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इस राजपूत से बेपनाह मोहब्बत करती थी खिलजी की बेटी, इनकरा किया तो हुआ जालौर का जौहर और सोमनाथ का हरण

इतिहास मुगल आक्रांता और राजपूतों के युद्ध और वीरांगनाओं के जौहर की कहानी से भरा हुआ है. राजस्थान में कई ऐसे किले हैं जो वीरांगनाओं के जौहर के साक्षी बनें हैं. जालौर का जौहर और शाका भी इन्हीं में से एक है.

इस राजपूत से बेपनाह मोहब्बत करती थी खिलजी की बेटी, इनकरा किया तो हुआ जालौर का जौहर और सोमनाथ का हरण

इतिहास मुगल आक्रांता और राजपूतों के युद्ध और वीरांगनाओं के जौहर की कहानी से भरा हुआ है. राजस्थान में कई ऐसे किले हैं जो वीरांगनाओं के जौहर के साक्षी बनें हैं. जालौर का जौहर और शाका भी इन्हीं में से एक है.

12 वीं शताब्दी के अंतिम सालों के समय में जालौर पर राजा कान्हडदेव का शासन था. इनके पुत्र कुंवर विरमदेव चौहान कुश्ती के प्रसिद्ध पहलवान होने के साथ ही कुशल योद्धा भी थे. कम उम्र में भी कई युद्धों मे उन्होंने कुशल सैन्य संचालन किया और विजय दिलाई.

वहीं दूसरी ओर अलाउद्दीन खिलजी ने गुजरात पर चढाई की. वहां की प्रजा को लूटा और मारा. साथ ही सोमनाथ ज्योतिर्लिंग को अपने साथ लेकर आगे बढ़ा. राजपूतानों को लूटने के इरादे से जालौर पहुंच गया. जालौर से नौ कोस दूर सकराणे गांव में खिलजी ने अपना डेरा डाला. जालौर के शासक राव कान्हडदेव चौहान को जब यह पता चला तो उसने 4 राजपूत खिलजी के पास अपना सन्देश ले कर भेजा. खिलजी को सन्देश पहुंचा तो चारों राजपूतों को दरबार में बुलाया, राव कान्हडदेव के खास राजपूत कांधल साथियों के साथ दरबार में हाज़िर हुए पर उन्होंने खिलजी के सामने सिर नहीं झुकाया. इससे खिलजी आग बबूला हो गया. कांधल जालौर पहुंच कर कान्हडदेव के सामने सारी बात रखता है. तो कान्हडदेव सोमनाथ महादेव को छुड़ा कर लाने का प्रण लेते हैं. तीसरे दिन रात को कान्हडदेव की सेना खिलजी के डेरे पर हमला कर देती है. खिलजी के बहुत से आदमी मरे जाते है और खिलजी को जान बचा कर भागना पड़ता है.

सोमनाथ ज्योतिलिंग की सरना गांव में प्राण प्रतिष्ठित

सोमनाथ ज्योतिलिंग को तुर्कों से छुड़ा कर कान्हडदेव उन्हें जालोर ले आते हैं और उनको गांव मकराना (सरना गांव) में प्राण प्रतिष्ठित कर देते हैं. युद्द में जालौर के राजकुमार की वीरता की कहानी सुन खिलजी उसे दिल्ली आमंत्रित करता है. उसके पिता कान्हड़ देव ने सरदारों से विचार विमर्श करने के बाद राजकुमार को खिलजी के पास दिल्ली भेज दिया.

खिलजी ने दिया पुत्री के विवाह का प्रस्ताव

दिल्ली में खिलजी ने अपनी पुत्री फिरोजा के विवाह का प्रस्ताव राजकुमार विरमदेव के सामने रखा. विरमदेव एकाएक ठुकराने की स्थिति में नही थे इसलिए जालौर से बारात लाने का बहाना बना दिल्ली से निकल आए और जालौर पहुंच कर खिलजी का प्रस्ताव ठुकरा दिया.

