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राजस्थान के खूबसूरत महल जसवंत थड़ा जिसे देख आप रह जाओगे दंग...

महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय का दूधिया-सफ़ेद संगमरमर से बना यह स्मारक, मेहरानगढ़ से 1 किमी उत्तर-पूर्व में एक छोटी सी झील के ऊपर स्थित है। जो सनकी गुंबदों की एक श्रृंखला है। शहर के शोर-शराबे के बाद यह एक स्वागत योग्य, शांतिपूर्ण स्थान है। किले और शहर के दृश्य शानदार हैं। 1899 में इसे बनाया गया। इस कब्रगाह में कुछ सुंदर जालियां हैं और इसे 13वीं शताब्दी के राठौड़ शासकों के चित्रों के साथ लटकाया गया है।

राजस्थान के खूबसूरत महल जसवंत थड़ा जिसे देख आप रह जाओगे दंग...

महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय का दूधिया-सफ़ेद संगमरमर से बना यह स्मारक, मेहरानगढ़ से 1 किमी उत्तर-पूर्व में एक छोटी सी झील के ऊपर स्थित है। जो सनकी गुंबदों की एक श्रृंखला है। शहर के शोर-शराबे के बाद यह एक स्वागत योग्य, शांतिपूर्ण स्थान है। किले और शहर के दृश्य शानदार हैं। 1899 में इसे बनाया गया। इस कब्रगाह में कुछ सुंदर जालियां हैं और इसे 13वीं शताब्दी के राठौड़ शासकों के चित्रों के साथ लटकाया गया है।

मेवाड़ का ताजमहल

जसवंत थड़ा को मेवाड़ का ताजमहल कहा जाता है, क्योंकि ये सफेद की संगमरमर से बना है। लेकिन  अगर इसकी तुलना आगरा की ताजमहल से करें तो दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल अलग है। जसवंत थड़ा में भी आपको छोटे-छोटे सुंदर गुंबद देखने को मिल जाएंगे। ये नाम यहां के महाराजा जशवंत सिंह द्वितीय द्वारा रखा गया था।

जसवंत थड़ा का इतिहास

स्मारक निर्माण उनके बेटे महाराजा सदर सिंह द्वारा वर्ष 1899 में करवाया गया था। उस दौरान इसका खर्च 2 लाख 84 हजार के करीब आया था। स्मारक के अंदर आपको मेवाड़ के समय के राजाओं की तस्वीरें मिल जाएंगी। इस स्मारक में ना केवल सफेद मार्बल का इस्तेमाल हुआ है। बल्कि यहां आपको लाल रंग के मार्बल भी दिख जाएंगे। जो इस स्मारक को एक अलग रूप देते हैं।

सुबह की पहली किरण के साथ ही यह भवन सुहाना लगता है। सूरज की रश्मियों की छुअन से निखरते इसके सफेद झरोखे और कंगूरे स्थापत्य कला के बेजोड़ नमूने हैं। यह इमारत चांदनी रात में बहुत खूबसूरत दिखाई पड़ती है। स्काउट गाइड, एनसीसी, एनएसएस, स्कूल कॉलेज के भ्रमण दल, देसी विदेशी सैलानी इसे देखने आते हैं। जोधपुर रिफ के आयोजन के बाद से इसकी लोकप्रियता में इजाफा हुआ है। रिफ के दौरान विख्यात गायकों की आवाज में अलसभोर और संध्या आरती के समय कबीर वाणी माहौल में भक्ति का रस सुनने को मिलता है। सुबह- शाम जसवंत थड़ा से भजनों की मधुर स्वर की लहरियां गूंजती है। तो नीचे उसी वेला में सुबह फज्र और शाम को अस्र-मगरिब की अजान की आवाज गूंजती है।

जसवंत थड़ा की वास्तुकला

स्मारक की वास्तुकला बहुत ही खूबसूरत है। पर्यटक के रूप में आप यहां आकर्षक नक्काशियां देख सकते हैं। संरचना के पास बनी झील देख सकते हैं। स्मारक परिसर को इतिहास से जुड़ी कई कहानियों के रूप में समझ सकते हैं। परिसर में एक बड़ा लॉन है, यहां आप थोड़ी देर बैठकर इस खूबसूरत संरचना को निहार सकते हैं। स्मारक के पास एक श्मशान भी है। जहां राज परिवार के लोगों का अंतिम संस्कार हुआ करता था। यहां जली हुई लकड़ियों के अवशेष देखने को मिलते हैं।