सियाचिन की सर्दी से राजस्थान की गर्मी तक की देश की सेवा,अब लहरा दिया ओलंपिक में तिरंगा, जानिए कौन है ये खिलाड़ी?
Avinash Sable Paris Olympics 2024: महाराष्ट्र से आने वाले अविनाश साबले पेरिस ओलंपिक में देश की ओर से दावेदारी पेश करेंगे। अविनाश 3000 मीटर स्टीपलचेज में हिस्सा लेंगे, इस बार उनसे ओलंपिक में मेडल की उम्मीद होगी।
Avinash Sable Paris Olympics 2024: महाराष्ट्र के बीड जिले के एक गरीब किसान परिवार में जन्मे अविनाश साबले का छोटी उम्र से ही लंबी दूरी का रनर बनने का सपना था। जब से वह छह साल के थे, तब से वह घर से स्कूल और वापस छह किलोमीटर की दूरी दौड़कर या पैदल तय करते थे, क्योंकि उनके लिए कोई परिवहन की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। और यहीं से बेस्ट रनर बनने की शुरूआत हुई। अविनाश साबले ने स्कूली पढ़ाई पूरी की और 12वीं के बाद सीधे भारतीय सेना में भर्ती हो गए। इसके बाद भी उनकी एथलेटिक्स में तुरंत एंट्री नहीं हुई, बल्कि उन्हें सबसे कठिन हिस्सों में जाकर मोर्चा संभालना पड़ा। शुरुआत में वो दुनिया के सबसे ऊंचे और सबसे ठंडे मिलिट्री पोस्ट सियाचिन में तैनात थे, जिसके बाद पश्चिमी राजस्थान की तपती हुई गर्मी में उनकी तैनाती हुई। इसके बाद धीरे-धीरे उनकी शुरुआत हुई एथलेटिक्स में और बस यहां से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
कभी थे राजमिस्त्री अविनाश साबले
अविनाश साबले बीड जिले के सूखाग्रस्त मांडवा गांव में राजमिस्त्री का काम किया करते थे। वहां से निकलकर आज वो भारत के सबसे बेहतरीन लंबी दूरी के धावक बनकर सामने आए हैं। उनका यहां तक पहुंचने का जो सफर रहा है वह काफी संघर्ष भरा रहा है।इस बार अविनाश साबले पेरिस ओलंपिक में देश की ओर से दावेदारी पेश करेंगे। अविनाश 3000 मीटर स्टीपलचेज में हिस्सा लेंगे, इस बार उनसे ओलंपिक में मेडल की उम्मीद होगी।
अपनी मेहनत से हासिल की सफलता
अविनाश साबले काफी मेहनत के बाद आज इस मुकाम पर पहुंचे है। बता दें कि इस समय वह भारत के सबसे बेहतरीन लंबी दूरी के धावक हैं। साल 2017 में एक दौड़ के दौरान सेना के कोच अमरीश कुमार ने उनकी तेज गति को देखा और फिर उन्हें स्टीपलचेज़ वर्ग में दौड़ने की राय दी। दौड़ने की श्रेणी बदलना अविनाश साबले के लिए काफी अहम रहा। उन्हें फिर लगातार उनको सफलता मिलने लगी
सर्द सियाचिन से तपते राजस्थान तक की देश की रक्षा
अविनाश साबले को 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी करने के बाद भारतीय सेना में भर्ती किया गया था और वह 5 महार रेजिमेंट का हिस्सा थे। उन्हें सियाचिन, राजस्थान और सिक्किम में तैनात किया गया था। अपनी सेवा के पहले दो वर्षों में, अविनाश साबले ने दो चरम जलवायु परिस्थितियों का सामना किया। जहां सियाचिन का तापमान नियमित रूप से माइनस में चला जाता था, वहीं राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में यह 50 डिग्री तक पहुंच जाता था। साल 2015 में ही अविनाश साबले ने सेना के एथलेटिक्स कार्यक्रम में शामिल होने के बाद दौड़ के बारे में जानाकारी हासिल की। उन्हें शुरू में क्रॉस कंट्री प्रतियोगिताओं के लिए चुना गया था और उनकी प्रतिभा जल्द ही सामने आ गई।
10वीं बार तोड़ा नेशनल रिकॉर्ड
अविनाश साबले ने लगातार नेशनल रिकॉर्ड तोडे है जो कि उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है। इसकी शुरुआत 2018 में नेशनल ओपन चैंपियनशिप से हुई, जब साबले ने गोपाल सैनी के 37 साल पुराने नेशनल रिकॉर्ड को तोड़ दिया था। साबले ने तब 8:29.80 मिनट में 3000 मीटर स्टीपलचेज रेस पूरी की और नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया। इसके बाद से ही साबले ने हर बड़ी रेस में अपने ही रिकॉर्ड को तोड़ा और स्टीपलचेज में नये कीर्तिमान स्थापित किए। पेरिस ओलंपिक से ठीक पहले साबले ने पेरिस में हुई डाइमंड लीग में 8:09.94 मिनट के समय के साथ नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया।कुल मिलाकर 2018 से अब तक 10वीं बार साबले ने अपने ही रिकॉर्ड को तोड़कर स्टीपलचेज में अपना दबदबा बनाए रखा है।
28 साल की बादशाहत की खत्म
अविनाश साबले दूसरी बार ओलंपिक में हिस्सा लेने उतरेंगे। इससे पहले टोक्यो ओलंपिक में उन्होंने डेब्यू किया था और जैसा की अनुमान था, वो फाइनल के लिए भी क्वालिफाई नहीं कर पाए थे। फिर भी उन्होंने दिग्गजों से भरी अपनी हीट में सातवां स्थान हासिल किया और नया नेशनल रिकॉर्ड बनाया था। उस वक्त फाइनल के लिए क्वालिफाई न करने वाले रेसरों में साबले ही सबसे तेज थे।
पदक जीतने में आगे रहें साबले
साबले के करियर का पहला बड़ा मेडल आया बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 में, जब उन्होंने पूरी दुनिया को चौंकाते हुए सिल्वर मेडल जीता था। कॉमवेल्थ गेम्स में 1994 के बाद पहली बार केन्या के अलावा किसी और देश के खिलाड़ी ने मेडल जीता था। साबले ने फिर एशियन गेम्स में भी गोल्ड मेडल जीता, जबकि इन्हीं गेम्स में 5000 मीटर का सिल्वर भी अपने नाम किया।साबले को 2022 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।