Haryana Election: कहां फंसा AAP-कांग्रेस के बीच गठबंधन का पेंच, सबकुछ जानें इस स्पेशल रिपोर्ट में
Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। जिसमें 20 उम्मीदवारों को जगह दी गई है। AAP के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष सुशील गुप्ता ने ऐलान किया था कि कि अगर शाम तक कोई समझौता नहीं हुआ तो उनकी पार्टी सभी 90 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी कर देगी।
Haryana Election: हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर बीते कई दिनों से आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को लेकर तमाम सुर्खियां आ रही थीं, जिससे सियासत का ऊंठ किस करवट बैठने वाला है, इसको लेकर सभी अटकलें लगा रहे थें। बताया जा रहा है कि AAP जो सीटें अपने पक्ष में मांग रही थी, उसको लेकर कांग्रेस के दिग्गज नेता हुड्डा राजी नहीं थे। इन तमाम उलझनों के बीच आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट भी जारी कर दी है, जिसके बाद कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। साथ ही गठबंधन की तरकीब फेल होती नजर आ रही हैं, उसके क्या कारण माने जा रहे, चलिए जानते हैं,
AAP ने जारी की अपनी पहली लिस्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट जारी कर दी है। जिसमें 20 उम्मीदवारों को जगह दी गई है। AAP के हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष सुशील गुप्ता ने ऐलान किया था कि कि अगर शाम तक कोई समझौता नहीं हुआ तो उनकी पार्टी सभी 90 विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारों के नाम जारी कर देगी। आपको बता दें, हरियाणा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 12 सितंबर है, जबकि मतदान 5 अक्टूबर को होना है। अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी 10 सीटों की मांग कर रही थी जबकि कांग्रेस ने पांच सीटों की पेशकश की थी। आम आदमी पार्टी के द्वारा पहली लिस्ट जारी करने के बाद ये माना जा रहा है कि गठबंधन फेल हो गया है। इसके क्या कारण हैं, चलिए वो समझते हैं।
आम आदमी पार्टी की महत्वाकांक्षा
आम आदमी पार्टी की हरियाणा विधानसभा चुनाव को लेकर काफी महत्वाकांक्षा दिखा रही थी। दिल्ली, पंजाब के बाद आम आदमी पार्टी कई दूसरे राज्यों में अपना विस्तार करना चाहती है। गुजरात और गोवा में वो कुछ हद तक कामयाब भी हुई है, अब इसी कड़ी में वो हरियाणा में बड़े स्तर पर एक्सपेरिमेंट करना चाहती है। अरविंद केजरीवाल खुद हरियाणा से आते हैं, ऐसे में आम आदमी पार्टी को पूरी उम्मीद है कि आने वाले समय में इस राज्य में भी पार्टी का परचम लहरा सकता है।
‘नो रिस्क टेकिंग अप्रोच’
हरियाणा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का ‘नो रिस्क टेकिंग अप्रोच’ है। इस चुनाव में कांग्रेस को एहसास है कि बीजेपी को अगर कोई हरा सकता है तो वही है। पिछले कई विधानसभा चुनाव में देखा गया है कि मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस का रहता है और आईएनएलडी और जेजीपी जैसे दूसरे दल किसी न किसी के साथ गठबंधन कर लेते हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा सीटों पर खुद ही चुनाव लड़ना चाहती है। आम आदमी पार्टी का इस राज्य में चुनावी रिकॉर्ड भी इस बात की तस्दीक करता है कि उसका जनाधार ना के समान है, ऐसे में कांग्रेस कोई भी रिस्क लेकर जीती हुई बाजी हारना नहीं चाहती।
कांग्रेस की ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद
आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन फेल होने का कारण पिछले कुछ चुनावी नतीजे भी माने जा रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने राजद के सामने ज्यादा सीटों पर लड़ने जिद रखी थी। इस वजह से उस चुनाव में कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी, लेकिन जीत सिर्फ 19 पर ही पाई। इसी वजह से राजद के शानदार प्रदर्शन के बावजूद भी महागठबंधन सरकार बनाने से चूक गया। अब जो स्थिति बिहार में रही, वैसा ही हाल हरियाणा में है क्योंकि यहां पर कांग्रेस अगर सीनियर पार्टी है तो आम आदमी पार्टी की वर्तमान में जूनियर वाली हैसियत है। ऐसे में अगर आम आदमी पार्टी को ज्यादा सीटें दी गई और वो उन पर हार गई, उसका खामियाजा दोनों ही पार्टियों को भुगतना पड़ेगा और सीधा फायदा बीजेपी को जा सकता है।
आम आदमी पार्टी नहीं चाहती विशेष सीटे छोड़ना
गठबंधन को लेकर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच काफी मीटिंग हुई, लेकिन बात नहीं बनी। इसका एक मेन कारण आम आदमी पार्टी का कुछ सीटों को न छोड़ना भी कारण रहा है। माना जा रहा है कि आप पार्टी कई ऐसी सीटें हैं जहां पर वो झुकने को रेडी नहीं दिख रही। आप ने कांग्रेस को साफ कर दिया है कि कलायत विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी अपने प्रदेश उपाध्यक्ष अनुराग ढांडा को उतारना चाहती है। इसी तरह कुरुक्षेत्र इलाके में भी आम आदमी पार्टी हर कीमत पर एक सीट मांग रही है। यह दो ऐसे बिंदु हैं जहां पर आम आदमी पार्टी का रुख एकदम अडिग दिखाई दे रहा है और कांग्रेस दोनों ही बातों को मानने से इनकार कर रही है।
किसी भी पार्टी का मबजूर न होना
हरियाणा विधानसभा चुनाव में दोनों ही पार्टियां गठबंधन के लिए मजबूर नहीं हैं। इस चुनाव में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी से सिर्फ इसलिए गठबंधन चाहती थी कि जो थोड़ा बहुत भी वोटों का बिखराव होता, उसे रोक लिया जाता। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी भी सिर्फ बीजेपी को हराने के लिए ही कांग्रेस के साथ जाने को तैयार हुई थी, वरना पिछले कुछ सालों से लगातार आम आदमी पार्टी तो दावा कर रही थी कि वो सभी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी और पूरी ताकत के साथ चुनाव लड़ेगी।