणकपुर मंदिर स्थित है. अरावली पहाड़ियों के जंगलों में छिपा हुआ रणकपुर जैनियों के भव्य मंदिरों में से एक है.  रणकपुर मंदिर जैनियों के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पूजा स्थल भी है. मंदिर को इस तरह से बनाया गया है कि दिन के समय में सूर्य की किरणें सीधे सूर्य भगवान की मूर्तियों पर पड़ती है. 

  1. गवी गंगाधरेश्वर मंदिर

गवी गंगाधरेश्वर मंदिर बेंगलूरू के प्रसिद्ध मदिरों में से एक है.  इसे गवीपुरम गुफा मंदिर भी कहा जाता है. भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अद्भुत आर्किटेक्चर  को दर्शाता है. इस मंदिर में दर्शन के लिए लाखों भक्त आते है. इस गुफा मंदिर का आंतरिक गर्भगृह विशेष चट्टान में उकेरा गया है. इसकी वजह से मकर संक्रांति के दिन सूर्य की किरणें जादुई तरीके से मंदिर के गर्भगृह तक पहुंचती हैं.नंदी की प्रतिमा को पहले किरणों से प्रकाशित किया जाता है और फिर शिवलिंग के चरणों को स्पर्श करवाया जाता है और अंत में यह पूरे शिवलिंग को प्रकाशित कर देता है. इस दौरान पुजारियों पवित्र श्लोकों का उच्चारण करते हैं. भगवान शिव को दूध से स्नान कराया जाता है.