क्या इंडिया गठबंधन पर भारी पड़ेगी बीजेपी ? आइए बताते हैं क्या है इस लोकसभा सीट का सियासी समीकरण ?
2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दलों ने भागदौड़ शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव को लेकर इन दिनों सियासी गलियारों से तरह-तरह के बयान भी सामने आ रहे हैं। कोई किसी का समीकरण बिगाड़ रहा है तो कई बना रहा है। हालांकि, चुनाव को लकेर प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों की स्थिति क्या होगी ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर राजनीतिक दलों ने भागदौड़ शुरू कर दी है। लोकसभा चुनाव को लेकर इन दिनों सियासी गलियारों से तरह-तरह के बयान भी सामने आ रहे हैं। कोई किसी का समीकरण बिगाड़ रहा है तो कई बना रहा है। हालांकि, चुनाव को लकेर प्रत्याशियों और राजनीतिक दलों की स्थिति क्या होगी ये तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा।
उत्तर भारत के सबसे अहम और 'हिन्दी बेल्ट की जान' कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश राज्य में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं, जिनमें से एक है मुरादाबाद संसदीय सीट जो अनारक्षित है। मुरादाबाद लोकसभा सीट पर 1952 से आज तक किसी भी राजनीतिक पार्टी की तरफ से कोई भी महिला प्रत्याशी जीत कर लोकसभा नहीं पहुंच सकी है। भाजपा भी पहली बार 2014 में जीत दर्ज कर पाई थी। लेकिन, मोदी लहर के बावजूद 2019 में भाजपा अपनी यह सीट हार गई थी। लगातार चौथी बार चुनाव लड़ रहे भाजपा प्रत्याशी कुंवर सर्वेश सिंह को इंडिया गठबंधन की महिला प्रत्याशी कड़ी टक्कर देती हुई दिखाई दे रही है। 1962 में एक बार निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्जकर लोकसभा पहुंच चुके हैं। 2 बार जनसंघ के उम्मीदवार भी जीत दर्ज कर चुके हैं।
अगर चार लोकसभा चुनावों पर नजर डाले तो वर्ष 2019 में सपा, बसपा और रालोद के गठबंधन की गांठ सबसे मजबूत साबित हुई है। इस गठबंधन ने वर्ष 2014 की मोदी लहर में भाजपा को मिली न सिर्फ सभी छह सीटें उससे छीन ली थी बल्कि सभी सीटों पर आधे से अधिक मतदाताओं का साथ पाने की मिसाल भी पेश की है।
2019 में बसपा - सपा गांठबंधन के प्रत्याशी एसटी हसन ने 50।64 प्रतिशत वोट लेकर जीत दर्ज की थी। इस बार भी सपा - कांग्रेस का गठबंधन है और बिजनौर जनपद की पूर्व विधायक रुचि वीरा को प्रत्याशी बनाया है। रुचि वीरा ने 2014 में उपचुनाव में सपा के उम्मीदवार के तौर पर बिजनौर विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की थी। उसके बाद बिजनौर जिला पंचायत अध्यक्ष भी रहीं। बरेली की आंवला सीट से लोकसभा चुनाव 2019 बसपा से लड़ा लेकिन, हार गई थीं।
मुरादाबाद का जातीय समीकरण
मुरादाबाद लोकसभा पर 52 प्रतिशत हिन्दू और 47 प्रतिशत मुस्लिम वोट हैं। इस सीट पर मुस्लिम वोटर ही निर्णायक होते हैं। भाजपा प्रत्याशी सर्वेश सिंह मोदी की गारंटी पर हिन्दू मुस्लिम वोट पर जीत का दावा कर रहे हैं। वहीं सपा प्रत्याशी रुचि वीरा भाजपा हटाने, संविधान बचाने, बेरोजगारी, महंगाई को दूर करने के लिए सर्व समाज का वोट मिलने का दावा कर अपनी जीत पक्की मान रही हैं। बसपा प्रत्याशी इरफान सैफी भी इस चुनावी मुकाबले में भाजपा और सपा को टक्कर देते दिख रहे हैं।
पीतल नगरी नाम से भी जाने जाने वाले इस शहर के विस्तार और विकास की बात जब भी होती है, तो राजनीति पर लोगों की टिप्पणी जरूर सुनाई देती है। हालांकि इस बार मुद्दों से अधिक समाजवादी की गुटबाजी पर चर्चा है। समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से यहां आखिरी वक्त में उम्मीदवार बदल लिया उससे पार्टी का संगठन दो फाड़ होने की आशंका लगाई जा रही है गया है। आजम खान रहने वाले भले ही रामपुर के हैं। लेकिन उनकी कही गई बातों का असर मुरादाबाद तक होता है। ये उन्होंने एक बार फिर बता दिया। पार्टी ने आजम की करीबी रुचि वीरा को मैदान में उतारा है। माना जा रहा है कि अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ी हुई हैं। तो दूसरी तरफ ये सीट बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का गृहक्षेत्र हैं। ऐसे में बीजेपी के लिए भी ये साख का सवाल बन गया है।