One Nation-One Election: दो चरणों में चुनाव के साथ समय- पैसों की होगी बचत, तमाम देश इसी प्रकिया से कराते हैं चुनाव
One Nation-One Election: वन-नेशन वन इलेक्श्न को लेकर संविधान के कुछ नियमों में संशोधन करना होगा, जिसको लेकर सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। हालांकि नगर पालिका चुनाव को लेकर राज्य सरकार को बड़े अहम फैसले कुछ लेने होंगे। अगर वन नेशन-वन इलेक्शन लागू हो जाता है तो इसका फायदा भी काफी मिलेगा। सबसे पहली बात तो ये है कि विकास कार्य नहीं रुकेंगे।
One Nation-One Election: देश में ‘एक देश एक चुनाव’ को बुधवार मोदी कैबिनेट से मंजूरी मिल गई। वन नेशन वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी बनाई गई थी जिसके चेयरमैन पूर्व राष्ट्रपति रामानाथ कोविंद थे। पूर्व राष्ट्रपति कोविंद ने अपनी रिपोर्ट मोदी कैबिनेट को दी, जिसे सर्वसम्मति से मंजूर कर दिया गया। हालांकि, अब आगे का सफर आसान नही होने वाला है। इसके लिए संविधान संशोधन और राज्यों की मंजूरी भी जरूरी है, जिसके बाद ही इसे लागू किया जाएगा। क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ की पूरी कहानी, चलिए आपको विस्तार से बताते हैं....
वन नेशन, वन इलेक्शन में एक साथ होंगे चुनाव!
मौजूदा समय में राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं, लेकिन अब मोदी कैबिनेट ने वन नेशन वन इलेक्शन को मंजूरी दे दी है। मीडिया रिपोर्ट्स का कहना है कि साल 2024 के लोकसभा चुनाव की अवधि 2029 के लोकसभा चुनाव के साथ ख़त्म हो जाएगी। इसके साथ ही राज्यों में सरकार पांच साल नहीं चलेगी। फिर सारे चुनाव साथ-साथ होंगे। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि मान लीजिए कोई सरकार 3 साल में गिर गई। फिर चुनाव होने पर जो सरकार बनेगी वो 2 साल ही रहेगी। फिर चुनाव होंगे। जिसे लोकसभा और विधानसभा के सदस्यों को चुना जाएगा। लेकिन राज्यसभा चुनाव और विधान परिषद को लेकर अभी कोई भी बात रिपोर्ट में नहीं की गई है।
दो चरणों में हो सकते है चुनाव
अब इसको लेकर कहा जा रहा है कि दो चरणों में चुनाव हो सकते हैं। पहला चरण- लोकसभा, विधानसभा। दूसरा चरण-नगर निगम,नगर पालिका परिषद, नगर पंचायत। आपको बता दें वन-नेशन वन इलेक्श्न को लेकर संविधान के कुछ नियमों में संशोधन करना होगा, जिसको लेकर सरकार ने पूरी तैयारी कर ली है। हालांकि नगर पालिका चुनाव को लेकर राज्य सरकार को बड़े अहम फैसले कुछ लेने होंगे। अगर वन नेशन-वन इलेक्शन लागू हो जाता है तो इसका फायदा भी काफी मिलेगा। सबसे पहली बात तो ये है कि विकास कार्य नहीं रुकेंगे।
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दरअसल, देश के जिस भी हिस्से में चुनाव होते हैं वहां आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। अधिसूचना जारी होने के बाद न तो नई योजना की शुरुआत होती है और न ही कोई नियुक्ति। इसी तरह अलग-अलग समय पर देश में अधिसूचना लागू होने पर विकास कार्यों पर कुछ समय के लिए रोक लगती है। सरकार जरूरी निर्णय नहीं ले पाती। ऐसे में पूरे देश में एक समय पर चुनाव होंगे तो आचार संहित को कुछ ही समय के लिए लागू किया जाएगा। इसके बाद विकास कार्यों पर ब्रेक नहीं लगेगा।
समय और पैसे दोनों की बचत
इसी के साथ ही राज्य विधानसभा और लोकसभा, अलग-अलग चुनाव होने पर खर्च में बढ़ोतरी होती है। शिक्षकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों की ड्यूटी इसमें लगाई जाती है। सरकार का अतिरिक्त पैसा खर्च होता है। अलग-अलग समय में चुनाव की प्रक्रिया के कारण इसमें खर्चा और बढ़ जाता है। अतिरिक्त खर्च होने के साथ उनकी ड्यूटी भी प्रभावित होती है। एक देश-एक चुनाव के जरिए समय और पैसे दोनों की बचत हो सकती है। सरकारी कर्मचारी बिना बाधा अपनी ड्यूटी कर पाएंगे। आपको बता दें, एक चुनाव में हजारों करोड़ खर्च होता है कैसे उसे इस तरह से समझते है। लोकसभा चुनाव 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक इस बार 1.35 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए, इसमें राजनीतिक दलों और भारतीय चुनाव आयोग की ओर से किया गया खर्च शामिल है। इसी तरह राज्यवार खर्चों का अंदाजा लगाएं तो आंकड़े कई गुना बढ़ जाएंगे। इसी खर्च को रोकने के लिए वन नेशन-वन बिल को लेकर सरकार ने तैयारी कर ली है।
आजादी के बाद एक देश एक चुनाव’ के तहत हुए थे चुनाव
ऐसा नहीं कि इसे भारत में लागू करने की तैयारी है। इससे पहले दुनिया के कई ऐसे देश है जहां पहले से ये व्यवस्था लागू है। जर्मनी, हंगरी, स्पेन, पोलैंड, इंडोनेशिया, बेल्जियम, दक्षिण अफ्रीका, स्लोवेनिया और अल्बानिया जैसे देशों में एक देश-एक चुनाव की व्यवस्था है। हाल ही में इस लिस्ट में स्वीडन शामिल हुआ है, जहां एक साथ सभी चुनाव कराए जाते हैं। बता दें, वन नेशन-वन इलेक्शन कराने की बात आज भले ही कही जा रही हो, लेकिन देश में इससे पहले चार बार लोकसभा और राज्यों के चुनाव साथ हो चुके हैं। 1947 में मिली आजादी के बाद भारत में 1951 से 1967 तक देश में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ ही हुए थे। देश में पहला चुनाव 1951-52 में ही हुआ था। इस दौरान भी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ ही कराए गए थे। साल 1957, 1962 और 1967 में भी लगातार चार बार देश में लोकसभा और राज्यों के विधानसभा के चुनाव साथ हुए थे। देश में लगातार चार बार एक साथ चुनाव होने के बाद 1967 से इसका पैटर्न बदलने लगा। हालांकि, 1967 के बाद अपने-अपने फायदों के लिए राजनीतिक दलों ने इसे व्यवस्था को दोबारा लागू नहीं होने दिया। लेकिन अब ऐसा कहा जा रहा है कि मोदी सरकार इसे लागू जल्द से जल्द कर देगी। इसके लिए सारी प्लानिंग भी तैयार कर ली गई है।
रिपोर्ट-ऋषभ कांत छाबड़ा