प्रस्ताव ठुकराने से बौखलाया खिलजी

प्रस्ताव ठुकराने की वजह से खिलजी ने जालौर पर हमले का निश्चय कर एक बड़ी सेना रवाना की. जिस सेना पर सिवाना के पास जालौर के कान्हड़ देव और सिवाना के शासक सातलदेव ने मिलकर एक साथ आक्रमण कर परास्त कर दिया. हार के बाद भी खिलजी ने सेना की कई टुकड़ियां जालौर पर हमले के लिए रवाना कीं और यह क्रम पांच सालों तक चला. आख़िर में जून 1390 में खिलजी एक बड़ी सेना के साथ जालौर के लिए रवाना हुआ और पहले उसने सिवाना पर हमला किया. यहां उसने एक विश्वासघाती के जरिये सिवाना दुर्ग के सुरक्षित जल भंडार में गौ-रक्त डलवा दिया. जिससे वहां पीने के पानी की समस्या हो गई. जिस वजह से सिवाना के शासक सातलदेव ने अन्तिम युद्ध का ऐलान कर दिया. उसकी रानियों ने अन्य क्षत्रिय स्त्रियों के साथ जौहर किया और सातलदेव समेत सभी वीरों ने शाका कर अन्तिम युद्ध में लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की.
इसके बाद खिलजी अपनी सेना को जालौर पर हमले का हुक्म देकर दिल्ली आ गया. उसकी सेना ने यहां कई जगह लूटपाट, अत्याचार किए. सांचोर के जय मन्दिर समेत कई मंदिरों को खंडित किया. इसबीच कान्हड़ देव ने कई जगह खिलजी की सेना पर आक्रमण कर उसे शिकस्त दी और दोनों सेनाओ के बीच कई दिनों तक युद्ध चले. आखिर में खिलजी ने जालौर जीतने के लिए सेनानायक कमालुद्दीन को विशाल सेना के साथ जालौर भेजा.

विश्वासघाती के कारण किले में प्रवेश

 अथक प्रयासों के बाद भी कमालुद्दीन जालौर दुर्ग नही जीत सका और अपनी सेना ले वापस लौटने लगा. तभी कान्हड़देव का सरदार विका से मतभेद हो गया और विका ने जालौर से लौटती खिलजी की सेना को जालौर दुर्ग के असुरक्षित और बिना किलेबंदी वाले हिस्से का गुप्त भेद दे दिया. विका के विश्वासघात का पता जब उसकी पत्नी को लगा तो उसने अपने पति को जहर देकर मार डाला. विश्वसाघात की वजह से जालौर पर खिलजी की सेना का कब्जा हो गया. खिलजी की सेना को भारी पड़ते देख 1368 में कान्हड़देव ने अपने पुत्र विरमदेव को गद्दी पर बैठा दिया और ख़ुद अन्तिम युद्ध करने का निश्चय किया. जालौर दुर्ग में उसकी रानियों के अलावा अन्य समाजों की औरतों ने 1584 जगहों पर जौहर की ज्वाला प्रज्वलित कर जौहर कियाय. इसके बाद कान्हड़ देव ने शाका कर अन्तिम दम तक युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त की. कान्हड़देव के बाद विरमदेव ने युद्ध की बागडोर संभाली. विरमदेव का शासक के रूप में साढ़े तीन साल का कार्यकाल युद्ध में ही बीता. अंत में विरमदेव की रानियां भी जालौर दुर्ग को अन्तिम प्रणाम कर जौहर की ज्वाला में कूद पड़ीं और विरमदेव ने भी शाका कर दुर्ग के दरवाजे खुलवा शत्रु सेना पर टूट पड़ा और भीषण युद्ध करते हुए वीर गति को प्राप्त हुआ.

फिरोजा के सामने लाया गया विरमदेव का मस्तक

 विरमदेव के वीरगति को प्राप्त होने के बाद शाहजादी फिरोजा की धाय सनावर जो इस युद्ध में सेना के साथ आई थी, विरमदेव का मस्तक काट कर सुगन्धित पदार्थों में रख कर दिल्ली ले गई. कहते हैं विरमदेव का मस्तक जब स्वर्ण थाल में रखकर फिरोजा के सामने लाया गया तो मस्तक उल्टा घूम गया. फिरोजा ने उनके मस्तक का अग्नि संस्कार किया और ख़ुद अपनी मां से आज्ञा प्राप्त कर यमुना नदी के जल में प्रविष्ट हो गई.