Trendingट्रेंडिंग
वेब स्टोरी

Trending Web Stories और देखें
वेब स्टोरी

आपातकाल के 50 साल, इमरजेंसी का ऐलान और बांग्लादेश कनेक्शन !

आज से 50 साल पहले आज ही के दिन की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगाई. जिसका दंश करीब 21 महीनों तक देश ने झेला. 

आपातकाल के 50 साल, इमरजेंसी का ऐलान और बांग्लादेश कनेक्शन !

आज से 50 साल पहले आज ही के दिन की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पूरे देश में इमरजेंसी लगाई. जिसका दंश करीब 21 महीनों तक देश ने झेला. कुछ जानकारों का कहना है कि इमरजेंसी के पीछे का कारण रायबरेली में दर्ज एक मुकदमा था. जिसमें 1975 के लोकसभा चुनाव के नतीजे को चुनौती देना था. जिसमें रायबरेली सीट पर इंदिरा गांधी की टक्कर विपक्षी महागठबंधन के प्रत्याशी राजनारायण से थी. वहीं कुछ जानकारों का कहना यह भी है कि इंदिरा के इस फैसले के पीछे की एक बड़ी वजह बांग्लादेश में भी थी.

ढाका में बांग्लादेश के संस्थापक के परिवार की हत्या
कुछ इतिहासकारों और पत्रकारों के अनुसार 15 अगस्त को जब इंदिरा गांधी लाल किले से देश को संबोधित करने वाली थीं. तभी इससे महज पांच घंटे पहले बांग्लादेश के संस्थापक मुजीब उर रहमान और उनके परिवार की हत्या कर दी गई थी. इस घटना का जिक्र वरिष्ठ पत्रकार सुदीप ठाकुर की किताब 'दस साल: जिनसे देश की सियासत बदल गई' में भी है.

मुजीब की बेटियां शेख हसीना और रेहाना बच गईं
इतिहासकार बताते हैं कि साल 1975 को 14 और 15 अगस्त की दरम्यानी रात सेना के कुछ बागी अफसरों ने टैंकों के साथ मुजीब उर रहमान के आवास को घेर लिया. फौजियों ने मुजीब, उनके तीनों बेटों, पत्नी, दो बहुओं, उनके भाई और दो नौकरों सहित कुल 20 लोगों की हत्या कर दी. इस कत्लेआम में उनकी दो बेटियां शेख हसीना और शेख रेहाना बच गईं थीं. जो बांग्लादेश से बाहर जर्मनी में थीं.

25 जनवरी को बांग्लादेश में लगा था आपातकाल
वरिष्ठ पत्रकारों का कहना है कि शेख मुजीब का शासन महज दो-तीन सालों के भीतर ही भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिर गया. मुजीब पर तानाशाही के आरोप लगे, भारी विरोध हुआ. ऐसी परिस्थितियों के बीच शेख मुजीब ने 25 जनवरी, 1975 को बांग्लादेश में आपातकाल लागू कर एकल पार्टी की व्यवस्था कायम की. जब इंदिरा गांधी की खास दोस्त पुपुल जयकर उनसे मिलने गईं, तो इंदिरा गांधी ने आशंका जताई कि उन्हें और उनके परिवार को भी इसी तरह से निशाना बनाया जा सकता है. इस वाक्ये को भी कई जानकार भारत में इमरजेंसी लगने से जोड़ कर देखते हैं.