Haryana Election: "लोकल बॉय" बनाम "दिल्ली मॉडल": चुनावों में जीत दिलायेगा केजरीवाल का सियासी समीकरण ? जानें
Haryana Election Arvind Kejriwal: हरियाणा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर, अरविंद केजरीवाल की जेल से रिहाई के बाद चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। केजरीवाल "दिल्ली मॉडल" की सफलता को हथियार बनाकर हरियाणा में महिलाओं और गरीबों को लुभाने का प्रयास कर रहे हैं। जानें आप का मास्टर प्लान।
हरियाणा चुनाव के मद्देनजर सरगर्मियां तेज है। पहले मुख्य मुकाबला बीजेपी-कांग्रेस के बीच माना जा रहा था लेकिन अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आते ही समीकरण बदल गए हैं। वह आम आदमी के लिए हरियाणा चुनाव की कमान संभालेंगे। केजरीवाल की जमानत के बाद काफी कुछ बदला है, अब वह सीएम से कार्यवाहक मुख्यमंत्री है। जानकारी के अनुसार, पूर्व दिल्ली सीएम शनिवार को यमुनागर के जगाधरी सीट से प्रचार अभियान का शंखनाद करेंगे। पार्टी ने शीर्ष नेताओं के 11 जिलों में 13 कार्यक्रम तय किये हैं। ऐसे में सवाल है कि केजरीवाल हरियाणा चुनाव में पासा पलट पायेंगे या नहीं।
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1) 'हरियाणा का बेटा' बन पॉलिटिक्स
दिल्ली में केजरीवाल ने तीसरी बार सरकार बनाई थी, जबकि पहली बार पंजाब में सत्ता हासिल की लेकिन हरियाण-पंजाब का सियासी मिजाज अलग है। यहां सेटीमेंट और जाति फैक्टर मेटर करता है। कांग्रेस इस बार जाट-पहलावन और किसान मुद्दे के साथ मैदान में है। तो वहीं केजरीवाल हरियाणा का बेटा बनकर प्रचार कर रहे हैं। जब वह जेल में थे तो कमान उनकी पत्नी ने सुनीता ने संभाली थी। वह रैलियों में खुद को हरियाणा की बहू बता रही थीं।
2) आप का महिलाओं पर फोकस
दिल्ली से पंजाब तक आप ने महिलाओं को फोकस में रखकर चुनाव लड़ा। जिसका फायदा जरूर मिला। जैसे मुफ्त बिजली-पानी के अलावा, महिलाओं को फ्री यात्रा, मोहल्ला क्लीनिक आदि। ये सब चीजें कास्ट से ऊपर क्लास तक की हैं। जो महिलाओं के साथ, गरीब तबके और मिडिल क्लास फैमिली को टारगेट करती है। हरियाणा चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस ने मेनिफेस्टों में महिलाओं और गरीबों के लिए घोषाएं की है।
3) लोकल लीडरशिप
जब बात लोकल लीडरशिप की आती है तो हरियाणा में आम आदमी पार्टी बिछड़ती नजर आती है। पंजाब-गोवा-गुजरात में पार्टी के पास लोकल जनाधार था लेकिन हरियाणा में ऐसा कुछ प्रतीत नहीं होता। यहां कांग्रेस के भुपेंद्र हुड्डा के बराबर का कोई नेता आप के पास नहीं है। हालांकि, दिल्ली से सटे इलाकों में आम आदमी पार्टी प्रभाव रखती है, लेकिन जब बात संपूर्ण हरियाणा की आती है तो केजरीवाल पीछे हो जाते हैं। अरविंद केजरीवाल हिसार के खेड़ा गांव से आते हैं। उन्होंने इस बात को हथियार बनाते हुए चुनाव में उतरने का फैसला किया है।
4) विपक्ष का कमजोर होना
चाहे दिल्ली हो या फिर गुजरात-गोवा विपक्ष पार्टी को विपक्ष के कमजोर होने का लाभ मिला है। पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के कमजोर पड़ने पर 2017 तक आप सूबे की सबसे बड़ी विपक्षी दल बन गया था, उन्होंने आप की गारंटी जनता तक पहुंचाने का काम किया, जिसका असर चुनावों में दिखा और पूर्ण बहुमत की सरकार आई। जबकि गुजरात में भी आप ने यही नीति अपनाई थी और उसे 5 सीटों पर जीत हासिल की हालांकि हरियाणा में विपक्ष के तौर पर कांग्रेस मजबूत नजर आ रही है।
5) दिल्ली मॉडल का भरोसा
आम आदमी पार्टी ने गुजरात से लेकर किसी दूसरे राज्यों को दिल्ली जैसा बनाने करती है। वह दिल्ली मॉडल के अभियान के तहत प्रचार-प्रसार करती है और लोगों का भरोसी जीतने की कोशिश करती है। ये चीज वह हरियाणा चुनाव में भी अपना रही है हालांकि,यहां के हालात और समीकरण अन्य राज्यों की तुलना में अलग है। बहरहाल, हरियाणा चुनाव नें अकेले मैदान में उतरी आम आदमी पार्टी इन पैतरों से कितना सफल हो पाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।